2 डिग्री से अधिक हुआ तापमान तो कृषि और सेहत के लिए खतरा: रिपोर्ट
रिपोर्ट में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से लू और भारी बारिश की घटनाएं बढ़ रही हैं
On: Tuesday 20 August 2019


नेचर क्लाइमेट चेंज पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि यूरोप और उत्तरी अमेरिका और एशिया में लू और बारिश की चरम घटनाएं लंबे समय तक रहती हैं और दुनिया 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक गर्म होती है तो कृषि और मानव स्वास्थ्य पर इसके गंभीर असर दिखाई देगा।
जलवायु परिवर्तन के कारण लगातार और अधिक तीव्र चरम मौसम की घटनाओं के होने की उम्मीद है। लेकिन ये घटनाएं कितनी लगातार होंगी, कहा नहीं जा सकता है, जैसे कि 2018 में यूरोपीय ग्रीष्मकालीन हीटवेव के कारणों का पता सही से नहीं चला अथवा हम इसे समझने में असफल रहे।
जर्मनी में क्लाइमेट एनालिटिक्स के कार्ल-फ्रेडरिक श्लेस्नर और उनके सहयोगियों ने उत्तरी गोलार्ध में लगातार हो रही चरम घटनाओं का मॉडल तैयार किया है, यदि तापमान 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक बढ़ जाता है, तो ऊपरी सीमा निर्धारित होती है। उन्होंने पाया कि गर्मियों में उत्तरी गोलार्ध के देशों में औसतन, कम से कम एक सप्ताह तक भारी बारिश की 26 प्रतिशत अधिक संभावना होती है। गर्मियों में बहुत अधिक बारिश से विनाशकारी बाढ़ आ सकती है, जैसे वर्तमान में भारत में देखा जा सकता है।
श्लेस्नर कहते है कि केवल अधिक गरमी ही नहीं पड़ रही है, अपितु हम मौसम को भी बदल रहे हैं। यह किसानों, पारिस्थितिक तंत्रों के लिए आवश्यक है कि हम शहरों का निर्माण कैसे करते हैं। 2019 की गर्मियों में हीटवेव और बाढ़ ने अमेरिकी राज्यों को प्रभावित किया है। 2018 और 2019 में भारत और चीन में तापमान ने रिकॉर्ड तोड़ा है, जून 2019 में भारत में तापमान 50 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच गया, जिससे हीटवेव और अन्य समस्याएं बढ़ गई, जिससे दर्जनों लोगों की मौत हो गई।
उत्तरी गोलार्ध में लगातार अधिक हीटवेव की संभावना है, यहां लंबी गर्म अवधि की संभावना औसतन 4 प्रतिशत बढ़ रही है। इसका कारण कमजोर पड़ने वाली जेट स्ट्रीम है, जो एक वार्मिंग आर्कटिक द्वारा संचालित होती है।
रॉयल नीदरलैंड मौसम विज्ञान संस्थान के गीर्ट जान वैन ओल्डेनबॉर्ग कहते हैं कि लगातार हो रहे परिवर्तन पर नजर रखनी होगी, क्योंकि मौसम में हो रहे बदलाव की बढ़ती अवधि हमारे लिए ठीक नहीं है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इन घटनाओं से लगभग पूरी तरह से बचा जा सकता है - यदि तापमान में वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित रखा जाय, जोकि पेरिस जलवायु सौदे का एक लक्ष्य भी है, वर्तमान स्थिति को देखते हुए जिसे पाना कठिन है। रीडिंग यूनिवर्सिटी की हन्ना क्लोके कहती हैं कि यह एक उपयोगी मॉडलिंग प्रयोग है और इस मॉडल से कुछ सकारात्मक सबूत भी मिले हैं, कहा जा सकता है कि हम ग्लोबल वार्मिंग को सीमित रख कर इन घटनाओं पर विजय पा सकते हैं।
श्लेस्नर का कहना है कि, बुरी खबर यह है कि दुनिया 3 डिग्री से अधिक तापमान की ओर बढ़ रही है, जोकि बहुत बड़े बदलाव और खतरों को निमंत्रण देना जैसा है।