भारत में कमजोर तबके की 60 फीसदी आबादी पर मंडरा रहा है आपदाओं का खतरा

भारत में रहने वाले सबसे कमजोर तबके की 60 फीसदी आबादी पर बीमारी, प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन का गंभीर खतरा मंडरा रहा है, जो 2040 तक इस वर्ग की करीब 71 फीसदी आबादी को अपनी जद में ले लेगा

By Lalit Maurya

On: Thursday 26 August 2021
 
मनीला में तूफान के बाद आई बाढ़ में अपने सामान को घसीटता एक बच्चा, फोटो: एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी)

यदि जलवायु परिवर्तन के सबसे खराब परिदृश्यों (आरसीपी 8.5) के आधार पर देखें तो भारत में रहने वाले सबसे कमजोर और गरीब तबके की करीब 60 फीसदी आबादी पर बीमारी, प्राकृतिक आपदाओं और जलवायु परिवर्तन का गंभीर खतरा मंडरा रहा है। जो 2040 तक कमजोर तबके की करीब 71 फीसदी आबादी को अपनी जद में ले लेगा। एक तरफ जहां यह वर्ग पहले ही गरीबी, भुखमरी, बीमारी, शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के आभाव से जूझ रहा है, अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन की मार उन्हें गंभीर रूप से प्रभावित करेगी। यह जानकारी हाल ही में इकोनॉमिक एंड सोशल कमीशन फॉर एशिया एंड द पैसिफिक (ईएससीएपी) द्वारा जारी एशिया पैसिफिक डिसास्टर रिपोर्ट 2021 में सामने आई है।

वहीं यदि अपने सबसे करीबी पड़ोसियों की बात करें तो बांग्लादेश में रहने वाले गरीब तबके की 91 फीसदी आबादी पर आपदाओं का खतरा मंडरा रहा है।  इसी तरह नेपाल की 88 फीसदी, भूटान की 45 फीसदी, पाकिस्तान की 31 फीसदी और अफगानिस्तान में रहने वाला 19 फीसदी कमजोर तबका जलवायु परिवर्तन और आपदाओं की मार झेलने को मजबूर है।

वहीं यदि 2040 से 2059 की बात करें तो बांग्लादेश में रहने वाली इस वर्ग की करीब 98 फीसदी आबादी इस खतरे की जद में होगी।  इसी तरह 2040 तक नेपाल की 90 फीसदी, पाकिस्तान की 79 फीसदी, भूटान की 43 फीसदी और अफगानिस्तान की 34 फीसदी कमजोर आबादी इन आपदाओं की मार झेलने को मजबूर होगी, जिसमें जलवायु में आ रहे बदलाव की भी बड़ी भूमिका होगी।

यदि पूरे एशिया-पैसिफिक क्षेत्र को देखें तो ईएससीएपी द्वारा जारी इस रिपोर्ट से पता चला है कि यह क्षेत्र बीमारी, आपदा और जलवायु परिवर्तन के तिहरे खतरे को एक साथ झेलने के लिए मजबूर है, जो यहां की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचा रहा है। अनुमान है कि इन आपदाओं से हर साल इस क्षेत्र को करीब 57.8 लाख करोड़ रुपए (78,000 करोड़ डॉलर) का नुकसान हो रहा है जो जलवायु परिवर्तन की मार के साथ दोगुना करीब 103.8 लाख करोड़ रुपए (140,000 करोड़ डॉलर) तक बढ़ सकता है। गौरतलब है कि यह इस क्षेत्र की जीडीपी का करीब 4.2 फीसदी हिस्सा है। 

पिछले 50 वर्षों में इन आपदाओं से 690 करोड़ लोग हुए हैं प्रभावित

हालांकि रिपोर्ट से यह भी पता चला है कि पिछले कुछ वर्षों के दौरान प्राकृतिक आपदाओं के कारण होने वाली मौतों में कमी आई है। जहां 1970 से 2020 के बीच इन आपदाओं के चलते हर साल औसतन 41,373 लोगो की जान जा रही थी वो आंकड़ा 2019-2020 में घटकर 6,200 पर आ गया है। यदि पिछले 50 सालों में देखें तो प्राकृतिक आपदाओं के चलते एशिया पैसिफिक क्षेत्र में 20 लाख से ज्यादा लोगों की जान गई है, जिनमें से ज्यादातर मौतों के लिए बाढ़, तूफान और सूखा जिम्मेवार था। वहीं करीब 690 करोड़ लोग पिछले 50 वर्षों में इन आपदाओं से प्रभावित हुए हैं।   

रिपोर्ट के मुताबिक प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियों और सरकारों द्वारा सही समय पर उठाए गए जरुरी कदमों का परिणाम है कि इन आपदाओं से मरने वालों की संख्या में कमी आई है, लेकिन अभी भी इस दिशा में काफी कुछ किया जाना बाकी है। हाल ही में कोविड-19 महामारी से उपजे संकट ने स्वास्थ्य को लेकर हमारी कमजोर तैयारियों को उजागर कर दिया है। आज भी हमारी स्वास्थ्य व्यवस्था इतनी मजबूत नहीं है कि वो इस तरह के आने वाले खतरों को झेल सके। यही नहीं जलवायु परिवर्तन के साथ इनका खतरा भी बढ़ता जा रहा है। प्राकृतिक आपदाएं अपने साथ बीमारियां को भी लाती हैं, जिनकी वजह से गरीबी और भुखमरी में भी इजाफा होता है। 

ऐसे में इन संकटों से निपटने के लिए जरुरी है कि आपदा प्रबंधन में जरुरी बदलाव किए जाए, जिसमें इनको रोकने के लिए किया गया निवेश और बचाव शामिल होना चाहिए। रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि इन प्राकृतिक और जैविक खतरों से बचाव और अनुकूलन के लिए हर वर्ष किया गया 20 लाख करोड़ रुपए (27,000 करोड़ डॉलर) का निवेश कहीं बेहतर विकल्प है, जिसकी मदद से इन आपदाओं से बचा जा सकता है। देखा जाए तो यह निवेश इस क्षेत्र की जीडीपी का केवल 0.85 फीसदी हिस्सा है। वहीं यदि इसकी तुलना जलवायु परिवर्तन, बीमारियों और प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान से की जाए तो वो इसका केवल पांचवा हिस्सा ही है। 

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