वादा है जलवायु परिवर्तन से निपटने का, लेकिन जीवाश्म ईंधन की सब्सिडी में दोगुनी वृद्धि

आंकड़ों के मुताबिक 2020 में जहां जीवाश्म ईंधन को कुल 28.9 लाख करोड़ रुपए की सब्सिडी दी गई थी, जो 2021 में 92 फीसदी की वृद्धि के साथ बढ़कर 55.5 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गई है

By Lalit Maurya

On: Friday 02 September 2022
 

एक तरफ जहां दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए देश बड़े-बड़े वादे कर रहे हैं वहीं उनके बीच वो जीवाश्म ईंधन को भी मदद कर रहे हैं। इस बारे में आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (ओईसीडी) और अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) द्वारा जारी नए विश्लेषण से पता चला है कि वैश्विक स्तर पर 2021 में जीवाश्म ईंधन को दी जा रही सब्सिडी दोगुनी हो गई है, जोकि जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में एक बड़ी अड़चन है।

ओईसीडी और आईईए द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार दुनिया भर में 51 शक्तिशाली देश जीवाश्म ईंधन को अच्छी खासी मदद दे रहे हैं। आंकड़े बताते है कि जहां 2020 में जीवाश्म ईंधन को कुल 28.9 लाख करोड़ रुपए (36,240 करोड़ डॉलर) की सब्सिडी दी थी, वो 2021 में बढ़कर 55.5 लाख करोड़ रुपए (69,720 करोड़ डॉलर) पर पहुंच गई थी। गौरतलब है कि इन देशों में अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, चीन, रूस और यूके जैसे देशों के साथ भारत भी शामिल है।

मतलब स्पष्ट है कि सिर्फ एक साल में इसमें 92 फीसदी से ज्यादा की वृद्धि दर्ज की गई है। देखा जाए तो जिस तरह से वैश्विक अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव आ रहा है उससे ऊर्जा कीमतों में भी वृद्धि दर्ज की गई है। वहीं अनुमान है कि 2022 में ईंधन की बढ़ती कीमतों के साथ-साथ बढ़ते ऊर्जा उपयोग के चलते यह सब्सिडी और भी बढ़ सकती है।

इस बारे में ओईसीडी और आईईए ने एक डेटाबेस भी तैयार किया है, जिसमें जीवाश्म ईंधन के लिए अलग-अलग तरह से दी जा रही सरकारी सहायता का अनुमान साझा किया गया है। वर्तमान डेटासेट में 51 प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं को कवर किया गया है जिनमें भारत और अमेरिका भी शामिल है। देखा जाए तो यह 51 देश दुनिया की कुल ऊर्जा आपूर्ति के करीब 85 फीसदी हिस्से का प्रतिनिधित्व करते हैं।

वहीं ओईसीडी द्वारा जी-20 देशों के कोयला, तेल, गैस और अन्य पेट्रोलियम उत्पादों के उत्पादन और उपयोग से जुड़े आंकड़ों से पता चला है कि इन देशों में 2020 में जीवाश्म ईंधन के लिए करीब 11.7 लाख करोड़ रुपए (14,700 करोड़ डॉलर) की सहायता दी गई थी, जो 2021 में बढ़कर 15.1 लाख करोड़ रुपए (19,000 करोड़ डॉलर) पर पहुंच गई थी।

इतना ही नहीं आंकड़ों से पता चला है कि 2021 में जी-20 देशों में उत्पादकों को दी जाने वाले सब्सिडी 5 लाख करोड़ रुपए (6,400 करोड़ डॉलर) पर पहुंच गई थी। जिसमें वर्ष दर वर्ष करीब 50 फीसदी की वृद्धि देखी गई थी।

पता चला है कि इस सब्सिडी ने घरेलू मूल्य नियंत्रण के कारण उत्पादकों को हुए नुकसान की आंशिक रूप से ही भरपाई की है क्योंकि 2021 के अंत में वैश्विक ऊर्जा कीमतों में वृद्धि देखी गई थी। वहीं उपभोक्ताओं को दी जाने वाली सब्सिडी 2020 में 7.4 लाख करोड़ रुपए (9,300 करोड़ डॉलर) से बढ़कर 2021 में 9.2 लाख करोड़ रुपए (11,500 करोड़ डॉलर) पर पहुंच गई थी।

जरुरी नहीं की जरूरतमंदों तक भी पहुंचे यह सब्सिडी

हैरानी की बात है कि जीवाश्म ईंधन कंपनियों को होते भारी मुनाफे के बावजूद सरकारें अपने नागरिकों को बढ़ती ऊर्जा कीमतों से बचाने के लिए सब्सिडी दे रहीं हैं। देखा जाए तो अधिकांश सब्सिडी का उपयोग उपभोक्ताओं पर बढ़ते दबाव को कम करने के लिए किया गया। लेकिन इसका फायदा उस तबके तक नहीं पहुंचा जिसे मिलना चाहिए था, क्योंकि ज्यादातर सब्सिडी कम आय वर्ग को लक्षित करने के बजाय ऊर्जा उपयोग पर आधारित थी। 

विश्लेषण से पता चला है कि दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाएं  कोयला, तेल और प्राकृतिक गैस के उत्पादन और खपत को बड़े पैमाने पर समर्थन दे रही है। वहीं कई देश जो ईंधन और ऊर्जा की बढ़ती कीमतों को संतुलित करने के लिए लम्बे समय से सब्सिडी खत्म करने के अपने वादे से डिगते नजर आ रहे हैं।

इस बारे में ओईसीडी महासचिव माथियास कॉर्मन का कहना है कि यूक्रेन के खिलाफ रूस द्वारा शुरू की गई जंग ने ऊर्जा कीमतों में तेज से वृद्धि की है और इसने ऊर्जा सुरक्षा को कमजोर कर दिया है। उनके अनुसार जीवाश्म ईंधन सब्सिडी में हुई उल्लेखनीय वृद्धि से इनकी बेतहाशा हो रही खपत को बढ़ावा मिलता है, जबकि यह जरूरी नहीं कि इस सब्सिडी का फायदा जरूरतमंद परिवारों तक भी पहुंचे।

ऐसे में हमें उन उपायों को अपनाने की जरुरत है जो उपभोक्ताओं को बाजार में आते उतार चढ़ाव और राजनैतिक ताकतों के बढ़ते प्रभाव से बचाते है। इसमें ऊर्जा सुरक्षा और कीमतों के साथ-साथ कार्बन उत्सर्जन को भी ध्यान में रखना जरुरी है।

देखा जाए तो जीवाश्म ईंधन को दी जा रही यह सब्सिडी जलवायु परिवर्तन के खिलाफ जारी जंग के लिए एक बड़ी समस्या है। इस बारे में आईईए के कार्यकारी निदेशक फतह बिरोल का कहना है कि जीवाश्म ईंधन को दी जा रही सब्सिडी एक बेहतर शाश्वत भविष्य के लिए बाधा है। लेकिन सरकारों को उन्हें हटाने में जो कठिनाई होती है वो बढ़ती और अस्थिर कीमतों के समय रेखांकित होती है। ऐसे में स्वच्छ ईंधन और ऊर्जा प्रौद्योगिकियों के साथ बुनियाद ढांचे में किया गया निवेश वैश्विक ऊर्जा संकट का एकमात्रा स्थाई समाधान है। साथ ही इससे उपभोक्ताओं पर पड़ते बढ़ती कीमतों के दबाव को भी कम किया जा सकता है।

1 डॉलर = 79.66 भारतीय रुपए

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