अंटार्कटिक की बर्फ के शेल्फ के टूटने की गति को कम कर सकता है बर्फीली गोंद

शोधकर्ताओं ने लार्सन सी आइस शेल्फ में ऊपर से नीचे की 11 दरारों का आकलन किया ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि कौन से सबसे कमजोर हैं जो टूट सकते हैं।

By Dayanidhi

On: Thursday 14 October 2021
 
फोटो : नासा

अंटार्कटिका की स्थिरता और दुनिया भर के समुद्र के स्तर में वृद्धि इसके बर्फ के शेल्फ पर निर्भर करता है। कुछ दशकों में अंटार्कटिका के बर्फ के शेल्फ में कई बड़े बदलाव हुए हैं, जिनमें से कई टूट गए हैं।

वैज्ञानिकों का मानना है कि बर्फ और इसके महीन टुकड़ों का मिश्रण जिसे मेलेंज के रूप में जाना जाता है। मेलेंज के पिघलने से अंटार्कटिका की बर्फ की शेल्फ की दरारें बढ़ सकती हैं, जिसके चलते सर्दियों की भीषण ठंड में भी हिमखंड टूट सकते हैं।

दक्षिणी कैलिफोर्निया में नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, इरविन के शोधकर्ताओं ने बर्फ में होने वाली इस तरह की प्रक्रिया के बारे में पता लगाया है। जिसमें कहा गया है कि 2017 के दक्षिणी गोलार्ध की सर्दियों में डेलावेयर के आकार का हिमखंड, अंटार्क्टिका के विशाल लार्सन सी आइस शेल्फ इसी वजह से टूटा होगा।

खोज में पाया गया कि मेलेंज बर्फ की शेल्फ में और उसके आस-पास स्थित हवा में उड़ने वाली बर्फ, हिमखंड के टुकड़े और समुद्री बर्फ का मिश्रण है जो बर्फ की शेल्फ को एक साथ रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका मतलब है कि ये बर्फ की शेल्फ हवा के बढ़ते तापमान के कारण वैज्ञानिकों ने जितना अनुमान लगाया था उसकी अपेक्षा और तेजी से टूट सकती हैं।  

बर्फ की शेल्फ, ग्लेशियरों की जीभ की तरह है जो तैरती हुई समुद्र के ऊपर फैल जाती है, यह उस दर को धीमा कर देती हैं जिस पर अंटार्कटिका के ग्लेशियर दुनिया भर में समुद्र के जल स्तर में वृद्धि कर सकते हैं। जैसे ही ग्लेशियर के बर्फ के शेल्फ दक्षिणी महासागर के ऊपर से तैरते हैं, यह अंततः ग्लेशियर को घेरने वाली खाड़ी की दीवार पर आ जाते हैं।

इस तरह की रुकावट ग्लेशियर की आगे बढ़ने की गति को उसी तरह धीमा कर देता है जैसे एक व्यस्त सड़क पर दुर्घटना होने से इसके पीछे के यातायात को धीमा कर देती है। एक बर्फ का शेल्फ रुकावट बनकर हजारों वर्षों तक समुद्र में बर्फ के प्रवाह को रोक सकता है।

लेकिन हाल के दशकों में, अंटार्कटिक प्रायद्वीप में बर्फ की शेल्फ तेजी से आगे बढ़ रहे हैं और टूट रहे हैं। जिससे दरारें और गहरी होती जाती हैं जो ऊपर से नीचे तक कट जाती हैं और चौड़ी हो जाती हैं, अंत में हिमखंड समुद्र में मिल जाते हैं। यदि यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक कि बर्फ की पर्याप्त मात्रा टूट न जाए, जैसा कि 2002 में लार्सन बी ग्लेशियर के साथ हुआ था, ग्लेशियर जो शेल्फ को रोके हुए थे, वे भूमि से समुद्र में अधिक तेजी से बहने लगते हैं। इससे समुद्र के स्तर में वृद्धि की दर बढ़ जाती है।

जलवायु के बढ़ते तापमान के चलते बर्फ की शेल्फ में बदलाव आ रहा है, क्योंकि इसने ऊपर की हवा और ग्लेशियरों के नीचे समुद्र के पानी दोनों के तापमान को बढ़ा दिया है। लेकिन जिस तरह से बर्फ के शेल्फ बढ़ते तापमान का मुकाबला कर रहे हैं, उसे पूरी तरह से समझा नहीं जा सकता है।

वैज्ञानिकों ने सुझाव दिया है कि बर्फ के ऊपर पिघले पानी के जमा होने से दरारें बढ़ जाती हैं। लेकिन अगर ऐसा है, तो लार्सन सी सर्दियों में अपने विशाल हिमखंड को कैसे अलग या विघटित कर सकता है, जबकि यहां बर्फ महीनों से जमी हुई थी?

इस प्रश्न के उत्तर में जेपीएल और यूसी इरविन के शोधकर्ताओं ने मेलेंज पर गौर किया। उन्होंने बताया कि इस तरह की गड़बड़ी के लिए बर्फ के मोटे टुकड़ों के मिश्रण में गोंद की तरह प्राकृतिक गुण होते हैं, जो दरारों को भर देते हैं और बर्फ और चट्टान चिपक जाते हैं। जब यह बर्फ के शेल्फ की एक दरार में जमा हो जाता है, तो यह आसपास की बर्फ से एक पतली परत बनाता है जो दरार को भर देता है।

बर्फ की शेल्फ के किनारों पर, मेलेंज की परतें बर्फ को उसके चारों ओर की चट्टान की दीवारों से चिपका देती हैं। प्रोसीडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंसेज में प्रकाशित अध्ययन में यूसी इरविन के प्रोफेसर और सह-अध्ययनकर्ता एरिक रिग्नॉट ने कहा कि हमें हमेशा संदेह था कि इस मेलेंज ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन हम इसकी विशेषताओं का सही तरह से अवलोकन नहीं कर पाए है।  

शोधकर्ताओं ने नासा के ऑपरेशन आइसब्रिज और यूरोपीय और नासा उपग्रहों के अवलोकन के साथ नासा की आइस-शीट और सी-लेवल सिस्टम मॉडल का उपयोग करके पूरे लार्सन सी आइस शेल्फ का मॉडल तैयार किया।

उन्होंने गहन अध्ययन के लिए ऊपर से नीचे की 11 दरारों का चयन किया, यह देखने के लिए मॉडलिंग की किन तीन परिदृश्यों में उनके टूटने की सबसे अधिक आशंका है। पहला यदि बर्फ की शेल्फ पिघलने के कारण पतली हो गई है, दूसरा यदि बर्फ का मिश्रण पतला हो गया है या तीसरा यदि दोनों बर्फ की शेल्फ और मिश्रण पतला हो गया है।

नासा जेपीएल अनुसंधान वैज्ञानिक और समूह पर्यवेक्षक एरिक लारौर ने कहा बहुत से लोगों ने सहज रूप से सोचा होगा कि यदि आप बर्फ की शेल्फ को पतला करते हैं, तो आप इसे और अधिक नाजुक बनाने जा रहे हैं और यह बस टूटने ही वाला है।

इसके बजाय, मॉडल ने दिखाया कि मिश्रण में बिना किसी बदलाव के एक पतली बर्फ की शेल्फ ने दरारों को ठीक करने का काम किया। दरारें औसत वार्षिक चौड़ाई दर 79 से 22 मीटर (259 से 72 फीट) तक कम हो गई। बर्फ की शेल्फ और मिश्रण दोनों के पतला होने से भी कुछ हद तक दरार कम हो गई। लेकिन जब मॉडलिंग केवल मिश्रण के पतले होने की थी, तो वैज्ञानिकों ने 76 से 112 मीटर (249 से 367 फीट) की औसत वार्षिक दर से दरारों को काफी चौड़ा पाया।

जब शोधकर्ताओं ने मॉडल में ग्लेशियर के बर्फ की मोटाई को कम किए बिना, जब केवल मेलेंज को पतला किया तो बर्फ की शेल्फ में दरार अधिक तेज़ी से चौड़ी हो गई, यह हर साल औसत दर 249 से 367 फीट तक बढ़ गई। जब मेलेंज की छोटी परतें लगभग 30 से 50 फीट तक पतली हो जाती हैं, तो वे एक साथ दरारों को पकड़ने की अपनी क्षमता पूरी तरह से खो देते हैं। दरारें तेजी से खुल सकती हैं और बड़े हिमखंड ढीले हो सकते हैं - जैसा कि लार्सन सी पर हुआ था।

लारौर ने कहा यह क्यों मायने रखता है? क्योंकि हमने एक प्राकृतिक प्रक्रिया पर उंगली उठाई है जो वातावरण के गर्म होने से पहले बर्फ के शेल्फ को अस्थिर करने में सक्षम है। वैज्ञानिकों ने अक्सर हवा के तापमान में अनुमानित वृद्धि का उपयोग यह अनुमान लगाने के लिए किया है कि अंटार्कटिक बर्फ की शेल्फ कितनी तेजी से टूटेंगी और इसके परिणामस्वरूप, दुनिया भर के समुद्र के स्तर कितनी तेजी से बढ़ेंगे। लेकिन मेलेंज की संकरी परतें मुख्य रूप से नीचे समुद्र के पानी के संपर्क में आने से पिघल रही हैं, यह प्रक्रिया साल भर चलती रहती है।

रिग्नॉट ने कहा हमें लगता है कि यह प्रक्रिया बता सकती है कि अंटार्कटिक प्रायद्वीप में बर्फ की शेल्फ दशकों पहले से क्यों टूटनी शुरू हो गई थी, जब उनकी सतह पर पिघला हुआ पानी जमा होना शुरू हो गया। इसका तात्पर्य है कि अंटार्कटिक बर्फ की शेल्फ गर्म होती जलवायु के चलते अधिक संवेदनशील हो सकती हैं और पहले की तुलना में अधिक तेजी से टूट सकती है। 

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