एसओई इन फिगर्स 2022: मौसम की चरम घटनाओं में महाराष्ट्र में गई सबसे ज्यादा जानें

रिपोर्ट के मुताबिक 2021 के दौरान देश में आई बाढ़, तूफान, चक्रवात, आंधी, और भूस्खलन जैसी चरम मौसमी घटनाओं ने 1,700 जिंदगियों को लील लिया था, जिनमें से 350 मौतें अकेले महाराष्ट्र में हुई थी

By Lalit Maurya

On: Saturday 04 June 2022
 

लू, बढ़ता पारा, पिघलते ग्लेशियर, बाढ़, तूफान जैसी चरम मौसमी घटनाएं इस बात का सबूत हैं कि जलवायु में बड़ी तेजी से बदलाव आ रहा है। सीएसई द्वारा हालिया रिपोर्ट में जो आंकड़े सामने आए हैं वो इन घटनाओं के बारे में इशारा करते हैं कि हम एक ऐसे भविष्य की ओर जा रहे हैं जो अंधकारमय हो सकता है।

गौरतलब है कि हाल ही में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) और डाउन टू अर्थ जारी नई रिपोर्ट “स्टेट ऑफ इंडियाज एनवायरनमेंट 2022: इन फिगर्स” से पता चला है कि 2021 के दौरान आई चरम मौसमी घटनाओं में सबसे ज्यादा जाने महाराष्ट्र में गई थी। सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण पर आधारित इस ई-रिपोर्ट को विश्व पर्यावरण दिवस (5 जून) के मौके पर जानी मानी पर्यावरणविद सुनीता नारायण ने ऑनलाइन जारी किया है।

रिपोर्ट के मुताबिक 2021 के दौरान देश में आई बाढ़, तूफान, चक्रवात, आंधी, और भूस्खलन जैसी चरम मौसमी घटनाओं ने 1,700 जिंदगियों को लील लिया था, जिनमें से 350 मौतें अकेले महाराष्ट्र में हुई थी। वहीं आंकड़ों के राज्यवार विश्लेषण से पता चला है कि ओडिशा में 223 हताहत हुए थे जबकि मध्यप्रदेश में 191 लोगों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा था। इतना ही नहीं रिपोर्ट से पता चला है कि इस वर्ष भी यह आपदाएं अपना कहर जारी रख सकती हैं।

आंकड़ों की मानें तो पिछला दशक (2012-2021) भारतीय इतिहास का सबसे गर्म दशक था। वहीं इतिहास के ग्यारह सबसे गर्म वर्ष पिछले 15 वर्षों (2007-21) में दर्ज किए गए हैं। इसी तरह 2021 भारत ने अपना पांचवा सबसे गर्म साल दर्ज किया था। जब तापमान सामान्य से 0.44 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया था।

बढ़ते तापमान के साथ बढ़ रहा है खतरा

गौरतलब है कि 2016 भारतीय इतिहास के सबसे गर्म वर्ष के रूप में दर्ज है उस साल तापमान सामान्य से 0.71 डिग्री सेल्सियस ज्यादा था। इसी तरह 2022 में मार्च  के महीने में तापमान ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए थे जबकि मार्च 2021 भारतीय इतिहास का तीसरा सबसे गर्म मार्च था। इतना ही नहीं 11 मार्च से 18 मई के बीच देश के 16 राज्यों में हीटवेव दिनों की कुल संख्या 280 दर्ज की गई थी, जोकि पिछले 10 वर्षों में सबसे ज्यादा हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक भारत, नेपाल और चीन में कुल 25 हिमनद झीलें ऐसे हैं जिनके जल प्रसार क्षेत्र में 40 फीसदी से अधिक की वृद्धि दर्ज की गई है, जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि इस क्षेत्र में ग्लेशियर बड़ी तेजी से पिघल रहें हैं और जिनके पीछे कहीं न कहीं बढ़ते तापमान का हाथ है। इतना ही नहीं रिपोर्ट में कहा गया है कि ये ग्लेशियर सात भारतीय राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लिए गंभीर खतरा हैं और उन पर कड़ी निगरानी रखने की जरुरत है।

रिपोर्ट के मुताबिक 2020-21 की तुलना में 2021-22 में प्राकृतिक आपदाओं पर किए जा रहे भारतीय खर्च में लगभग 30 फीसदी की कमी आई है। छह राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में यह कटौती 50 फीसदी से ज्यादा थी, जबकि अन्य पांच में यह 70 फीसदी से अधिक दर्ज की गई।

रिपोर्ट के बारे में डाउन टू अर्थ के प्रबंध संपादक रिचर्ड महापात्रा का कहना है कि “इस रिपोर्ट में जो जानकारी है वो सरकारी आंकड़ों पर आधारित है जोकि पब्लिक डोमेन में उपलब्ध है। हमने बस उनका विश्लेषण किया है और उन्हें शोधकर्ता की दृढ़ता और पत्रकार की अंतर्दृष्टि के साथ प्रस्तुत किया है।“ 

महापात्रा के अनुसार यह आंकड़े एक बार फिर उन मुद्दों को उजागर करते हैं जिनपर चर्चा करना जरुरी है। यह रिपोर्ट आंकड़ों के माध्यम से देश में पर्यावरण की स्थिति को दर्शाती है। देखा जाए तो यह वर्ष देश और दुनिया दोनों के लिए कुछ खास है। भारत अपनी आजादी के 75वें वर्ष का जश्न मना रहा है। जहां हमारे पास विकास के निर्धारित लक्ष्यों के साथ 'नए भारत' का वादा है। वहीं इस वर्ष स्टॉकहोम सम्मेलन की 50वीं वर्षगांठ भी है, जो पर्यावरण पर संयुक्त राष्ट्र की पहली बैठक है।

यह रिपोर्ट दोनों के साथ न्याय करने की कोशिश करती है, जहां भारत में यह इस बात का आंकलन करती है कि क्या नए भारत का वादा सच साबित होगा। वहीं धरती के लिए पिछले 50 वर्ष कैसे रहे हैं और पर्यावरण पर क्या असर पड़ा है यह उससे जुड़ी जानकारी भी विश्लेषण के साथ साझा करती है।  

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