जानवरों के व्यवहार में आ रहा है बदलाव, जलवायु परिवर्तन है बड़ा कारण

शोधकर्ताओं नें 900 से अधिक मादा कारिबू (हिरन) की गतिविधि और भ्रमण (मूवमेंट) का विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि लंबी दूरी तय करने वाली कारिबू वसंत से पहले ही बच्चे को जन्म दे रही हैं।

By Dayanidhi

On: Friday 06 November 2020
 

मानवीय गतिविधियां तेजी से प्राकृतिक दुनिया को बदल रही हैं। इन गतिविधियों से सबसे दूरस्थ क्षेत्र आर्कटिक भी अछूता नहीं रहा। आज आर्कटिक के मौसम में भी बदलाव आ रहा है, जो यहां रहने वाले जानवरों को प्रभावित कर रहा है। अब आर्कटिक एक नए पारिस्थितिक में प्रवेश कर रहा है, जिसके मानवता के लिए खतरनाक परिणाम हो सकते हैं। हालांकि आर्कटिक से पर्याप्त जानवरों की निगरानी के आंकड़े मौजूद हैं, लेकिन अधिकांश जानवरों की खोज और उन तक पहुंच पाना मुश्किल है। शोधकर्ताओं ने नए आर्कटिक एनिमल मूवमेंट आर्काइव (एएएमए) का उपयोग कर जानवरों की गतिविधि के बारे में पता लगाया है।

मैरीलैंड विश्वविद्यालय के जीवविज्ञानी सहित एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने पाया कि जानवर जलवायु परिवर्तन का अप्रत्याशित तरीके से मुकाबला कर रहे हैं। जानवरों  की गतिविधि उनके भ्रमण (मूवमेंट) को लेकर बड़े पैमाने पर आंकड़ों के संग्रह का उपयोग कर अध्ययन किया गया है। आंकड़ों के इस संग्रह में आर्कटिक और उप-आर्कटिक में किए गए अध्ययन के आंकड़े शामिल हैं।  आर्कटिक और उप-आर्कटिक एक विशाल क्षेत्र में फैला है जो जानवरों की संख्या में गिरावट सहित इनपर ग्लोबल वार्मिंग के कारण कुछ सबसे नाटकीय प्रभाव पड़ रहे हैं।

आंकड़ों के संग्रह को विकसित करने के बाद, शोधकर्ताओं ने इसका उपयोग तीन मामलों के अध्ययन के लिए किया, जिसमें जलवायु परिवर्तन के कारण सुनहरे ईगल्स, भालू, कारिबू (हिरन), मूस और भेड़ियों के व्यवहार के बीच आश्चर्यजनक पैटर्न का पता चला है। यह कार्य अत्यंत बड़े पैमाने पर जानवरों की पारिस्थितिकी का अध्ययन करने और महत्व दोनों को प्रदर्शित करता है। यह शोध जर्नल साइंस में प्रकाशित हुआ है।

शोधकर्ताओं ने कहा कि यह पहला उदाहरण है जिसे हम वैश्विक जानवरों  के भ्रमण (मूवमेंट) संबंधी पारिस्थितिकी कह सकते हैं। हम पृथ्वी पर जानवरों की आबादी की निगरानी करने की अपनी क्षमता बढ़ा रहे हैं।

समुद्र की सतह के तापमान और वैश्विक वन आवरण जैसी चीजों की बड़े पैमाने पर निगरानी करने से जलवायु परिवर्तन और मानव गतिविधि के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी का खुलासा हुआ है। लेकिन जानवरों के व्यवहार के बारे में अध्ययन करना मुश्किल है, क्योंकि जानवरों की पारिस्थितिकी के दुनिया भर में अलग-अलग क्षेत्रों में फैली हुई है जिसका अब तक अध्ययन नहीं किया गया है। फिर भी जानवरों से संबंधित आवश्यक आंकड़ों को विभिन्न एजेंसियों और संसाथओं द्वारा एकत्र किया जाता रहा हैं।

इन मुद्दों को समझाने के लिए, गुरारी और उनके सहयोगियों ने दुनिया भर में  एकत्र किए गए आंकड़ों को साझा करने की बात कही। उन्होंने आर्कटिक भर में राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और शोध समूहों के वैज्ञानिकों के साथ वर्षों बिताए और आंकड़े एकत्र किए जिसे वे आर्कटिक एनिमल मूवमेंट आर्काइव (एएएमए) कहते हैं। वर्तमान में संग्रह (आर्काइव) में 17 देशों के 100 से अधिक विश्वविद्यालयों, सरकारी एजेंसियों और संरक्षण समूहों के शोधकर्ताओं का योगदान शामिल है।

संग्रह में 1991 और वर्तमान के बीच 8,000 से अधिक जानवरों का प्रतिनिधित्व करने वाले 201 स्थलीय और समुद्री जानवरों  की निगरानी के अध्ययन के आंकड़े शामिल हैं। इन आंकड़ों का उपयोग करते हुए, गुरारी और उनकी लैब के सदस्यों ने 2000 से 2017 तक 900 से अधिक मादा कारिबू (हिरन) की गतिविधि और भ्रमण (मूवमेंट) का विश्लेषण किया। उन्होंने पाया कि लंबी दूरी तय करने वाली कारिबू वसंत से पहले बच्चे को जन्म दे रही हैं। लेकिन प्रवास न करने वाली तथा पहाड़ और तराई में रहने वाली कारिबू (हिरन) में से केवल उत्तर में रहने वाली आबादी में इस तरह के बदलाव दिख रहे थे। हालांकि इस तरह के बदलाव रहस्य बने हुए हैं। उनके व्यवहार को समझना यह अनुमान लगाने के लिए महत्वपूर्ण है कि वे बदलते मौसम का किस तरह मुकाबला करेंगे, क्योंकि आर्कटिक गर्म हो रहा है और कई तरह के पशुआों की आबादी में गिरावट जारी है।

गुरारी ने कहा यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि ये रुझान आबादी को किस तरह प्रभावित कर सकते हैं। एक ओर पहले जन्म देना बेहतर हो सकता है, क्योंकि यह बछड़ों (कल्वेस) को गर्मी के मौसम में बढ़ने का अधिक अवसर देता है। दूसरी ओर, बहुत जल्दी जन्म देने का मतलब सही से विकास न होना हो सकता है। इस तरह बड़े पैमाने पर बदलाव, आबादी और प्रजातियां जो  ऐसे दूरस्थ और कठोर वातावरण में रह रही है यह  अभूतपूर्व है। इन परिणामों से ऐसे पैटर्न सामने आते हैं जैसा हमने कभी सोचा नहीं था। पर्यावरणीय परिवर्तनों को अपनाने को लेकर कारिबू (हिरन) के विकास से लेकर उनकी क्षमता तक हर चीज के बारे में जानकारी आवश्यक है।

कारिबू का अध्ययन करने के लिए विकसित किए गए आंकड़ों के विश्लेषण करने वाले उपकरण का गुरारी और उनके सहयोगियों के नेतृत्व में एक अन्य मामले केअध्ययन के लिए भी किया गया था।

कोलंबिया विश्वविद्यालय के एक शोधकर्ता स्कॉट लाओप्ते ने 1993 से 2017 तक 100 से अधिक सुनहरे ईगल्स के गतिविधि की तुलना वाले विश्लेषण में पाया कि वसंत में उत्तर की ओर प्रवास करने वाले अपरिपक्व पक्षी हल्के सर्दियों से पहले पहुंचे, जबकि वयस्क पक्षियां वहां नहीं गए। पैसिफिक डेकाडल ऑसिलेशन नामक बड़े पैमाने पर जलवायु चक्र के जवाब में युवा पक्षियों पर समय परिवर्तन का प्रभाव पड़ रहा है, जोकि जलवायु परिवर्तन के कारण हो रहा है। इस तरह पक्षियों  में आयु-संबंधी व्यवहार परिवर्तन केवल कुछ दशकों की गतिविधियों से दिख रहा है। इन आंकड़ों से पता चलता है कि यह उनके प्रजनन को भी प्रभावित कर सकता है।

वाशिंगटन विश्वविद्यालय के पीटर महोनी द्वारा 1998 से 2019 तक किए गए अध्ययन में  भालू, कारिबू, मूस और भेड़ियों की गतिविधि को देखा गया। अध्ययन से पता चला है कि प्रजाति मौसमी तापमान और सर्दियों में बर्फ की स्थिति में अलग-अलग प्रतिक्रिया देती है। उन अंतरों से प्रजातियों की परस्पर क्रिया, भोजन प्रतियोगिता और शिकार की गतिशीलता प्रभावित हो सकती है।

वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि अन्य शोधकर्ता इस बात की लगातार जांच जारी रखेंगे कि, जानवर बदलते आर्कटिक का मुकाबला कर पा रहे हैं या नहीं।  

 

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