हिन्द महासागर के 50 फीसदी हिस्से पर पड़ चुका है जलवायु परिवर्तन का असर

अनुमान है कि आने वाले कुछ दशकों में यह आंकड़ा बढ़कर 80 फीसदी तक जा सकता है

By Lalit Maurya

On: Wednesday 19 August 2020
 

हिन्द महासागर सहित दुनिया के 50 फीसद से ज्यादा महासागर पहले ही जलवायु परिवर्तन का दंश झेल रहे हैं, जबकि अनुमान है कि आने वाले कुछ दशकों में यह आंकड़ा बढ़कर 80 फीसदी तक जा सकता है। यह जानकारी यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग द्वारा किये एक नए शोध से सामने आई है, जोकि अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर क्लाइमेट चेंज में प्रकाशित हुआ है।

शोध के अनुसार अब तक इसका असर अटलांटिक, प्रशांत और हिन्द महासागर के 20 से 55 फीसदी हिस्से पर पड़ चुका है। जहां जलवायु में आ रहे बदलावों के कारण तापमान और खारेपन में भी बदलाव आ चुका है। जबकि अनुमान है कि सदी के मध्य तक यह 40 से 60 फीसदी तक बढ़ जाएगा। वहीं 2080 तक 55 से 80 फीसदी हिस्से पर इसके असर के कयास लगाए जा रहे हैं।

शोधकर्ताओं के अनुसार उत्तरी गोलार्ध की तुलना में दक्षिणी गोलार्ध में मौजूद महासागरों पर जलवायु परिवर्तन का कहीं अधिक तेजी से प्रभाव पड़ रहा है। अनुमान है कि इनपर पड़ने वाला असर 1980 के बाद से ही सामने आने लगा था।

इसके असर को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने क्लाइमेट मॉडल्स की मदद ली है। साथ ही समुद्र के गहरे क्षेत्रों में तापमान और लवणता में आ रहे बदलावों का अवलोकन किया है। जोकि स्पष्ट तौर पर क्लाइमेट चेंज के पड़ रहे असर को दिखाता है। रीडिंग विश्वविद्यालय से जुड़े और इस शोध के सह-लेखक एरिक गुइलार्डी ने बताया कि "हम पिछले कई दशकों से जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र की सतह पर तापमान में आ रहे बदलावों का पता लगा रहे हैं। लेकिन इतने विशाल महासागर और विशेष रूप से गहरे भागों में इस परिवर्तन का पता लगाना बहुत अधिक चुनौतीपूर्ण है।"

दक्षिणी गोलार्ध में बहुत जल्दी और तेजी से नजर आ रहे हैं परिवर्तन

शोधकर्ताओं के अनुसार इन गहरे क्षेत्रों में गर्मी और लवणता का प्रसार बहुत धीमी गति से होता है ऐसे में जलवायु परिवर्तन के असर को माप पाना आसान नहीं होता। साथ ही समुद्र के जिन हिस्सों में प्राकृतिक रूप से बहुत ज्यादा परिवर्तन आ रहा है वहां भी इसकी माप मुश्किल हो जाती है।

इस शोध से जुड़े शोधकर्ताओं ने इसे समझने के लिए एक मॉडल सिमुलेशन का उपयोग किया है जिसमें मानव के प्रभाव और उसके बिना तापमान और लवणता में आए अंतरों को मापा गया है। साथ ही उन्होंने इसकी शुरुवात और असर के दिखने के समय को भी जानने का प्रयास किया है। शोधकर्ताओं के अनुसार जो परिणाम सामने आए हैं उनके अनुसार उत्तरी गोलार्ध में मौजूद महासागरों में अंतर 2010 से 2030 के बीच सामने आए हैं। जिसका मतलब है कि वहां तापमान और लवणता पर पहले ही असर पड़ना शुरू हो चुका है। 

जबकि शोध के अनुसार दक्षिणी गोलार्ध में यह असर कही अधिक तेज गति से हो रहा है। जिससे उसका असर पहले ही दिखने लगा था। यही वजह है कि वैश्विक तापमान और कार्बन भंडारण के दृष्टिकोण से दक्षिणी गोलार्ध में मौजूद महासागर कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हैं। वहां सतह पर मौजूद पानी बड़ी आसानी से नीचे गहरे हिस्सों में भी पहुंच जाता है। जिस वजह से परिवर्तन के लक्षण कहीं पहले नजर आने लगे थे। हालांकि दुनिया के हिस्से में बहुत कम अध्ययन किया गया है यही वजह है कि लम्बे समय से इसके असर को देखा नहीं जा सका था। 

महासागर ने केवल उसमें मौजूद संसाधनों की वजह से महत्वपूर्ण है, साथ ही यह जलवायु को नियंत्रित करने में भी अहम् भूमिका निभाते हैं। ऐसे में जलवायु परिवर्तन का इनपर पड़ रहा असर हम इन्सानों के लिए भी हानिकारक है। हाल ही में यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया द्वारा किये एक शोध के अनुसार समुद्र हमारे द्वारा उत्सर्जित गर्मी का करीब 90 फीसदी हिस्सा सोख लेते हैं। जबकि नेचर में छपी एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार यह आईपीसीसी के अनुमान से करीब 60 फीसदी ज्यादा तेजी से गर्म हो रहे हैं।

ऐसे में वैज्ञानिकों का मानना है कि समुद्र पर किये जा रहे अवलोकनों में सुधार किया जाना चाहिए, जिससे महासागरों पर जलवायु परिवर्तन के पड़ रहे असर को बेहतर तरीके से मापा जा सके। साथ ही धरती पर पड़ रहे प्रभावों का सटीक अनुमान लगाया जा सके।

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