हर दस साल में 0.33 डिग्री सेंटीग्रेड गर्म हो रही हैं नदियां: स्टडी

शोधकर्ताओं ने पिछले 40 वर्षों में पानी के बहाव में 3 प्रतिशत की कमी देखी है, और पिछले दो दशकों में 10 प्रतिशत की कमी हुई है

By Dayanidhi

On: Monday 03 February 2020
 
Photo: Vikas Choudhary

एक शोध में पता चला है कि नदियों का तापमान लगातार बढ़ रहा है। यह स्थिति पारिस्थितिकी प्रणालियों के लिए खतरे की घंटी है। यह शोध स्विट्जरलैंड के ईपीएफएल और स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट फॉर फॉरेस्ट, स्नो एंड लैंडस्केप रिसर्च (डब्ल्यूएसएल) के शोधकर्ताओं ने किया है। यह अध्ययन जर्नल हाइड्रोलॉजी एंड अर्थ सिस्टम साइंसेज में प्रकाशित हुआ है।

लंबे समय से बर्फ और ग्लेशियरों से पिघले पानी ने दुनिया भर की नदियों को गर्म होने से बचाया है। जिससे पूरे वर्ष भर नदियों का तापमान अपेक्षाकृत बनाए रखने में सहायता मिलती है। सदी के बाद से गर्मियों के तापमान में लगातार वृद्धि के कारण नाजुक पारिस्थितिकी संतुलन बिगड़ने की आशंका बढ़ गई है। इसी कड़ी में यदि स्विट्जरलैंड का उदाहरण लें तो 2018 में स्विस संरक्षणवादियों ने मछलीयों को गर्मी, पानी के कमी से बचाने, हेतु कई उपाय करने पड़े।

टीम ने स्विट्जरलैंड भर में नदी के तापमान और नदी के बहाव के रुझानों का विश्लेषण किया। जिसमें दो डेटा सेटों का उपयोग किया गया- 1979 में 33 नदी साइटों से माप को रिकॉर्ड किया गया, और 1999 के बाद 52 साइटों से माप को रिकॉर्ड किया। उन्होंने पाया कि नदी का पानी 1980 के बाद से हर दशक में औसत 0.33 डिग्री सेंटीग्रेड गर्म हो रहा है,  और पिछले 20 वर्षों में 0.37 डिग्री सेंटीग्रेड प्रति दशक की दर से गर्म हुआ।

करयोस लैब में डॉक्टरेट सहायक और प्रमुख शोधकर्ता एड्रियन मिशेल कहते हैं कि, हमें यह जानकर आश्चर्य हुआ कि स्विस नदियां आसपास की हवा की दर से 95 प्रतिशत तक गर्म हो रही हैं। उन्होंने आगे जोड़ते हुए कहा कि, पारंपरिक ज्ञान यह था कि बर्फ और ग्लेशियरों से पिघला हुआ पानी जब झीलों में बहता था तो पानी गर्म नहीं होता था। क्योंकि स्विस पठार उस पर पड़ने वाले गर्म हवा के प्रभाव को रोक दिया करते थे। लेकिन अब ऐसा नहीं है।

शोधकर्ताओं ने पिछले 40 वर्षों में पानी के बहाव में 3 प्रतिशत की कमी देखी है, और पिछले दो दशकों में 10 प्रतिशत की कमी हुई है। यदि यही दौर जारी रहता है, तो पानी की कमी के कारण नदियों और जलधाराओं में गर्मी में तापमान और अधिक बढ़ सकता है, यह स्थिति और भी गंभीर हो जाएगी जब हिमनदी (ग्लैशल) पूरी तहर से पिघल जाएंगे।

मिशेल का मानना है कि निष्कर्ष मौसम के पूर्वानुमान और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन रणनीतियों के लिए महत्वपूर्ण है। उन्होंने कहा कि आम तौर पर माना जाता है कि तापमान के एक या दो डिग्री बढ़ने से ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा। सच्चाई यह है कि पारिस्थितिक तंत्र इस बढ़ते हुए तापमान का सामना नहीं कर सकता है, जब तापमान एक वर्ष में कई बार सीमा से अधिक बढ़ जाता है, खासकर गर्मियों में। कुछ डिग्री तापमान बढ़ने का मतलब है कि हम उन सीमाओं को अधिक बार पार करते हुए देखेंगे, जहां तापमान पहले से बहुत अधिक होगा। दूसरे शब्दों में कहें तो, वैश्विक तापमान - सर्दियों में 2 डिग्री सेंटीग्रेड तक बढ़ जाता है और गर्मियों में 4 डिग्री सेंटी ग्रेड तक पहुंच जाता है, जो पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को तनाव में रखता है।

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