भारतीय इतिहास का आठवां सबसे गर्म वर्ष रहा 2020
2020 में तापमान सामान्य से 0.29 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया जबकि जलवायु से जुडी आपदाओं के चलते देश भर में 1,500 से भी ज्यादा लोगों की जान गई थी
On: Tuesday 05 January 2021
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा आज जारी रिपोर्ट से पता चला है कि 2020 भारतीय इतिहास का आठवां सबसे गर्म वर्ष था। इस वर्ष तापमान सामान्य से 0.29 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया। हालांकि यदि वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि की बात करें तो 2020 का औसत तापमान सामान्य से 1.2 डिग्री सेल्सियस अधिक था।
गौरतलब है कि 2016 में अब तक का सबसे अधिक तापमान रिकॉर्ड किया गया था। जब तापमान 1980 से 2010 के औसत की तुलना में 0.71 डिग्री सेल्सियस अधिक था। यह स्पष्ट तौर पर दिखाता है कि जलवायु में आ रहे बदलावों के चलते देश में तापमान लगातार बढ़ रहा है।
यदि देश में तापमान के बढ़ने को देखें तो अब तक के 12 सबसे गर्म वर्ष हाल के पंद्रह वर्षों (2006 से 2020) के दौरान रिकॉर्ड किए गए थे। इसी तरह यदि अब तक के सबसे पांच गर्म वर्षों की बात करें तो 2016 पहले स्थान पर था जब तापमान सामान्य से 0.71 डिग्री सेल्सियस अधिक था। इसके बाद 2009 (+0.55 डिग्री सेल्सियस), 2017 (+0.54 डिग्री सेल्सियस), 2010 (+0.539 डिग्री सेल्सियस), और 2015 में तापमान सामान्य से 0.42 डिग्री सेल्सियस अधिक रिकॉर्ड किया गया था।
यदि इस वर्ष जलवायु से जुडी आपदाओं की बात करें तो उनके कारण 1,500 से भी ज्यादा लोगों की जान गई। इसमें 600 से ज्यादा मौतें मानसून के दौरान आई भारी बारिश, बाढ़ और भूस्खलन के कारण गई थी। वहीं तूफान और बिजली गिरने के कारण 815 मौतें हुई थी जबकि शीत लहर के चलते देश भर में 150 से अधिक जानें गई थी।
औसत से 109 फीसदी ज्यादा हुई 2020 में बारिश
यदि रिपोर्ट में दिए आंकड़ों पर गौर करें तो 2020 में सामान्य से ज्यादा बारिश रिकॉर्ड की थी। इस वर्ष सामान्य से 109 फीसदी ज्यादा बारिश रिकॉर्ड की गई थी। यह 1994 के 112 फीसदी एलपीए और 2019 के 110 फीसदी एलपीए के बाद तीसरा सबसे अधिक औसत था। इस बार देश में मानसून ने सामान्य से 12 दिन पहले ही दस्तक दे दी थी।
गौरतलब है कि इस वर्ष 26 जून तक मानसून देश के सभी हिस्सों में पहुंच चुका था, जोकि इसकी सामान्य तिथि (8 जुलाई) से 12 दिन पहले था। इस वर्ष यदि मानसून (जून से सितम्बर) की बात करें तो बारिश औसत से 109 फीसदी ज्यादा थी। इसी तरह मध्य भारत में औसत से 115 फीसदी, दक्षिण प्रायद्वीप में 129 फीसदी और पूर्व और पूर्वोत्तर भारत में 106 फीसदी बारिश रिकॉर्ड की गई थी, जबकि उत्तर पश्चिम भारत में औसत का केवल 84 फीसदी बारिश हुई थी।
कितना बड़ा है जलवायु परिवर्तन से खतरा
यह जलवायु परिवर्तन का ही नतीजा है कि पिछले वर्ष भारत में आई बाढ़ और चक्रवाती तूफान अम्फान को 2020 में आई दुनिया की 10 सबसे महंगी आपदाओं की सूची में शामिल किया गया था। इन दोनों से करीब 1.70 लाख करोड़ का नुकसान हुआ था, हालांकि यह जो अनुमान है वो सिर्फ उस नुकसान को दिखाता है जिसका बीमा है। यदि वास्तविक नुकसान की बात करें तो वो इससे कई गुना ज्यादा था।
भारत में मानसून के दौरान आई बाढ़ और भूस्खलन से करीब 73,569 करोड़ रुपए (1,000 करोड़ डॉलर) का नुकसान हुआ था। वहीं इसके चलते 2,067 लोगों की मौत हुई थी। साथ ही इसके चलते करीब 40 लाख लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा था। केरल में आए भूस्खलन में 49 लोगों की मौत हो गई थी। जबकि असम में मई से अक्टूबर के बीच आई बाढ़ में करीब 60,000 लोग प्रभावित हुए थे, वहीं 149 लोगों की मौत हो गई थी। इसी तरह हैदराबाद में 24 घंटों के दौरान रिकॉर्ड 29.8 सेंटीमीटर बारिश दर्ज दी गई थी, जोकि पिछले रिकॉर्ड से 6 सेंटीमीटर ज्यादा है। जिससे आई बाढ़ में करीब 50 लोगों की जान गई थी।
यह लगातार दूसरा वर्ष है जब मानसून के दौरान सामान्य से ज्यादा बारिश दर्ज की गई है। वहीं पिछले 65 वर्षों में अत्यधिक बारिश की इन घटनाओं में करीब तीन गुना वृद्धि दर्ज की गई है। जोकि स्पष्ट तौर पर जलवायु में आ रहे बदलावों का ही नतीजा है। इसी तरह एक्शन ऐड द्वारा प्रकाशित रिपोर्ट ‘कॉस्ट ऑफ क्लाइमेट इनएक्शन’ से पता चला है कि 2050 तक भारत के 4.5 करोड़ से ज्यादा लोग जलवायु से जुड़ी आपदाओं के चलते अपना घर छोड़ने के लिए मजबूर हो जाएंगे। यह आंकड़ा वर्तमान से करीब 3 गुना ज्यादा है। वर्तमान में सूखा, समुदी जलस्तर के बढ़ने, जल संकट, कृषि और इकोसिस्टम को हो रहे नुकसान जैसी आपदाओं के चलते देश में 1.4 करोड़ लोग पलायन करने को मजबूर हैं।
इसी तरह हाल ही में काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीइइडब्लू) द्वारा किए शोध से पता चला है कि देश में 75 फीसदी से ज्यादा जिलों पर जलवायु परिवर्तन का खतरा मंडरा रहा है। इन जिलों में देश के करीब 63.8 करोड़ लोग बसते हैं।
हाल ही में यूएन द्वारा प्रकाशित "एमिशन गैप रिपोर्ट 2020" से पता चला है कि यदि तापमान में हो रही वृद्धि इसी तरह जारी रहती है, तो सदी के अंत तक यह वृद्धि 3.2 डिग्री सेल्सियस के पार चली जाएगी। जिसके विनाशकारी परिणाम झेलने होंगे। तापमान में आ रही इस वृद्धि का सीधा असर आम लोगों के जनजीवन पर भी पड़ेगा।
तापमान में हो रही यह बढ़ोतरी हालांकि अब आम बात बनती जा रही है। और शायद आम लोगों को इसका असर पता नहीं चल रहा या फिर वो उसे अनदेखा कर रहे हैं। लेकिन जिस तरह से और जिस रफ्तार से तापमान में यह बढ़ोतरी हो रही है, उसके चलते बाढ़, सूखा, तूफान, हीट वेव, शीत लहर जैसी घटनाएं बहुत आम बात हो जाएंगी और यह हो भी रहा है। जिसका सबसे ज्यादा असर आम जन पर ही पड़ेगा। कुछ पर सीधा और कुछ पर उसके अन्य रूपों में। कभी दशकों में पड़ने वाला विकराल सूखा आज हर साल पड़ रहा है। बाढ़ और तूफानों का आना आम बात बनता जा रहा है। हम इन आपदाओं का बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं। पर इसके असर को टाल नहीं सकते। डर है कि कहीं इंसानी महत्वाकांक्षा उसके ही विनाश का कारण तो नहीं बन जाएगी।