अनिल अग्रवाल डायलॉग: चरम मौसमी घटनाओं का साल रहा वर्ष 2021

2021 में 30 लाख सालों के मुकाबले कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा सबसे अधिक 416.45 पीपीएम रही

By Rohit Prashar

On: Thursday 03 March 2022
 
सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट द्वारा आयोजित अनिल अग्रवाल डायलॉग कार्यक्रम में एपी डिमरी व रॉक्सी कोल। फोटो: विकास चौधरी

बीता साल 2021 देश और दुनिया के लिए चरम मौसमी घटनाओं का साल रहा। वर्ष 2021 में जहां समुद्र के साथ रहने वाले लोगों को भयंकर चक्रवातों का सामना करना पड़ा, तो वहीं मैदानी इलाकों में लू,  शीत लहर और बिजली गिरने की घटनाओं में भारी जान-माल का नुकसान हुआ। वहीं, पहाड़ी इलाकों में बादल फटने, चट्टानों के दरकने, भूस्खलन, बाढ़ और हिमस्खलन की वजह से तबाही का मंजर देखना पड़ा।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की ओर से आयोजित अनिल अग्रवाल डायलॉग के दूसरे दिन के पहले सत्र में डाउन टू अर्थ के वरिष्ठ संवाददाता अक्षित संगोमल , भारतीय मौसम विभाग के महानिदेशक एम. मोहपात्रा, जवाहर लाल विश्वविद्यालय (जेएनयू) के पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर एपी डिमरी और इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टोपिकल मेटेरियालॉजी के जलवायु वैज्ञानिक रोक्सी मैथ्यू कोल ने वर्ष  2021 को चरम मौसमी घटनाओं का साल बताया।

अक्षित संगोमला ने बताया कि बीते 30 लाख सालों के मुकाबले वर्ष 2021 में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन भी सबसे अधिक रहा। उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन की वजह से चरम मौसमी घटनाओं के कारण 2021 में भारत में 1750 लोगों की जानें गई हैं। इसमें से 787 लोगों की जान बिजली गिरने और आंधी तूफान की वजह से गई हैं। इसके अलावा 759 लोगों की जानें बाढ़ और भारी बारिश, 172 जानें चक्रवात और 32 लोगों की जानें शीत लहर और धूलभरी आंधी की वजह से गई हैं।

उन्होंने बताया कि दक्षिण भारत में मानसून के बाद अधिक बारिश देखी गई। साथ ही उन्होंने गुलाब, शाहीन और तौकते चक्रवात के बारे में भी जानकारी दी।

भारतीय मौसम विभाग के महानिदेशक एम मोहपात्रा ने मौसम में आ रहे बदलावों के ट्रेंड के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि 1901 के बाद वर्ष 2021 पांचवां सबसे अधिक गर्म साल आंका गया है। उन्होंने बताया कि मौसम विभाग के आंकड़ों के अनुसार 1901 से 2001 तक मौसम में इतने बदलाव नहीं देखे गए हैं जितने कि 2001 के बाद देखे जा रहे हैं।

उन्होंने बताया कि अब भारी बारिश की आवृत्ति अधिक देखी जा रही है जो कि पहले देखने को नहीं मिलती थी। मोहपात्रा ने लू और शीत लहर के बढ़ती प्रवृति के साथ बाढ़ और सूखे की घटनाओं की आवृति में भी बढ़ोतरी की बात कही। उन्होंने मौसम विभाग की ओर से अपनाई जा रही नई तकनीकों के बारे में भी जानकारी दी।

संगोमला ने आर्कटिक क्षेत्र में बदलावों के बारे में भी जानकारी दी। उन्होंने बताया कि आर्कटिक क्षेत्र में अन्य क्षेत्रों के मुकाबले चार गुणा तेज गति से तापमान बढ़ रहा है।

डायलॉग के दौरान जेएनयू के पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर एपी डिमरी ने पश्चिमी विक्षोभ और इसके जलवायु परिवर्तन के साथ संबध के बारे में जानकारी दी।

वहीं, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेटेरोलॉजी संस्थान पूणे के जलवायु वैज्ञानिक रोक्सी मैथ्यू कोल ने समुद्री हीटवेव और जलवायु परिवर्तन के बारे में प्रस्तुति के माध्यम से बताया कि हिंद महासागर में दूसरे महासागरों के मुकाबले अधिक गति से तापमान से वृद्धि हो रही है। जिसकी वजह से चक्रवात की घटनाएं बढ़ रही हैं।

उन्होंने बताया कि चक्रवात की वजह से न सिर्फ समुद्र के साथ रहने वाले लोगों को नुकसान उठाना पड़ रहा है, बल्कि मैदानी इलाकों और हिमालयी क्षेत्र के लोगों को भी बारी बारिश, सूखे और बाढ़ की घटनाओं की वजह से हानि पहुंच रही है।

रोक्सी ने बताया कि समुद्र में तापमान के बढ़ने से समुद्री जलीय जीवों के नुकसान के साथ समुद्र के अंदर की जैव विविधता को भी भारी नुकसान पहुंच रहा है। उन्होंने भविष्य में समुद्र के तापमान की सही और गहन जानकारी के लिए बेहतर तरीके से काम करने की जरूरत  बताई ताकि गहन शोध के माध्यम से भविष्य में आने वाले खतरों से बचा जा सके।

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