जलवायु परिवर्तन: झीलों में बढ़ रही है ग्रीनहाउस गैस, नीचे ठंडी रहती हैं और ऊपर गर्म

बेसल और मॉन्ट्रियल विश्वविद्यालय के नेतृत्व में एक शोध दल ने जांच की है कि गर्म जलवायु झीलों के व्यवहार को कैसे प्रभावित करता है

By Dayanidhi

On: Thursday 12 September 2019
 
Photo: Samrat Mukharjee

बेसल और मॉन्ट्रियल विश्वविद्यालय के नेतृत्व में एक शोध दल ने जांच की है कि गर्म जलवायु झीलों के 'व्यवहार' को कैसे प्रभावित करता है। शोधकर्ताओं ने पता लगाया कि झीलों के तले के निकट का पानी ठंडा है, जबकि झीलों की सतह गर्म है, और इससे ग्रीनहाउस गैसों के उत्पादन और उत्सर्जन बढ़ता है। यह अध्ययन लिम्नोलॉजी एंड ओशनोग्राफी लेटर्स, पत्रिका के सबसे नवीन संस्करण में प्रकाशित किया गया हैं।

झीलें प्राकृतिक कार्बन बायोरिएक्टर के रूप में कार्य करते हुए वैश्विक कार्बन चक्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। एक झील का तापमान यह तय करता है कि कितनी मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड और मीथेन के उत्सर्जन को वातावरण में जाने से रोका जाए। आम तौर पर यह माना जाता था कि ग्लोबल वार्मिंग माइक्रोबियल श्वसन प्रक्रियाओं और इन ग्रीनहाउस गैसों के उत्पादन को बढ़ाती है, जबकि उसी समय में यह झील के तलछटों में कार्बन के भंडारण (स्टोरेज) को कम करता है। एक अंतर्राष्ट्रीय शोध टीम ने अब इनके परस्पर पड़ने वाले प्रभावों की बारीकी से जांच की और अप्रत्याशित प्रभावों के बारे में बताया।

शोध परियोजना ने, न केवल ग्लोबल वार्मिंग के प्रत्यक्ष प्रभावों के बारे में बताया, बल्कि अप्रत्यक्ष प्रभावों पर भी प्रकाश डाला है। जांच का मुख्य केंद्र झीलों के गहरे भागों में पानी का तापमान और ग्रीनहाउस गैस के उत्पादन के बारे में जानना था। बासेल विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान विभाग के प्रोफेसर मोरित्ज़ लेहमैन बताते हैं कि "हम ऊष्मप्रवैगिकी (थर्मोडायनामिक्स) के मूल सिद्धांतों पर सवाल नहीं उठाना चाहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि झीलों में  पानी के तापमान में वृद्धि होने से श्वसन चयापचय (मेटाबोलिक) प्रक्रियाओं की दर आम तौर पर अधिक होती है”। "हालांकि, जलवायु परिवर्तन से हर जगह की झील गर्म नहीं होगी।"

सतह के पास गर्म होना, तल के पास ठंडा होना

दुनिया भर में झीलें सतह पर गर्म हो रही हैं। हालांकि, शैवाल (एलगी) उत्पादन में वृद्धि और झील के पानी में बढ़ा हुआ मैलेपन के कारण वे साफ-साफ नहीं दिखाई दे रहे हैं। डॉ. मैकीज कहते है कि "सतह के पानी के गर्म और साफ न होने के कारण गर्मी झीलों की ऊपरी परतों में फंस कर रह जाती है, जिससे गहरे पानी का तापमान नहीं बढ़ पाता है।" कुछ विशेष परिस्थितियों में, यह झील के तल के पास पानी के द्रव्यमान को ठंडा करने का भी कारण बन सकता है। ठंडे पानी के कारण, श्वसन क्षय प्रक्रियाएं धीमी हो जाती है जो झीलों में कार्बन डाइऑक्साइड के उत्पादन को धीमा कर देता है, जिससे तलछटों के भीतर कार्बन का समाप्त होना बढ़ जाता है।

कम कार्बन डाइऑक्साइड, अधिक मीथेन

झीलों में तापमान वृद्धि के अंतर का एक और प्रभाव है। गहरे पानी की परतें मुश्किल से मिश्रित होती हैं और इनमें हवा आर-पार नहीं हो पाती है, जिससे लंबे समय तक यहां ऑक्सीजन की आपूर्ति नहीं हो सकती है। ऑक्सीजन की कमी वाले परिस्थितियों में, एनारोबिक सूक्ष्मजीवों द्वारा मीथेन उत्पादन बढ़ाया जाता है। इन सभी परिस्थितियों के अनुसार, जैसा कि अपेक्षित था, ग्लोबल वार्मिंग से झीलों की ग्रीनहाउस गैस की क्षमता बढ़ जाती है। बार्टोसिविकेज़ कहते है कि हालांकि, इसका सीधे-सीधे गर्मी के लेना-देना कम है, परंतु इसका संबंध झीलों के तल पर ऑक्सीजन की भारी कमी से है।

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