जलवायु संकट: अगले पांच वर्षों में 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर सकता है तापमान

रिपोर्ट में इस बात की भी 93 फीसदी आशंका जताई है कि वर्ष 2022 से 2026 के बीच कोई एक साल ऐसा हो सकता है जो इतिहास के पन्नों में अब तक के सबसे गर्म वर्ष के रूप में दर्ज हो जाएगा

By Lalit Maurya

On: Tuesday 10 May 2022
 

विश्व मौसम विज्ञान संगठन यानी डब्लूएमओ द्वारा जारी नई रिपोर्ट ‘द ग्लोबल एनुअल टू डिकेडल क्लाइमेट अपडेट’ के हवाले से पता चला है कि इस बात की करीब 48 फीसदी सम्भावना है कि अगले पांच वर्षों में वैश्विक तापमान में होती वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगी। इतना ही नहीं यह आशंका समय के साथ और बढ़ती जा रही है।

वैश्विक तापमान में होती वृद्धि पहले ही पूर्व-औद्योगिक काल के औसत तापमान स्तर से 1.1 डिग्री सेल्सियस ज्यादा हो चुकी है। मतलब कि इसके पेरिस समझौते के 1.5 डिग्री सेल्सियस पर पहुंचने से केवल 0.4 डिग्री सेल्सियस दूर है।

गौरतलब है कि 2015 में पैरिस समझौते के तहत 1.5 डिग्री सेल्सियस का लक्ष्य रखा गया था, जोकि देशों से ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करने हेतु, ठोस जलवायु कार्रवाई का आहवान करता है, जिससे वैश्विक तापमान में होती वृद्धि को तय सीमा के भीतर रखा रखा जा सके।  

इतना ही नहीं रिपोर्ट में इस बात की भी 93 फीसदी आशंका जताई है कि वर्ष 2022 से 2026 के बीच कम से कम कोई एक साल ऐसा हो सकता है जो इतिहास के अब तक के सबसे गर्म वर्ष के रूप में दर्ज हो सकता है। गौरतलब है कि अब तक, वर्ष 2016 इतिहास के सबसे गर्म वर्ष के रूप में दर्ज है। जब तापमान 20वीं सदी के औसत तापमान से 0.99 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया था।

साल दर साल बढ़ रही है गर्मी

वहीं नेशनल ओसेनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के नेशनल सेंटर फॉर एनवायर्नमेंटल इंफॉर्मेशन (एनसीईआई) द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार 2021 इतिहास का छठा सबसे गर्म वर्ष था, जब तापमान 20वीं सदी के औसत तापमान से 0.84 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया था। 

इतना ही नहीं संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी “एमिशन गैप रिपोर्ट 2020” में भी इस बात की आशंका जताई थी कि यदि तापमान में हो रही वृद्धि इसी दर से जारी रहती है, तो सदी के अंत तक यह वृद्धि 3.2 डिग्री सेल्सियस के पार चली जाएगी। 

इस बारे में संयुक्त राष्ट्र के मौसम विज्ञान एजेंसी के महासचिव पेटेरी तालास ने बताया कि यह रिपोर्ट दर्शाती है कि दुनिया, पैरिस समझौते में तापमान वृद्धि को लेकर तय लक्ष्यों की निचली सीमा तक पहुंच रही है। उनका कहना है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस बिना सोचे-समझे प्रस्तुत किया गया कोई आंकड़ा नहीं है, बल्कि यह बिंदु का  संकेतक है, जहां से लोगों और पूरे ग्रह के लिए जलवायु में होते बदलाव हानिकारक होते जाएंगें।

हाल ही में जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी पैनल (आईपीसीसी) द्वारा जारी छठी मूल्यांकन रिपोर्ट “क्लाइमेट चेंज 2022: इम्पैटस, अडॉप्टेशन एंड वल्नेरेबिलिटी” में भी इस बात के संकेत दिए हैं कि यदि जलवायु में आते बदलावों को रोकने के लिए अभी प्रयास न किए गए तो भविष्य में हमारे बच्चे उसके गंभीर परिणाम झेल रहे होंगें।

झेलने होंगें गंभीर परिणाम

समस्या कितनी गंभीर है इसका अंदाजा इसीसे लगा सकते हैं कि यदि तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है तो दुनिया में करीब 300 करोड़ लोग पानी की गंभीर समस्या से त्रस्त होंगें, जबकि 4 डिग्री सेल्सियस पर यह आंकड़ा बढ़कर 400 करोड़ के पार चला जाएगा।

इतना ही नहीं वैज्ञानिकों का अनुमान है कि यदि सदी के अंत तक तापमान में होती वृद्धि 1.6 डिग्री सेल्सियस से नीचे रहती है तो भी करीब 8 फीसदी कृषि भूमि खाद्य उत्पादन के लिए अनुपयुक्त हो जाएगी। साथ ही इसका असर पशुधन पर भी पड़ेगा। इसका सीधा असर खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य पर भी होगा।

यूएन एजेंसी प्रमुख पेटेरी तालास ने चेतावनी दी है कि जब तक देश ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन बंद नहीं करते, तापमान में होती वृद्धि इसी तरह जारी रहेगी। उनका कहना है कि इसके साथ-साथ हमारे महासागर गर्म और अधिक क्षारीय होते जाएंगें। इसके साथ ही समुद्र और ग्लेशियरों में जमा बर्फ पिघलती रहेगी, समुद्र का जलस्तर बढ़ता रहेगा और मौसम की चरम घटनाएं पहले से कहीं ज्यादा विनाशकारी होती जाएंगी।

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