भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाने को मजबूर हो जाएंगी महासागरों की हजारों प्रजातियां

उष्णकटिबंधीय समुद्री क्षेत्रों में 2010 तक पिछले 40 वर्षों की अवधि में खुले पानी में पाई जाने वाली प्रजातियों की संख्या में आधे की गिरावट आई है

By Lalit Maurya

On: Wednesday 07 April 2021
 

जिस तरह से वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है उससे महासागर भी अछूते नहीं हैं। इस बढ़ते तापमान के चलते महासागरों में रहने वाले जीवों की हजारों प्रजातियां भूमध्य रेखा से ध्रुवों की ओर जाने को मजबूर हो जाएंगी। जो न केवल समुद्री पारिस्थितिक तंत्र के लिए खतरा है साथ ही इन जीवों पर निर्भर रहने वाले लाखों लोगों की जीविका भी खतरे में पड़ जाएगी।

दुनिया भर में करीब 130 करोड़ लोग इन समुद्री तटों के आसपास रहते हैं जो भोजन के लिए यहां पाई जाने वाली मछलियों पर निर्भर करते हैं। यह जानकर हाल ही में जर्नल पनास में प्रकाशित एक शोध में सामने आई है।

शोध के अनुसार तापमान में हो रही वृद्धि के कारण उष्णकटिबंधीय समुद्री क्षेत्रों में 2010 तक 40 वर्षों की अवधि में खुले पानी में पाई जाने वाली प्रजातियों की संख्या में आधे की गिरावट आई है। इस अवधि के दौरान उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में समुद्र की सतह के तापमान में करीब 0.2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि दर्ज की गई है।

इस शोध से जुड़ी शोधकर्ता छाया चौधरी के अनुसार उत्तरी गोलार्ध में बदलाव बहुत नाटकीय ढंग से हो रहा है जहां समुद्र का तापमान बड़ी तेजी से बढ़ रहा है। यहां पहले ही जलवायु परिवर्तन प्रजातियों की विविधता पर असर डाल रहा है। हालांकि मछलियों के बढ़ते शिकार ने यहां जैव विविधता पर असर डाला है पर शोधकर्ताओं के अनुसार तापमान में हो रही वृद्धि भी यहां प्रजातियों की संख्या में आ रही गिरावट के लिए जिम्मेवार है।

इस शोध में 1955 से लेकर 2015 के दौरान 60 वर्षों की अवधि में मछली, घोंघों, पक्षी और कोरल सहित 48,661 समुद्री प्रजातियों के आंकड़ों का विश्लेषण किया गया है। शोधकर्ताओं के अनुसार उष्णकटिबंधीय क्षेत्र लम्बे समय से बड़ी मात्रा में जैवविविधता का घर रहा है। पर जिस तरह से जलवायु में परिवर्तन हो रहा है उसपर यदि लगाम नहीं लगाई गई तो यह जल्द गायब हो सकती है।

1,500 प्रजातियों में दर्ज की गई है गिरावट

इस शोध से जुड़े शोधकर्ता मार्क कोस्टेलो ने बताया कि हमारे निष्कर्ष से पता चला है कि भूमध्य रेखा पर लगभग 1,500 प्रजातियों में गिरावट आई है और यह सदी के अंत तक जारी रहेगी। हालांकि यह किस गति से कम होगी यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम ग्रीनहाउस गैसों का कितना उत्सर्जन करते हैं।

उनके अनुसार भूमध्य रेखा के उत्तर में ध्रुवों की ओर प्रवास कहीं अधिक स्पष्ट था, जहां महासागर दक्षिणी गोलार्ध की तुलना में कहीं ज्यादा तेजी से गर्म हो रहे हैं। साथ ही यह प्रभाव समुद्र तल पर रहने वाली तथाकथित बेन्थिक प्रजातियों की तुलना में खुली पानी की मछलियों के बीच कहीं अधिक प्रचलित था।

उनके अनुसार बेन्थिक प्रजातियों के ध्रुवों की ओर प्रवास करने में पीढ़ियों गुजर जाती हैं, जबकि उच्च समुद्र में रहने वाली मछलियां पानी के साथ आगे बढ़ सकती हैं।

अध्ययन से पता चला है कि जब उष्णकटिबंधीय समुद्र का वार्षिक औसत तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है तब वहां समुद्री जीवन में गिरावट आने लगती है, जिसकी दर प्रजातियों के आधार पर अलग-अलग होती है। जीवाश्म रिकॉर्ड बताते हैं कि 140,000 साल पहले वही हुआ था, जो अब हो रहा है। पिछली बार भी सतह का वैश्विक तापमान उतना ही गर्म था जितना अब है।

हालांकि किसी एक प्रजाति पर इसका क्या असर होगा और वाणिज्यिक मछलियों के स्टॉक पर क्या प्रभाव होगा इसका अध्ययन नहीं किया गया है, पर इतना स्पष्ट है कि इसका असर दुनिया के कई हिस्सों पर पड़ेगा और किसपर इसका सबसे ज्यादा असर होगा।

हाल ही में जर्नल नेचर में छपे एक अन्य शोध से पता चला था कि यदि तापमान में हो रही वृद्धि इसी तरह जारी रहती है तो उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में तटों से करीब 370 किलोमीटर के दायरे में मछलियों के पकड़ने की क्षमता 2050 तक 40 फीसदी घट जाएगी। इससे पहले यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलोम्बिया द्वारा किए एक शोध से पता चला था कि मछलियां 26 किलोमीटर प्रति दशक की दर से ध्रुवों की ओर पलायन कर रही हैं। ऐसे में जितना जल्दी हो सके जलवायु परिवर्तन पर लगाम लगाना जरुरी है।

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