परिवर्तन का नक्शा

तापमान बढ़ने पर सूखा, बाढ़, अप्रत्याशित बारिश और समुद्र के जलस्तर में वृद्धि बड़ी आबादी को प्रभावित करेगी

On: Thursday 15 November 2018
 
रितिका बोहरा / सीएसई

भारत जलवायु परिवर्तन के लिहाज से 12वां सबसे संवेदनशील देश है। इसकी 60 प्रतिशत से अधिक कृषि बारिश पर निर्भर है और यहां दुनिया के 33 प्रतिशत गरीबों की रिहाइश है, इसलिए जलवायु परिवर्तन से देश की खाद्य और पोषण सुरक्षा पर गंभीर असर पड़ेगा। तापमान बढ़ने पर सूखा, बाढ़, अप्रत्याशित बारिश और समुद्र के जलस्तर में वृद्धि बड़ी आबादी को प्रभावित करेगी। भारत के विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों में वैश्विक तापमान का क्या प्रभाव पड़ेगा, इसका व्यापक आकलन मानचित्रों के माध्यम से किया गया है

इन्फोग्राफिक्स : राजकुमार सिंह

7,517 किलोमीटर भारतीय तट को पश्चिमी तट, पूर्वी तटीय मैदान और जैव विविधता युक्त समृद्ध भारतीय द्वीपों में विभाजित किया जा सकता है। यह क्षेत्र समुद्र स्तर के बढ़ने के कारण लगातार, गंभीर चक्रवात और समुद्री प्रवेश जैसे जलवायु परिवर्तन प्रभावों से प्रभावित हो रहा है।
(स्रोत: राम राव सीए, एट अल, एटलस ऑन वलनरबिलिटी ऑफ इंडियन एग्रीकल्चर टु क्लाइमेट चेंज, सेंट्रल रिसर्च इंस्टिट्यूट फॉर ड्रायलैंड एग्रीकल्चर, हैदराबाद, 2013)

थार रेगिस्तान भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र के 10 प्रतिशत हिस्से में है। यह दुनिया का सातवां सबसे बड़ा रेगिस्तान है। थार दुनिया का सबसे अधिक आबादी वाला रेगिस्तान है। हाल के दिनों में इस क्षेत्र में बाढ़ देखी गई है (स्रोत: राम राव सीए, एट अल, एटलस ऑन वलनरबिलिटी ऑफ इंडियन एग्रीकल्चर टु क्लाइमेट चेंज, सेंट्रल रिसर्च इंस्टिट्यूट फॉर ड्रायलैंड एग्रीकल्चर, हैदराबाद, 2013)

भारत के अधिकांश वर्षा क्षेत्रों वाला यह हिस्सा, देश के खाद्यान्न उत्पादन में 40 प्रतिशत से अधिक का योगदान देता है। अनुमान लगाया जा रहा है कि पहले से ही बाढ़ और सूखे की मार झेल रहा यह क्षेत्र भविष्य में जलवायु परिवर्तन के कारण गंभीर रूप से प्रभावित होगा, जिससे देश में खाद्य असुरक्षा के गहराने की आशंका है (स्रोत: राम राव सीए, एट अल., एटलस ऑन वलनरबिलिटी ऑफ इंडियन एग्रीकल्चर टु क्लाइमेट चेंज, सेंट्रल रिसर्च इंस्टिट्यूट फॉर ड्रायलैंड एग्रीकल्चर, हैदराबाद, 2013)

हिमालय देश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 16.2 प्रतिशत हिस्सा है। यह न केवल भारत का एक प्रमुख वाटरशेड है बल्कि मॉनसून प्रणाली में भी अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इस पर्वत श्रृंखला पर जलवायु परिवर्तन का प्रभाव पूरे उप-महाद्वीप को प्रभावित कर सकता है (स्रोत: राम राव सीए, एट अल., एटलस ऑन वलनरबिलिटी ऑफ इंडियन एग्रीकल्चर टु क्लाइमेट चेंज, सेंट्रल रिसर्च इंस्टिट्यूट फॉर ड्रायलैंड एग्रीकल्चर, हैदराबाद, 2013)

सिंधु और गंगा के मैदान दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाले कृषि उत्पादक पारिस्थितिक तंत्रों में से एक है। यह क्षेत्र उत्तर में हिमालय और दक्षिण में प्रायद्वीप के बीच 400 से 800 किमी लम्बा है। भविष्य में जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप आने वाली बाढ़ और सूखा दोनों ही इस क्षेत्र में कृषि उत्पादकता को प्रभावित करेंगे (स्रोत: राम राव सीए, एट अल., एटलस ऑन वलनरबिलिटी ऑफ इंडियन एग्रीकल्चर टु क्लाइमेट चेंज, सेंट्रल रिसर्च इंस्टिट्यूट फॉर ड्रायलैंड एग्रीकल्चर, हैदराबाद, 2013)

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