कॉप-26: नेट जीरो उत्सर्जन लक्ष्य तक पहुंचने के लिए वैज्ञानिकों ने दिए सुझाव

नेट जीरो हासिल करने के समाधानों में कार्बन उत्सर्जन से बनने वाली बिजली पर रोक तथा अक्षय ऊर्जा का उपयोग करना। भूमि उपयोग में बदलाव, बैटरी से चलने वाले वाहनों का उपयोग आदि शामिल है।

By Dayanidhi

On: Wednesday 03 November 2021
 
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स

नेट जीरो हासिल करने के लिए दुनिया भर के सभी क्षेत्रों में कार्बन उत्सर्जन को कम करने की आवश्यकता है। अब यूके के प्रमुख वैज्ञानिकों ने एक पेपर के माध्यम से नेट जीरो हासिल करने के लिए नए समाधान दुनिया के सामने रखे हैं। उन्होंने कहा है कि इन समाधानों को तुरंत लागू किया जाना चाहिए। साथ ही अगले दशक के लिए प्राथमिकता वाले शोध क्षेत्रों को भी इसके साथ जोड़ा जाना चाहिए, ताकि नेट जीरो उत्सर्जन के लक्ष्य तक पहुंचा जा सके।

अध्ययनकर्ताओं ने कहा इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए प्रणालीगत बदलाव करने, जिसमें एक साथ काम करने वाली तकनीकें, सामाजिक और प्रकृति आधारित समाधानों के मिश्रण की आवश्यकता होगी। 2020 के दशक में शोध को उन क्षेत्रों के समाधान में प्राथमिकता दी जानी चाहिए जिन्हें विशेष रूप से डीकार्बोनाइज करना मुश्किल है, जैसे विमानन, बिजली उत्पादन और भंडारण और समुद्री शिपिंग आदि।

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के नेतृत्व में किए गए इस अध्ययन में नेट जीरो हासिल करने के समाधानों पर प्रकाश डाला गया है। जिन्हें अब लागू किया जा सकता है, जैसे कि बैटरी से चलने वाले वाहनों का उपयोग, वर्तमान कार्बन उत्सर्जन करने वाले तरीकों से पैदा होने वाली बिजली के बजाय नवीकरणीय ऊर्जा का उपयोग करना, हाइड्रोजन का उपयोग आदि। साथ ही प्राथमिकता के लिए भूमि उपयोग योजना में परिवर्तन, या भूमि का मिश्रित उपयोग, जीवाश्म ईंधन से चलने वाले वाहनों का कम उपयोग आदि को शामिल किया जाना चाहिए।

कॉप-26 यूनिवर्सिटी नेटवर्क द्वारा '2020 के दशक में नेट-जीरो सॉल्यूशन एंड रिसर्च प्रायोरिटीज' नामक पेपर प्रकाशित किया गया है। इसमें यूके के 10 विश्वविद्यालयों के 26 प्रमुख वैज्ञानिक शामिल हैं। जिनमें कैम्ब्रिज के इंजीनियर डॉ. डैनियल ऐनालिस, प्रोफेसर डेविड सेबन, डॉ. शॉन फिट्जरलैंड शामिल हैं। डॉ. सैमुअल ग्रिमशॉ, डॉ. ह्यूग हंट, और डॉ. मारिया वेरा-मोरालेस। यह पेपर संयुक्त राष्ट्र कॉप-26 जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन के शुरुआती दौर के महत्वपूर्ण समय पर प्रकाशित हुआ है।

कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी की सह-अध्ययनकर्ता डॉ. एरिक मैकी ने कहा कि हालिया आईपीसीसी रिपोर्ट से यह स्पष्ट है कि पेरिस समझौते के लक्ष्यों को पूरा करने, उत्सर्जन को कम करने के लिए 2020 का दशक महत्वपूर्ण होगा। कॉप-26 में किए गए निर्णय इसे हासिल करने में महत्वपूर्ण होंगे। यह क्रॉस-डिसिप्लिनरी रिपोर्ट उन प्रमुख कार्यों की पहचान करके निर्णय लेने वालों की सहायता करेगी, जिन्हें हमें अभी लागू करना है। प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में जहां हमें अपने डीकार्बोनाइज करने के शोध प्रयासों पर तत्काल ध्यान केंद्रित करना चाहिए।

पेपर आठ प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में नेट जीरो समाधान पर प्रकाश डालता है, जो अभी से लागू की जाने वाली कार्रवाइयों को निर्धारित करता है। उन्होंने कहा कि अगले दशक के लिए अनुसंधान प्राथमिकताएं इस तरह है -

1. बिजली (उत्पादन, भंडारण, प्रणाली और नेटवर्क), 2. इमारतों को बनाने में सुधार, 3. सड़क परिवहन 4. उद्योग, 5. भूमि/समुद्री उपयोग और कृषि, 6. विमानन और शिपिंग, 7.अपशिष्ट प्रबंधन, 8. ग्रीनहाउस गैस का निवारण (जीजीआर)।

प्रकृति-आधारित समाधान (एनबीएस) - प्रमुख कार्रवाइयां जो सभी क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन और जैव विविधता के नुकसान का समाधान करने के लिए प्रकृति के साथ काम कर सकती हैं। जबकि आर्थिक सुधार का समर्थन भी करती हैं जिस पर अलग से रोशनी डाली जा सकती है।

कैम्ब्रिज के कैवेंडिश प्रयोगशाला में मैरी-क्यूरी रिसर्च फेलो, सह-अध्ययनकर्ता डॉ एलिजाबेथ टेनीसन ने कहा कि आने वाला दशक कार्रवाई और कार्यान्वयन के लिए होगा। हमें उन समाधानों पर ध्यान केंद्रित करने की आवश्यकता है जिन्हें व्यावहारिक रूप से 2030 से पहले लागू किया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि हमारी रिपोर्ट प्रत्येक प्राथमिकता वाले क्षेत्रों के लिए इनमें से कुछ समाधानों पर प्रकाश डालती है। कोई अकेला क्षेत्र इसका समाधान नहीं कर सकता है। नेट जीरो हासिल करने के लिए कई क्षेत्रों में एक साथ काम करने की आवश्यकता है। हमें उम्मीद है कि यह नीति न केवल बदलाव को प्रभावित करेगा बल्कि आगे के नवाचारों को भी प्रोत्साहित करेगा।

रिपोर्ट में सुझाए गए अतिरिक्त समाधानों में इमारतों की रेट्रोफिटिंग, कम कार्बन कृषि प्रथाओं को बाजार में लाने के लिए आर एंड डी निवेश में वृद्धि, करना, पहले कम कार्बन का समर्थन करने के लिए 2020 के मध्य तक कार्बन कैप्चर यूटिलाइजेशन एंड स्टोरेज (सीसीयूएस) शामिल करना आदि।

अध्ययनकर्ता इस बात पर जोर देते हैं कि प्रत्येक समाधान का मूल्यांकन ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी, ऊर्जा दक्षता और सामाजिक प्रभावों के संबंध में किया जाना चाहिए। ताकि लंबे समय में नीतियों को विकसित करने, निवेश और अनुसंधान प्रयासों के सकारात्मक प्रभाव को बढ़ाने, उद्योग निवेशकों को सुरक्षित और जिम्मेदार मार्गदर्शन करने के लिए आधार प्रदान किया जा सके।

कैम्ब्रिज के इंजीनियरिंग विभाग के सह-अध्ययनकर्ता प्रोफेसर डेविड सेबन ने कहा कि विश्वविद्यालयों के इस समूह को अपनी विशेषज्ञता को बढ़ाते हुए और जलवायु परिवर्तन के खिलाफ मुकाबले में शोध और तत्काल कार्रवाई की जरूरतों के बारे में व्यापक आम सहमति बनाना महत्वपूर्ण है।

अध्ययनकर्ता ने बताया कि कॉप-26 यूनिवर्सिटी नेटवर्क का उद्देश्य महत्वाकांक्षी जलवायु परिवर्तन परिणामों को वितरित करने के लिए एक साथ काम करना है। साथ ही गैर सरकारी संगठनों और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए ग्लासगो में संयुक्त राष्ट्र जलवायु शिखर सम्मेलन कॉप-26 के लिए साक्ष्य और शैक्षणिक विशेषज्ञता तक पहुंच में सुधार करना शामिल है।

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