बिगड़ रहा है पृथ्वी का ऊर्जा संतुलन, 2005 की तुलना में दोगुनी ऊष्मा कर रही है जमा

पृथ्वी पर जमा इस अतिरिक्त ऊर्जा के कारण तापमान में वृद्धि हो रही है, जिसके भविष्य में गंभीर परिणाम सामने आ सकते हैं

By Lalit Maurya

On: Friday 18 June 2021
 

नासा के वैज्ञानिकों का कहना है कि पृथ्वी के ऊर्जा संतुलन में बदलाव आ रहा है। वो 2005 की तुलना में दोगुनी ज्यादा ऊष्मा जमा कर रही है। जिसके कारण धरती कहीं ज्यादा तेजी से गर्म हो रही है जोकि जलवायु परिवर्तन के खतरे को और बढ़ा रहा है। यह जानकारी पृथ्वी के ऊर्जा संतुलन और उसमे आ रहे बदलाव को समझने के लिए नासा और यू.एस. नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) द्वारा किए  शोध में सामने आई है, जोकि जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुआ है।

यदि इसे सरल भाषा में समझे तो सूर्य हमारी पृथ्वी के लिए ऊर्जा का सबसे बड़ा स्रोत है। पृथ्वी एक निश्चित मात्रा में लघु तरंगों के रूप में सूर्य के ताप को प्राप्त करती हैं और फिर विकिरण के रूप में दीर्घ तरंगों के माध्यम से अतिरिक्त ऊष्मा को पुनः छोड़ देती है। इस तरह से लगातार ऊष्मा का यह प्रवाह बना रहता है, जो पृथ्वी के तापमान को भी संतुलित रखता है।

इसी प्रक्रिया को पृथ्वी का ऊष्मा बजट कहते हैं। पर इस नए शोध से पता चला है कि पृथ्वी जितनी ऊर्जा 2005 में मुक्त करती थी 2019 में वो उसकी आधी ऊष्मा छोड़ रही है जिसका मतलब है कि वो पहले के मुकाबले दोगुनी ज्यादा ऊष्मा जमा कर रही है। इस बारे में नासा ने जानकारी दी है कि सकारात्मक ऊर्जा असंतुलन का मतलब है कि पृथ्वी जितनी मात्रा में ऊर्जा अवशोषित कर रही है उसकी तुलना में वातावरण में वापस कम छोड़ रही है।

शोध के अनुसार पृथ्वी सूर्य से करीब 240 वाट प्रति वर्ग मीटर ऊर्जा को अवशोषित करती है। साल 2005 में जब यह अध्ययन शुरू हुआ था इसमें से 239.5 वाट प्रति वर्ग मीटर की दर से ऊर्जा वापस विकिरण के रूप में छोड़ रही थी। जिसका मतलब है कि उस समय करीब आधे वाट का सकारात्मक ऊर्जा असंतुलन बन रहा था जो 2019 में बढ़कर दोगुना, एक वाट प्रति वर्ग मीटर हो गया है।

नासा में वैज्ञानिक और इस शोध से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता नॉर्मन लोएब ने बताया जिस मात्रा में धरती ऊर्जा को जमा कर रही है उसके बढ़ने की दर अभूतपूर्व है। उनके अनुसार ऊर्जा असंतुलन को मापने के लिए जिन दो विधियों का उपयोग किया है वो एक जैसे नतीजे दिखा रही है, जो विश्वास दिलाता है कि बढ़ता ऊर्जा असंतुलन एक वास्तविक घटना है यह कोई काल्पनिक सोच नहीं है। गौरतलब है कि ऊर्जा असंतुलन को मापने के लिए शोधकर्ताओं ने सैटेलाइट से प्राप्त आंकड़ों और महासागरों के सेंसर्स सिस्टम का इस्तेमाल किया है।

किस वजह से आ रहा है असंतुलन

सबसे बड़ा सवाल यह है कि पृथ्वी के ऊर्जा बजट में यह असंतुलन क्यों आ रहा है। शोधकर्ताओं के मुताबिक ऐसा वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन जैसी गैसों की मात्रा बढ़ने के कारण हो रहा है। वातावरण में जिनकी मात्रा मानवीय गतिविधियों के कारण बढ़ रही है। यह गैसें गर्मी को वातावरण में ही पकड़ लेती हैं और बाहर जाने वाले विकिरण को रोक देती हैं। जिस वजह से वो वापस अंतरिक्ष में नहीं जा पाता।

शोध के मुताबिक जल वाष्प में होती वृद्धि और बादलों और समुद्री बर्फ में आने वाली कमी भी इसकी एक वजह है, जो सूर्य से आने वाली किरणों को प्रतिबिंबित कर देती हैं, लेकिन इनके घटने के कारण ऐसा नहीं हो पा रहा है।

वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके गंभीर नतीजे सामने आ सकते हैं। पृथ्वी पर जमा इस अतिरिक्त ऊर्जा के कारण तापमान में वृद्धि हो रही है। इसका 90 फीसदी हिस्सा महासागरों को गर्म कर रहा है जबकि शेष  भूमि और हवा में गर्मी को और बढ़ा रहा है जिसके कारण ग्लेशियर में जमा बर्फ पिघल रही है। शोध के अनुसार यदि आने वाले वर्षों में यदि तापमान बढ़ने की गति कम नहीं हुई तो उसकी वजह से जलवायु में कुछ बड़े बदलाव आ सकते हैं।

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