जलवायु परिवर्तन के चलते भारत में जीडीपी को हो सकता है 35.1 फीसदी तक का नुकसान

भारत में सबसे ज्यादा नुकसान स्वास्थ्य, कृषि और पर्यटन को होगा जिसके लिए उससे निपटने की हमारी तैयारियों में कमी भी काफी हद तक जिम्मेवार है।

By Lalit Maurya

On: Friday 23 April 2021
 

यदि जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए जरुरी कदम न उठाए गए तो 2050 तक भारतीय अर्थव्यवस्था को जीडीपी के 35.1 फीसदी तक का नुकसान हो सकता है| यह जानकारी स्विस रे इंस्टीट्यूट द्वारा जारी रिपोर्ट में सामने आई है| स्विस रे इंस्टीट्यूट ने दुनिया भर के 48 देशों का विश्लेषण किया है जिसमें उसने इन देशों की अर्थव्यवस्था पर जलवायु परिवर्तन के दबाव को स्पष्ट किया है|

भारत सहित यह 48 देश दुनिया की 90 फीसदी अर्थव्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते हैं| इस विश्लेषण के आधार पर स्विस रे ने इन देशों को रैंक भी दिए हैं| इन देशों में भारत को 45वें स्थान पर रखा गया है| जिसके अनुसार इसे जलवायु परिवर्तन से सबसे ज्यादा प्रभावित देशों की श्रेणी में शुमार किया गया है|

रिपोर्ट के अनुसार भारत में बढ़ते तापमान के चलते भयंकर सूखा, गर्मी का तनाव और स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा असर पड़ेगा| जिसके कारण श्रम उत्पादकता को गंभीर नुकसान पहुंचेगा| रिपोर्ट के मुताबिक देश में कृषि जो 18 फीसदी और पर्यटन जो 9 फीसदी जीडीपी पैदा करता है, उन क्षेत्रों को सबसे ज्यादा आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ सकता है| कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था की रीढ़ है जो न केवल आर्थिक विकास में मदद करती है साथ ही एक बड़ी आबादी को रोजगार भी देती है| ऐसे में उसको होने वाला नुकसान देश की एक बड़ी आबादी को प्रभावित करेगा| साथ ही इसके कारण खाद्य सुरक्षा को लेकर भी संकट उत्पन्न हो सकता है|

 

भारत में समस्या केवल जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से ही नहीं है| यदि इससे निपटने के लिए देश में मौजूद साधनों और क्षमता को देखें तो वो भी बहुत कम है| जिसके चलते यह जोखिम और बढ़ सकता है| यदि जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन की बात करें तो इस इंडेक्स में भारत को 48 में से 46 वें स्थान पर रखा गया है जो स्पष्ट तौर पर दिखाता है कि हम जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कितने तैयार हैं| रिपोर्ट के अनुसार देश में अब तक जलवायु अनुकूलन को लेकर कोई योजना या रणनीति नहीं अपनाई गई है| वहीं जलवायु परिवर्तन और उसके जोखिमों को लेकर लोगों में अभी भी बहुत कम जागरूकता है|

यह सही है कि भारत अपने उत्सर्जन को कम करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है| उसने कोयले पर निर्भरता को कम करने के लिए अक्षय ऊर्जा को बढ़ावा  दिया है और इलेक्ट्रिक वाहनों को लेकर नीतियां बनाई हैं| पर यह भी सच है कि हम जलवायु परिवर्तन से आने वाले खतरों से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार नहीं हैं| हमारी कृषि आज काफी हद तक वर्षा जल पर निर्भर है| हमने वर्षा जल संचय को लेकर गंभीर प्रयास नहीं किए हैं जिनका नतीजा हर वर्ष गर्मियों में सूखे और पानी के गंभीर संकट के रूप में सामने आता है| हमें इन जोखिमों से निपटने के लिए भी तैयार रहना होगा|

हाल ही में काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीइइडब्लू) द्वारा किए शोध से पता चला है कि भारत में 75 फीसदी से ज्यादा जिलों पर जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है। इन जिलों में देश के करीब 63.8 करोड़ लोग बसते हैं। ऐसे में भारत को भी बढ़ते खतरे से निपटने के लिए तैयार रहना होगा।

 

वैश्विक अर्थव्यवस्था को भी हो सकता है जीडीपी के 18 फीसदी का नुकसान

इस रिपोर्ट के अनुसार यदि जलवायु परिवर्तन के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था को होने वाले नुकसान को देखें तो वो उसके जीडीपी के 18 फीसदी हिस्से के बराबर हो सकता है| इसके लिए जारी इंडेक्स में फिनलैंड को पहले, स्विटज़रलैंड को दूसरे और ऑस्ट्रिया को तीसरे स्थान पर रखा है जबकि अमेरिका 7वें, ऑस्ट्रेलिया 14वें, यूके 15वें और चीन को 41वें स्थान पर रखा गया है| वहीं इंडोनेशिया सबसे नीचे 48वें और उससे एक पायदान ऊपर मलेशिया को 47वें स्थान पर रखा गया है|

यदि अनुकूलन  क्षमता की बात करें तो वेनेज़ुएला को सबसे नीचे 48 वें पायदान पर रखा गया है, जबकि 47वे पर मिस्र और 46वें पर भारत को जगह मिली है| ऐसा नहीं है कि जलवायु परिवर्तन के असर से बचा नहीं जा सकता, बस हमें इसके लिए तैयार रहने होगा और अपनी आदतों में बदलाव करना होगा जिससे बढ़ते उत्सर्जन को सीमित किया जा सके| प्रकृति ने हमें एक बेहतर घर दिया है यह हमारे ऊपर है कि हम इसे कैसे सजाते और बचाए रखते हैं| 

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