लॉकडाउन के बावजूद 2020 में शिखर पर पहुंचा ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन

2020 में कार्बन डाइऑक्साइड का वैश्विक औसत स्तर 413.2 भाग प्रति मिलियन दर्ज किया गया था, जोकि पूर्व-औद्योगिक स्तर से करीब 149 फीसदी ज्यादा था

By Lalit Maurya

On: Tuesday 26 October 2021
 

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्लूएमओ) ने ग्रीनहाउस गैस बुलेटिन जारी किया है। जिसमें कहा गया है कि 2020 में सबसे महत्वपूर्ण ग्रीनहाउस गैस, कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) का वैश्विक औसत स्तर 413.2 भाग प्रति मिलियन दर्ज किया गया था, जोकि पूर्व-औद्योगिक स्तर से करीब 149 फीसदी ज्यादा था।

यदि मीथेन की बात करें तो उसके स्तर में 262 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है। वहीं 1750 के बाद, जब से मानव गतिविधियों ने प्राकृतिक संतुलन को बाधित करना शुरू किया है तब से नाइट्रस ऑक्साइड में 123 फीसदी की वृद्धि हो चुकी है।     

2020 जिसे कोरोना के लिए जाना जाता है उस वर्ष में जब इस महामारी ने सारी दुनिया में गतिविधियों पर रोक लगा दी थी, सरकारों को लॉकडाउन तक करना पड़ गया था उसके बावजूद ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में कोई गिरावट नहीं आई है, जबकि वो वर्ष 2020 में नए शिखर पर पहुंच चुकी हैं। डब्ल्यूएमओ द्वारा जारी रिपोर्ट से पता चला है कि सभी प्रमुख ग्रीनहाउस गैसें पिछले दशक (2011-20) के औसत की तुलना में 2020 के दौरान तेजी से बढ़ीं थी और यह प्रवृत्ति 2021 में भी जारी रहने की सम्भावना है। 

 

इससे पहले मौना लोवा ऑब्जर्वेटरी द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार जहां 1959 में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा का वार्षिक औसत 315.97 था, जो कि 2018 में 92.55 अंक बढ़कर 408.52 पार्ट्स प्रति मिलियन (पीपीएम) पर पहुंच गया था। यदि इसका औसत देखा जाये तो 1959 से लेकर 2018 तक हर वर्ष वायुमंडल में विद्यमान कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा में 1.57 पीपीएम की दर से वृद्धि हो रही थी। वहीं 03 अप्रैल 2021 को कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 421.21 पीपीएम पर पहुंच गया था, जोकि 36 लाख वर्षों में पहली बार हुआ था। 

क्यों नहीं दिखा लॉकडाउन का असर

बुलेटिन के अनुसार महामारी के कारण आई आर्थिक मंदी का ग्रीनहाउस गैसों के स्तर और उसके बढ़ने की दर पर कोई स्पष्ट प्रभाव नहीं पड़ा है, हालांकि नए उत्सर्जन में अस्थायी गिरावट दर्ज की गई थी।  इसमें कोई शक नहीं कि यदि उत्सर्जन इसी तरह जारी रहता है तो वैश्विक तापमान में होने वाले वृद्धि भी जारी रहेगी। चूंकि कार्बन डाइऑक्साइड लम्बे समय तक वातावरण में बनी रहती है ऐसे में भले ही उत्सर्जन में हो रही वृद्धि को शून्य भी कर दिया जाए, तो भी तापमान का स्तर दशकों तक बना रहेगा। 

अनुमान है कि जितनी कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जित होती है उसका करीब आधा हिस्सा महासागरों और भूमि पर मौजूद पारिस्थितिक तंत्रों द्वारा सोख लिया जाता है। बुलेटिन में चिंता व्यक्त की गई है कि भविष्य में सीओ2 के लिए सिंक के रूप में काम करने वाले महासागरों और भूमि पर मौजूद पारिस्थितिक तंत्रों की क्षमता कम होती जा रही है, जिस वजह से वो ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित नहीं कर पाएंगे। इसका नतीजा यह होगा कि पहले से बढ़ता तापमान और ज्यादा तेजी से बढ़ने लगेगा। 

इस बढ़ते तापमान की वजह से एक तरफ जहां चरम मौसमी घटनाओं का आना आम होता जा रहा है। साथ ही बर्फ पहले के मुकाबले तेजी से पिघल रही है, नतीजन समुद्र का स्तर बह बढ़ता जा रहा है। यही नहीं समुद्र में बढ़ता अम्लीकरण भी बड़े पैमाने पर जनजीवन और पर्यावरण को प्रभावित कर रहा है। 

Subscribe to our daily hindi newsletter