भारतीय-प्रशांत महासागर के गर्म होने से भारत में बदल रहा है बारिश का पैटर्न

हाल ही में वैज्ञानकों को भारतीय-प्रशांत महासागर के एक हिस्से के तेजी से गर्म होने का पता चला है। जिसके कारण भारत सहित दुनिया के कई क्षेत्रों के मौसम और बारिश में अनियमितता आ रही है

By Lalit Maurya

On: Friday 29 November 2019
 
पिछले कुछ सालों से बारिश का पैटर्न बदलता जा रहा है। फोटो: विकास चौधरी

 

पिछले कुछ वर्षों में जिस तरह से भारतीय मानसून में अनियमितता आ रही है, वो सभी के लिए परेशानी का सबब बन गया है। एक ओर जहां कहीं भरी बारिश हो रही है, कहीं देश के दूसरे कोने में सूखा पड़ रहा है। चाहे किसान हो या शहरों में रहने वाला आम नागरिक हर कोई इस बदलाव से त्रस्त है। और इन सबके पीछे की वजह जलवायु परिवर्तन को माना जा रहा है। हाल ही में वैज्ञानकों ने भारतीय-प्रशांत महासागर के एक हिस्से के तेजी से गर्म होने को इसके पीछे की वजह माना है। उनके अनुसार इसके कारण भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों में होने वाली बारिश में अनियमितता आ रही है। इस वर्ष उत्तर भारत में मानसून के ठीक से ना आने के लिए भी इसी को जिम्मेदार माना जा रहा है।

एनओएए और भारत के पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सहयोग से किये गए इस शोध के अनुसार इंडो-पैसिफिक ओसियन के गर्म होने से संयुक्त राज्य अमेरिका के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों और भारत में वर्षा का पैटर्न बदल रहा है। इसके चलते भारत के कुछ हिस्सों के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका के पश्चिम और पूर्वी तटों पर भी होने वाली वर्षा में गिरावट आ रही है। यह शोध अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर में प्रकाशित हुआ है। जोकि इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मीटिरोलॉजी (आईआईटीएम-पुणे) के वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल्ल के नेतृत्व में किया गया है।

 आखिर क्यों आ रहा है यह बदलाव

शोधकर्ता इसके पीछे की वजह, हाल के कुछ वर्षों में पश्चिमी प्रशांत और पूर्वी हिंद महासागर में फैले पानी के एक हिस्से में लगातार हो रही बढ़ोतरी को मान रहे हैं। उनके अनुसार यह क्षेत्र हर साल कैलिफोर्निया के आकार के बराबर बढ़ रहा है। गौरतलब है की 1900 से 1980 तक महासागर के गर्म हिस्से का क्षेत्रफल 2.2X107 वर्ग किलोमीटर दर्ज किया गया था, जोकि 1981 से 2018 के बीच बढ़कर 4X107 वर्ग किलोमीटर हो गया है। जिसके लिए ग्लोबल वार्मिंग जिम्मेदार माना जा रहा है। जिसके चलते मौसम और जलवायु की एक प्रमुख घटना में बदलाव आ गया है। जिसे मैडेन जूलियन ऑसिलेशन (एमजओ) के रूप में जाना जाता है। जिसकी प्रमुख विशेषता, एक पट्टी के रूप में फैले बादल हैं जो बारिश कराने में अहम भूमिका निभाते हैं। यह बादल अफ्रीका में सेशेल्स से चलकर प्रशांत महासागर में भारत की ओर बढ़ते हैं। जिनसे भारत में आने वाले मानसून से लेकर अमेरिका में आ रही बाढ़ तक सब कुछ प्रभावित होता है। यह भूमध्य रेखा के ऊपर मॉनसून, चक्रवात और एल नीनो को नियंत्रित करते हैं।

अध्ययन के अनुसार एमजेओ के व्यवहार में आ रहे बदलाव के कारण उत्तरी ऑस्ट्रेलिया, पश्चिम प्रशांत, अमेजन बेसिन, दक्षिण-पश्चिम अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया (इंडोनेशिया, फिलीपींस और पापुआ न्यू गिनी) में होने वाली बारिश की मात्रा बढ़ गई है। जबकि मध्य प्रशांत के साथ-साथ संयुक्त राज्य अमेरिका के पश्चिमी और पूर्वी तट (जैसे कैलिफोर्निया), उत्तर भारत, पूर्वी अफ्रीका और चीन के यांग्त्जी बेसिन में होने वाली बारिश में गिरावट आ गयी है।  

अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता रॉक्सी मैथ्यू कोल्ल ने बताया कि "क्लाइमेट मॉडल सिमुलेशन से संकेत मिलता है कि आगे भी हिंद-प्रशांत महासागर के निरंतर गर्म होने संभावना है, जिससे वैश्विक रूप से वर्षा के पैटर्न में आ रहा बदलाव और तेज हो सकता है।" जिसका अर्थ यह हुआ कि हमें इन बदलावों पर लगातार पैनी नजर रखने की जरुरत है। साथ ही अधिक कुशलता और सटीकता से अपने जलवायु मॉडल को अपडेट करने की जरुरत है, जिससे ग्लोबल वार्मिंग के चलते दुनिया भर में बढ़ रही चुनौतियों से निपटा जा सके।“

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