मुंबई जैसे शहरों में बसे 30 करोड़ लोगों पर खतरा, बढ़ रहा है समुद्र का जल स्तर

वैज्ञानिकों के नए अध्ययन में कहा गया है कि 2050 तक समुद्र तट के किनारे बसे लगभग 30 करोड़ पर आफत आ सकती है, क्योंकि समुद्र में जल स्तर बढ़ सकता है

By Lalit Maurya

On: Wednesday 30 October 2019
 
एक नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने कहा है कि 2050 तक समुद्र में जल स्तर बढ़ जाएगा। Photo: Creative commons

वैज्ञानिकों के अनुसार जलवायु परिवर्तन के चलते तटीय इलाके में रहने वाले लगभग 30 करोड़ लोग 2050 तक बाढ़ की चपेट में होंगे। वहीं वैज्ञानिकों का मानना है कि अंटार्कटिक में बर्फ की अस्थिरता के चलते सबसे बुरे हालत में यह स्थिति और खराब हो सकती है। तब यह आंकड़ा 30 करोड़ से बढ़कर, इस सदी के अंत तक 64 करोड़ तक जा सकता है। अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में छपे इस शोध में यह भी माना गया है कि हमारे द्वारा ग्रीन हाउस गैसों के सन्दर्भ में आज लिए गए फैसले इन तटरेखाओं पर रहने वालों के भविष्य का निर्धारण करेंगे।

हालांकि जिस गति से क्लाइमेट चेंज हो रहा है, उसको देखते हुए इस खतरे को टालेजाने के बहुत कम ही आसार हैं। वैसे भी आज दुनिया के अनेकों द्वीपीय देशों पर जलवायु परिवर्तन का असर दिखना शुरू हो गया है।

उदहारण के लिए इंडोनेशिया को ही ले लीजिये जहां यह खतरा पहले से ही महसूस किया जाने लगा है, वहां सरकार ने हाल ही में बाढ़ के बढ़ते खतरे को देखते हुए अपनी राजधानी को जकार्ता से स्थानांतरित करने की योजना बनायीं है । नए आंकड़े बताते हैं कि इंडोनेशिया में करीब 230 लाख लोगों का जीवन खतरे में है, जबकि पिछले अनुमान में यह आंकड़ा 50 लाख था।

अनुमानों है कि इसका सबसे अधिक बुरा असर एशिया पर पड़ेगा, जोकि दुनिया की अधिकांश आबादी का घर है।अध्ययन के अनुसार दुनिया भर में जहां एक ओर विनाशकारी तूफान तेजी से बढ़ रहे हैं । वहीं शक्तिशाली चक्रवातों और बढ़ते समुद्रों के कारण एशिया में जीवन सबसे अधिक कठिन हो जाएगा। अनुमान है कि भारत, चीन, बांग्लादेश, वियतनाम, इंडोनेशिया और थाईलैंड की दो तिहाई से अधिक आबादी पर इसका खतरा और गहरा जायेगा ।अनुमान है कि भारत पर इसका खतरा सात गुना बढ़ जायेगा । वहीं बांग्लादेश पर आठ गुना अधिक होगा, जबकि थाईलैंड पर 12 गुना बढ़ जायेगा । जबकि 2050 तक बढ़ते जलस्तर के चलते चीन में रहने वाले 10 करोड़ लोगों पर इसका सीधा असर पड़ेगा ।

भारत के तटीय इलाकों में बसने वाले 3.6 करोड़ लोगों पर जलस्तर के बढ़ने का सीधा असर पड़ने के आसार हैं । भारत में विशेषकर पश्चिम बंगाल और तटीय ओडिशा पर इसका सबसे अधिक प्रभाव पड़ेगा । नए अनुमानों से पता चला है कि भारत की वित्तीय राजधानी मुंबई जोकि दुनिया के सबसे बड़े शहरों में से एक है, वो अगले 30 वर्षों में बढ़ते जलस्तर के चलते पूरी तरह से जलमग्न हो सकती है । साथ ही 2050 तक कोलकाता का अधिकांश भाग तटीय बाढ़ की चपेट में होगा ।

2050 तक वैश्विक जनसंख्या में 200 करोड़ का इजाफा होने का अनुमान है । वहीं तटीय क्षेत्रों में बसे महानगरों की जनसंख्या 2100 तक 100 करोड़ और बढ़ जाएगी । जिसके चलते अधिक से अधिक लोगों पर यह खतरा बढ़ता जायेगा और वो इन शहरों को छोड़ने के लिए मजबूर हो जायेंगे ।वहीं आज पहले से ही करीब 10 करोड़ लोग उच्च ज्वार के खतरे के साये में जी रहें हैं।  

नए और पुराने आंकड़ों में कितना अंतर है और क्यों  

इससे पहले किये गए अध्ययन में उपग्रह से प्राप्त डेटा का उपयोग किया गया था जो ऊंची इमारतों और पेड़ों के कारण भूमि की ऊंचाई को कम कर देता था। नए अध्ययन में ऐसे गलती न हो इसके लिए आर्टिफीसियल इंटेलिजेंस और न्यूरल नेटवर्क्स का इस्तेमाल किया गया है पुराने आंकड़ों में उच्च ज्वार और तूफान से आने वाली बाढ़ के खतरे को काफी हद तक कम करके आंका गया था।

यूएस-आधारित गैर-लाभकारी संस्थान क्लाइमेट सेंट्रल के मुख्य वैज्ञानिक और सीईओ और इस अध्ययन के सह-लेखक बेंजामिन स्ट्रॉस ने बताया कि, "हालांकि समुद्र-स्तर के बढ़ने के अनुमानों में कोई बदलाव नहीं हुआ है। शोधकर्ताओं ने बताया कि नासा के पिछले अध्ययन और नए आंकड़ों में मिलने वाला अंतर चौंकाने वाला है।

अध्ययन के प्रमुख लेखक और क्लाइमेट सेंट्रल के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक स्कॉट कल्प  ने बताया कि "इस आंकलन के अनुसार दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन शहरों, अर्थव्यवस्थाओं और समुद्र तटों को हमारे जीवनकाल के अंदर ही बदल देगा ।"आईपीसीसी रिपोर्ट के अनुसार पहले जो शक्तिशाली तूफान सदी में एक बार आते थे, वो 2050 तक कई जगहों, विशेषकर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में औसतन हर वर्ष आने लगेंगे ।वहीं अनुमान है कि तटीय क्षेत्रों में बाढ़ से होने वाला वार्षिक नुकसान सदी के अंत तक 100 से 1,000 गुना तक बढ़ जाएगा। 

स्ट्रॉस ने बताया कि इन सबसे बचने के लिए या तो अन्य देश इंडोनेशिया के नक्शेकदम पर चले, जब तक कि वो अपने आप को इस खतरे से बचने का हल नहीं ढूंढ लेते या कार्बन उत्सर्जन में कटौती नहीं कर लेते । नहीं तो जिस तेजी से समुद्र के पास समतल, नीची जमीन पर मानव अनियंत्रित तरीके से विकास कर रहा है, उसे इस खतरे को झेलने के लिए तैयार रहना चाहिए ।उनके अनुसार, "यदि हम इस उथल पुथल और जान-माल के नुकसान से बचना चाहते हैं तो हमें बढ़ते जलस्तर से अपने तटों की सुरक्षा, बचाव और इससे निपटने के लिए सही रणनीति बनाने की जरूरत है।"

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