पिछले चार साल से धंस रहा है जोशीमठ, उपग्रह की छवियों से चला पता

अध्ययन के मुताबिक 2018 से 2022 के बीच उत्तराखंड शहर की उपग्रह की छवियों से पता चला है कि इसका पूर्वी हिस्सा हर साल लगभग 10 सेमी के औसत के साथ विस्थापित हो रहा है

By Dayanidhi

On: Friday 20 January 2023
 
फोटोः सनी गौतम,सीएसई

सार्वजनिक रूप से उपलब्ध उपग्रह की छवियों से चला पता है कि जोशीमठ काफी पहले से आपदा से जूझ रहा था। फ्रांस के राष्ट्रीय वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र (सीएनआरएस) के मुताबिक जोशीमठ भू-धंसाव के संकट को लेकर 2018 से 2022 के बीच उत्तराखंड शहर की उपग्रह की छवियों से पता चला है कि इसका पूर्वी हिस्सा हर साल लगभग 10 सेंटीमीटर के औसत के साथ विस्थापित हो रहा है।

फ्रांस के राष्ट्रीय वैज्ञानिक अनुसंधान केंद्र (सीएनआरएस), जो फ्रांसीसी राज्य अनुसंधान संगठन है और यूरोप में सबसे बड़ी मौलिक विज्ञान एजेंसी है।

वहीं कोपरनिकस सेंटिनल प्रोग्राम जो कि यूरोप और अमेरिका के बीच साझेदारी में विकसित एक सहकारी मिशन है, जो उपग्रह अवलोकन, अन्य मापदंडों के बीच, सतह की गति का पता लगाते हैं। साथ ही यह एक व्यापक क्षेत्र में विस्थापन की गणना करने में मदद करता है।

जनवरी 2018 से 31 दिसंबर, 2022 तक क्षेत्र में 150 दृश्यों से ली गई छवियों ने विस्थापन की गति की माप और जमीन पर स्थिर बिंदुओं से संबंधित समय श्रृंखला की जानकारी दी है, जैसे भवन, धातु की वस्तुएं, और खाली चट्टानें आदि। यह माप मिलीमीटर स्तर तक सटीक होती है।

यहां बताते चलें कि जबकि विस्थापन किसी वस्तु की प्रारंभिक और अंतिम स्थिति की माप है, वेग या गति वह दर है जिस पर विस्थापन होता है।

उपग्रह के आंकड़ों  से ली गई जियोहाजर्ड्स एक्सप्लॉइटेशन प्लेटफॉर्म पर एक पोस्ट में कहा गया है, कि जोशीमठ शहर के साथ-साथ विपरीत ढलानों पर स्पष्ट विकृति के संकेत दिखाई दे रहे हैं, जबकि शेष क्षेत्र अपेक्षाकृत स्थिर लगता है।

उपग्रह छवियों में चार अलग-अलग विस्थापन पैटर्न उपलब्ध हैं। ढलान का पूर्वी भाग प्रति वर्ष 10 सेमी का विस्थापन दिखा रहा है जबकि पश्चिमी भाग थोड़ा कम है। इन दो सक्रिय क्षेत्रों के बीच के क्षेत्र में 2021 के अंत तक थोड़ा विस्थापन देखा गया और फिर इसमें तेजी आने लगी। ऊपरी पश्चिमी भाग भी निरंतर तेजी को दिखता है। अध्ययन के मुताबिक दिसंबर 2022 में भू-धंसाव सबसे अधिक स्पष्ट हुआ।

यहां हाल के क्षेत्रीय अवलोकनों से भी पता चला है, जिसमें लंबवत और क्षैतिज विकृति दोनों के साथ जटिल धंसने के पैटर्न दिखाई दिए, जिसमें कई सेंटीमीटर तक धंसाव का उल्लेख है, यह जानकारी ग्रीस की अरिस्टोटल यूनिवर्सिटी ऑफ थेसालोनिकी द्वारा गुरुवार को जारी की गई थी। इसमें वेधशाला डेस साइंसेज डे ला टेरे अर्थात  फ्रांस के स्ट्रासबर्ग, द स्कूल ऑफ ऑब्जर्वेटरी एंड अर्थ साइंसेज द्वारा सहयोग किया गया है।

दुनिया भर में होने वाले भूस्खलन की घटनाओं पर अवलोकन और विश्लेषण प्रदान करने वाले ब्रिटेन के हल विश्वविद्यालय के कुलपति डेव पेटली ने कहा कि गर्मियां शुरू होते ही स्थिति में सकारात्मक बदलाव आएगा।

सेंटिनल-एक की छवियों द्वारा संभव किए गए उपर्युक्त विश्लेषण की ओर इशारा करते हुए, पेटली कहते हैं, यह आरेख स्पष्ट रूप से विभिन्न भूस्खलन इकाइयों को दिखाता है जिन पर शहर बनाया गया है और गतिविधि के पैटर्न जो वे लंबी अवधि में प्रदर्शित करते हैं। यह पुष्टि करता है कि यह विस्थापित हो रहा है, इसमें कमी नहीं  देखी जा रही है, जैसा कि अपेक्षित था।

विस्थापन के लिए समय के चरणों से पता चलता है कि भूस्खलन परिसर अलग-अलग दरों पर आगे बढ़ रहा है। सबसे बड़ा विस्थापन निरंतर चलने वाला लगभग आधा मीटर है जो समय के साथ बदलता रहता है।

ढलान वाले इलाके में मिट्टी या चट्टान की स्पष्ट रूप से संरचना नीचे की ओर बढ़ रही है। गति के तनाव के कारण ऐसा होता है जो स्थायी विकृति उत्पन्न करने के लिए काफी होता है।

इस तरह के भूस्खलन परिसरों की गति को समझना बहुत जटिल है और हम समय के साथ होने वाली बदलाव की दर की उम्मीद करते हैं। इस प्रकार, छोटी अवधि के समय विभिन चरणों के आंकड़ों की व्याख्या करने में बहुत सावधानी बरतने की आवश्यकता है।

लेकिन, कुल मिलाकर लब्बोलुआब यह है कि यह ढलान के महत्वपूर्ण इंजीनियरिंग हस्तक्षेप के बिना अपनी वर्तमान भौतिक स्थिति में स्थायी स्थिरता हासिल करने की संभावना नहीं है। पेटली ने कहा वर्तमान संकट कुछ बिंदु पर पूरा हो जाएगा, लेकिन इसमें छिपी पुरानी समस्या, जो भी कारण रहे हो, इसके बने रहने की आशंका है। यह कहना सही नहीं है कि सब कुछ खत्म गया है या तत्काल संकट दूर हो जाएगा, लेकिन कार्रवाई करने की आवश्यकता है।

Subscribe to our daily hindi newsletter