अमेरिका चुनाव : यदि बाइडन बने राष्ट्रपति तो इन जलवायु चुनौतियों का करना होगा सामना
यदि अमेरिका में प्रेसिडेंसी बाइडन को मिलती है और उनका विस्तार होता है तो शायद कोविड-19 के बाद रिकवरी के इस युग में दुनिया वापस जलवायु परिवर्तन को कम करने के लिए ट्रैक पर लौट आए
On: Wednesday 04 November 2020
खतरनाक जलवायु परिवर्तन को रोकना, 2.4-3.6 डिग्री सेल्सियस की सीमा के नीचे वैश्विक ताप पर अंकुश लगाना और 2021 में ग्लासगो के लिए संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क फॉर क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) के लिए 26 वें सम्मेलन (सीओपी) में रचनात्मक योगदान देना एक भविष्यगत सपना है।
डेमोक्रेटिक पार्टी से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार जो बाइडन, अगर नवंबर चुनावों में सत्ता में चुने जाते हैं, तो उन्होंने कम से कम जलवायु परिवर्तन पर ऐतिहासिक पेरिस समझौते को फिर से शुरू करने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में नए मानक स्थापित करने का वादा किया है। वर्ष 2015 में हुए पेरिस समझौते का दीर्घकालिक लक्ष्य वैश्विक औद्योगिक तापमान में वृद्धि को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2 ° सेल्सियस (3.6 ° फॉरेनहाइट) से कम रखने और वृद्धि को 1.5 ° सेल्सियस तक सीमित रखने के प्रयासों को आगे बढ़ाना है।
बाइडन ने एक बेहद ही अहम नीति भाषण में जलवायु परिवर्तन मुद्दे पर कहा "जबकि वह (राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प) हमारे सहयोगियों के खिलाफ हो गए, मैं यूएस को पेरिस समझौते में वापस लाऊंगा। साथ ही जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर दुनिया का नेतृत्व करने के तरफ लगाऊंगा और मैं हर दूसरे देश को जलवायु प्रतिबद्धताओं पर आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करूंगा।
वहीं, अक्टूबर 2020 में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने 2030 तक कार्बन उत्सर्जन के पीक पर पहुंचने और 2060 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन के लिए चीन की प्रतिबद्धता की घोषणा की है। जापान 2050 तक अपनी शुद्ध शून्य उत्सर्जन महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने वाला नवीनतम देश बनेगा, जो द्वीप देशों के लिए एक प्रमुख नीतिगत बदलाव है।
इस वक्त अमेरिका के पास पकड़ने के लिए बहुत कुछ है। 46वें प्रेसीडेंट ऑफ द यूनाइटेड स्टेट्स (पीओटीयूएस) के लिए शपथ ग्रहण समारोह जनवरी 2021 में होने की उम्मीद है, जो (यदि) बाइडन के चुने जाने पर जल्द से जल्द पेरिस समझौते में फिर से प्रवेश करने की कानूनी कार्यवाही शुरू कर सकता है।
ऐतिहासिक रूप से, अमेरिका ग्रीनहाउस गैसेस (जीएचजी) का सबसे बड़ा उत्सर्जक रहा है और वर्तमान में जीएचजी का प्रति व्यक्ति सबसे बड़ा उत्सर्जक है।
अप्रैल 2016 में, राष्ट्रपति ओबामा के तहत, संयुक्त राज्य अमेरिका पेरिस समझौते के लिए 196 हस्ताक्षरकर्ताओं में से एक बन गया और 2025 तक उत्सर्जन को कम करने के अपने एनडीसी लक्ष्य को 2005 के स्तर से 26-28 प्रतिशत कम कर दिया। पेरिस समझौते के हिस्से के रूप में, यू.एस. ग्रीन क्लाइमेट फंड (जीसीएफ) के लिए 3 अरब डॉलर भी प्रतिबद्ध है।
इन दोनों लक्ष्यों को ट्रम्प ने वापस ले लिया है और उनमें से सभी का उल्लेख सभी सरकारी वेबसाइटों से किया गया है। अमेरिकी चुनाव के एक दिन बाद 4 नवंबर को ट्रम्प का प्रशासन पेरिस समझौते से हट गया है।
राष्ट्रपति पद के दावेदार जो बाइडन ने स्पष्ट रूप से कहा है कि वह सभी अमेरिकी राज्यों में चट्टानी गैस निकालने की प्रक्रिया फ्रैकिंग पर प्रतिबंध नहीं लगाएंगे और जीवाश्म ईंधन से अमेरिका को दूर करने के लिए पुल ईंधन के रूप में प्राकृतिक गैस के उपयोग की ओबामा युग की नीति के साथ जारी रखेंगे।
प्राकृतिक गैस के लिए फ्रैकिंग पर्यावरण के लिए एक बड़ी लागत है और प्रमुख पर्यावरणीय जोखिम वहन करती है। इनमें से कुछ की बात की जाए तो इनमें भूकंप पैदा करना, कार्सिनोजेनिक रसायन का बचना और भूजल का दूषित होना, मीथेन का रिसाव आदि शामिल हैं। साथ ही फ्रैकिंग वाले स्थानों पर जल को पहुंचाने की एक महत्वपूर्ण पर्यावरणीय लागत होती है।
चार साल पहले के जलवायु मामले में अमेरिका से उम्मीदें जीसीएफ और एनडीसी में उनके योगदान तक ही सीमित थीं, जिसे ट्रम्प ने खत्म कर दिया। हालाँकि, अब ग्लोबल वार्मिंग को 1.5° सेल्सियस तक सीमित करने के लिए जलवायु सकारात्मक कार्रवाई उन्मुख दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित किया गया है।
जलवायु परिवर्तन के लिए बाइडन की योजना में अमेरिका को 100 प्रतिशत स्वच्छ ऊर्जा वाली अर्थव्यवस्था प्राप्त करना और 2050 के बाद शुद्ध शून्य उत्सर्जन तक पहुंचाना शामिल है। इस समय, बाइडन को अमेरिका को इस प्रदूषणकारी पुल ईंधन से दूर करने के लिए एक ठोस योजना बनाने की आवश्यकता है।