ट्रंप ने अमेरिकी उदारवादी छवि को धक्का पहुंचाया

अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव पूरी दुनिया में हमेशा से चर्चा का विषय रहा है

By Anil Ashwani Sharma

On: Tuesday 03 November 2020
 

(L) Joe Biden and (R) Donald Trump. Photo: @thehill / Twitter

भारतीय समयानुसार आज शाम के बाद यानी तीन नवंबर को दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश अमेरिका में चुनाव होने जा रहे हैं। यह चुनाव ऐसे समय में हो रहा है, जब पूरी दुनिया कोरोना वायरस से पीड़ित है और अब तक इसका इलाज संभव नहीं हो पाया है। इस चुनाव में यह एक बड़ा मुद्दा बन कर उभरा है। यह चुनाव यह भी दिखाएगा कि आम अमेरिकन भविष्य में अपने देश को किस रूप में देखना पसंद करेगा, एक उदारवादी लोकतांत्रिक देश के रूप में या डर दिखाने वाले देश के रूप में। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव हमेशा से चर्चा का विषय रहा है और पूरी दुनिया के लोग इस चुनाव में अपनी रूचि दिखाते हैं। इसका कारण है कि दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश का नेतृत्व अंतरराष्ट्रीय मामलों पर महत्वपूर्ण असर डालता हैं और इसका असर दुनिया के हर देश पर पड़े बिना नहीं रहता है। 

ध्यान देने की बात है कि इस चुनाव को दुनियाभर के राजनीतिक नेता और नीति विशेषज्ञ अपने रणनीतिक हितों के चश्मे से देखेंगे। दुनिया के अधिकांश लोग यह देखेंगे कि दुनिया का भाग्य किस तरह दांव पर लगा हुआ है। यह निश्चित है कि इस चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिका के बारे में दुनियाभर के लोगों की भावनाओं को बढ़ाने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। 2020 का चुनाव प्रतीकात्मक रूप से विश्व व्यवस्था में प्रतिमानों के बदलाव को भी रेखांकित करता है। इसे पश्चिमी और विशेष रूप से अमेरिकी प्रभुत्व के एक विघटन के रूप में भी देखा जा सकता है।

अमेरिका की वैश्विक धारणाओं की नियमित निगरानी वास्तव में प्रमुख अनुसंधान संगठनों जैसे प्यू रिसर्च सेंटर और गैलप द्वारा की जाती है। अमेरिका की प्रतिष्ठा और प्रभाव के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए अनगिनत क्षेत्रीय और राष्ट्रीय चुनावों का भी आंकलन किया जाता है। लेकिन यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि ट्रंप के चुनाव के बाद से ही अमेरिका की वैश्विक स्थिति खराब होने शुरू हुई है।

सितंबर 2020 में एक प्यू के अध्ययन में नोट किया गया है कि अमेरिका के अनुकूल दृष्टिकोण रखने वाले देशों की संख्या किसी भी विषय बिंदु पर कम रही है। कई अंतरराष्ट्रीय सर्वेक्षणों में दिखाया गया है कि ट्रंप के कोरोनोवायरस महामारी के मामले के दौरान किए गए नेतृत्व के चलते विश्वास में गिरावट दर्ज की गई है। हालांकि यह सही है कि इस तरह की धारणाओं को मापने के लिए जो तौरतरिके अपनाए जाते हैं उसमें कई त्रुटियां संभव है लेकिन यह अस्वीकार करना मुश्किल है कि इन चुनावों का पैमाना आज दुनिया में अमेरिका की दुर्भावनापूर्ण और घटिया छवि के संकेत हैं। इसके लिए अमेरिका में बीते चार सालों के दौरान अफ्रीकी-अमेरिकियों की पुलिस हत्याओं पर भारी विरोध, प्रदर्शनकारी स्वास्थ्यकर्मी,  विनाशकारी आदेश जिम्मेदार हैं।

दुनियाभर में अमेरिकी प्रसिडेंशियल डिबेट को सराहा जाता है और इसे देखने के लिए पूरी दुनिया के लोग और अंतर्राष्ट्रीय मीडिया इंतजार करता है। लेकिन इस बार जो हुआ वह इतिहास में ऐसा नहीं हुआ। क्यों कि इस बार की पहली प्रेसिडेंशियल डिबेट को देखसुन कर अंतरराष्ट्रीय समाचार मीडिया को न केवल आघात लगा बल्कि घोर निराशा भी हुई। इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस डिबेट को पूरी दुनिया के भर के देशों के राष्ट्रीय अखबारों ने जमकर मजाक उड़ाया। उदाहरण के लिए टाइम्स ऑफ इंडिया ने  मडरेसलिंग शीर्षक दिया यानी कीचड़ कुश्ती। अंग्रेजी अखबारों के साथ भारत के क्षेत्रीय अखबारों ने भी जमकर इस बहस का मजाक उड़ाया। विश्व के प्रमुख देशों के प्रमुख अखबारों की हैडिंग कम मजाक बनाने वाली नहीं थी। उदाहरण के लिए स्पेन के अखबार ने शीर्षक दिया “अराजक और विराट तमाशा” (स्पेन में एल पाइस), “एक मजाक, देश के लिए शर्म की बात” (जर्मनी में डेरेगेल) , “अमेरिका के लिए राष्ट्रीय अपमान” (यूके गार्डियन)और “अमेरिकी प्रभाव, राष्ट्रीय शक्ति की मंदी” (चीन में ग्लोबल टाइम्स)।

2016 के बाद से यूरोपीय मीडिया ने अमेरिका के साथ यूरोपीय मोहभंग की रिपोर्ट की है और इसके लिए ट्रंप को जिम्मेदार ठहराया गया है। यह अमेरिकी मानसम्मान में गिरावट की ओर भी इशारा करता है। अप्रैल में आयरिश टाइम्स ने लिखा, अमेरिकियों के लिए खेद महसूस करना मुश्किल होते जा रहा है। ट्रंप ने जिस देश को फिर से महान बनाने का वादा किया था, वह अपने इतिहास में कभी भी इतना दयनीय स्थिति में नहीं रहा।

फाइनेंशियल टाइम्स में साइमन कुपर ने अक्टूबर में में लिखा था कि अमेरिकियों के लिए यूरोपीय दृष्टिकोण अब दया पर निर्भर हो गया है।

अमेरिका ने लंबे समय से एक वैश्विक ताकत के रूप में कार्य किया है, जिसे आज के संदर्भ में विश्व के कई राष्ट्र इसे आधुनिकता के प्रतीक के रूप में देखते हैं।  हाल के वर्षों में बहुत से अंतरराष्ट्रीय अध्ययनों से पता चलता है कि अमेरिका वास्तव में संवाद करने की शक्ति खो रहा है और अमेरिकी उदारवादी शक्ति बहुत कम होते जा रही है क्योंकि ट्रंप और उनके प्रशासन ने इसे  “अमेरिका सबसे आगे” जैसे जुमले के प्रचार के लिए अप्रासंगिक बना दिया है।

जून, 2020 के दौरान दुनियाभर में लोग हिरासत में रहते हुए एक अश्वेत जॉर्ज फ्लॉयड की मौत के कारण अमेरिका में हुए विरोध प्रदर्शनों के जवाब में दुनिया भर में सड़कों पर उतर आए। एकजुटता की अभिव्यक्ति विरोध की सबसे आम विशेषता थी। ये विरोध और बातचीत दुनिया भर में अमेरिकी नागरिक अधिकारों के संघर्ष के प्रतीकात्मक प्रतिध्वनि का संकेत देते हैं। दुनिया को नवीकरण के लिए अमेरिका की क्षमता को कम नहीं आंकना चाहिए, लेकिन न ही अपनी क्षमता को कम आंकना चाहिए लेकिन यह मानने में कोई गुरेज नहीं है कि अमेरिका ने अपने घर में उदार लोकतंत्र और विदेशों में उदार विश्व व्यवस्था के खिलाफ एक सांस्कृतिक संघर्ष को बढ़ावा दिया।

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