महामारी के बावजूद 419.13 पीपीएम पर पहुंचा मई 2021 में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर

पिछले 40 लाख वर्षों में यह पहला मौका है, जब किसी महीने में  कार्बन डाइऑक्साइड का औसत स्तर इतना ज्यादा दर्ज किया गया है

By Lalit Maurya

On: Tuesday 08 June 2021
 

पिछले 40 लाख वर्षों में यह पहला मौका है जब किसी महीने में कार्बन डाइऑक्साइड का औसत स्तर अपने रिकॉर्ड पर पहुंच गया है। नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार मई 2021 में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 419.13 पीपीएम पर पहुंच गया है, जोकि एक नया रिकॉर्ड है। इससे पहले मार्च 2021 में यह 417.64 पार्टस प्रति मिलियन (पीपीएम) रिकॉर्ड किया गया था।

वहीं मई 2020 में वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 417.64 पीपीएम रिकॉर्ड किया गया था। यह तब है जब लॉकडाउन के कारण वैश्विक स्तर पर आई आर्थिक मंदी के चलते कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में 7 फीसदी की कमी दर्ज की गई थी।

वैज्ञानिकों ने इसकी तुलना 41 से 45 लाख वर्ष प्लियोसीन युग पूर्व वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर से की है जब उसका स्तर 400 पीपीएम या उससे ज्यादा था। तब तापमान औद्योगिक काल से पहले की तुलना में करीब 7 डिग्री फारेनहाइट ज्यादा  था उस समय यदि समुद्र के स्तर की आज से तुलना करें तो वो अबसे करीब 78 फीट अधिक था।

औद्योगिक काल की शुरुवात से 50 फीसदी बढ़ चुका है सीओ2 का स्तर

नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) की मौना लोआ वेधशाला मार्च 1958 से कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर पर निगरानी रखे हुए है। उसके द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला है कि औद्योगिक क्रांति की शुरुवात से अब तक इसका स्तर करीब 50 फीसदी बढ़ चुका है, जोकि सच में चिंता का विषय है।

जहां 1959 में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा का वार्षिक औसत 315.97 था, जो कि 2018 में 92.55 अंक बढ़कर 408.52 के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया था । गौरतलब है कि 2014 में पहली बार वातावरण में मौजूद कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 400 पीपीएम के पार गया था। यदि इसका औसत देखा जाये तो हर 1959 से लेकर 2018 तक हर वर्ष वायुमंडल में विद्यमान कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा में 1.57 पीपीएम की दर से वृद्धि हो रही थी।

इससे पहले द इंटरनेश्नल एनर्जी एजेंसी (आइईए) ने अपने नवीनतम ग्लोबल एनर्जी रिव्यू - 2021 में कहा था कि सीओटू उत्सर्जन के मामले में वर्ष 2020 बहुत अप्रत्याशित रहा है। 2020 में वैश्विक कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन में 6.4 फीसदी या लगभग 230 करोड़ टन की गिरावट दर्ज की गई थी, जो कि संभवतः अब तक की सबसे बड़ी गिरावट है। इसके बावजूद इसके स्तर में वृद्धि होना एक बड़ी समस्या की ओर इशारा है।

वहीं इस रिपोर्ट में सम्भावना व्यक्त की गई थी कि जीवाश्म ईंधन के बढ़ते उपयोग से 2021 में सीओ2 उत्सर्जन में करीब 5 फीसदी की वृद्धि हो सकती है, जोकि करीब 150 करोड़ टन के बराबर होगी।   

एनओएए की ग्लोबल मॉनिटरिंग लेबोरेटरी से जुड़े एक वरिष्ठ वैज्ञानिक पीटर टैन्स ने जानकारी दी है कि मानव द्वारा उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों में कार्बन डाइऑक्साइड एक प्रमुख गैस है, जोकि उत्सर्जन के बाद हजारों वर्षों तक वातावरण और महासागरों में बनी रहती है। उनके अनुसार हम हर वर्ष वातावरण में लगभग 4,000 करोड़ मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण में छोड़ रहे हैं, जो वातावरण को दूषित कर रही है।

आज वातावरण में जिस तेजी से कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में वृद्धि हो रही है उसके चलते वैश्विक तापमान में बड़ी तेजी से वृद्धि हो रही है, जिसका परिणाम पूरी दुनिया को भुगतना पड़ रहा है। यह परिणाम बाढ़, सूखा, तूफान, घटती कृषि उत्पादकता, स्वास्थ्य पर पड़ते प्रभाव, अर्थव्यवस्था और पर्यावरण को हो रहे नुकसान के रूप में सामने आ रहे हैं। ऐसे में यदि हमें इसके विनाशकारी परिणामों से बचना है तो हमारी पहली प्राथमिकता वातावरण में इसके बढ़ते स्तर को कम करने की होनी चाहिए।

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