महामारी से कार्बन उत्सर्जन तो घटा, लेकिन ग्लोबल वार्मिंग की चुनौती बरकरार

संयुक्त राष्ट्र की संस्था के प्रमुख का कहना है कि, 'लॉकडाउन के चलते उत्सर्जन में जो कमी आई है हमें इस कर्व को लंबे समय के लिए फ्लैट करने की जरूरत है

By Richard Mahapatra

On: Monday 23 November 2020
 
लॉकडाउन के दौरान दिल्ली के कनॉट प्लेस का दृश्य। फोटो: विकास चौधरी

हम में से अधिकतर लोग इसी खबर का बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। क्या कोविड-19 महामारी के चलते व्यापक शटडाउन और औद्योगिक गतिविधियों में आई भारी गिरावट से ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी आई होगी? 

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) के शुरुआती अनुमान कहते हैं कि 2020 में सालाना वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन 4.2 से 7.5 फीसदी के बीच कम हुआ है। 

डब्ल्यूएमओ के ग्लोबल कार्बन प्रोजेक्ट ने अनुमान लगाया है कि 'शटडाउन की सबसे गंभीर अवधि के दौरान आबादी के घरों में बंद होने से कार्बन डाइऑक्साइड का दैनिक उत्सर्जन वैश्विक रूप से 17 प्रतिशत तक कम हुआ है।' लेकिन इसमें बहुत खुश होने वाली कोई बात नहीं है। डब्ल्यूएमओ इसे हमारे ग्रह के अनियंत्रित उत्सर्जन परिदृश्य पर सिर्फ एक छोटा सा बिंदु मानता है। 

डब्ल्यूएमओ की अनुमानित रिपोर्ट कहती है कि "वैश्विक स्तर पर, कार्बन उत्सर्जन में इस दर से होने वाली कमी के चलते वातावरण में मौजूद सीओ2 कम नहीं होगा। सीओ2 का स्तर अब भी बढ़ेगा ही, हालांकि यह तुलनात्मक रूप से थोड़ी धीमी रफ़्तार (सालाना 0.08-0.23 पार्ट्स पर मिलियन कम) से बढ़ेगा।"

प्राकृतिक रूप से सीओ2 उत्सर्जन में परिवर्तन की सालाना दर 1 पीपीएम है। इसका मतलब यह है कि इस महामारी के चलते कार्बन उत्सर्जन में आई कमी कोई महत्त्व नहीं रखती है और यह प्राकृतिक परिवर्तिता की दर से भी अधिक नहीं है।

डब्ल्यूएमओ के मुताबिक, "इसका मतलब यह हुआ कि छोटी अवधि के लिए कोविड-19 के कारण लगे लॉकडाउन के असर को प्राकृतिक परिवर्तिता से अलग नहीं किया जा सकता।

पृथ्वी के वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड समेत ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बहुत अधिक है। उत्सर्जन में अस्थायी कमी आने से ग्लोबल वार्मिंग और उसके चलते होने वाला जलवायु परिवर्तन कम नहीं हो जाएगा।

बल्कि देखा जाए तो ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन 2020 में भी जारी रहेगा। पिछले साल सीओ2 का वैश्विक औसत 410 पीपीएम की सीमा को पार कर गया था। डब्ल्यूएमओ के महासचिव पेटरी तालस का कहना है कि, "कार्बन डाइऑक्साइड सदियों से वातावरण में मौजूद है और समुद्र में तो उससे भी अधिक समय से। आखिरी बार 3-5 मिलियन वर्ष पहले पृथ्वी पर सीओ2 की तुलनीय मात्रा थी, जब तापमान 2-3°C अधिक गर्म था और समुद्र स्तर अभी के मुक़ाबले 10-20 मीटर अधिक ऊपर था। लेकिन तब पृथ्वी पर 7.7 अरब लोग नहीं रहते थे।"

इतना ही नहीं, कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर को 2015 में 400 पीपीएम से 410 पीपीएम तक पहुंचने में सिर्फ चार साल लगे। तालस का कहना है कि, "कार्बन के स्तर में ऐसी बढ़ोतरी की दर हमारे रिकॉर्ड्स के इतिहास में कभी नहीं देखी गई। उत्सर्जन में लॉकडाउन संबंधी गिरावट दीर्घकालिक ग्राफ में एक छोटा सा बिंदु है। हमें हमें इस कर्व को लंबे समय के लिए फ्लैट करने की ज़रूरत है।

डब्ल्यूएमओ के बुलेटिन के मुताबिक, "2019 में कार्बन डाइऑक्साइड का सालाना वैश्विक औसतन स्तर लगभग 410.5 पीपीएम था, 2018 में यह स्तर 407.9 पीपीएम था। इसने 2015 में 400 पीपीएम का बेंचमार्क पार किया था। 2018 से 2019 के बीच सीओ2 में हुई बढ़ोतरी 2017 से 2018 के बीच देखी गई बढ़ोतरी से तो ज्यादा थी ही, साथ ही पिछले दशक के औसत से भी ज्यादा थी।"

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