जलवायु परिवर्तन और विकास लक्ष्यों का तालमेल जरूरी

अध्ययन में पाया गया कि यदि प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद 10 हजार डॉलर से अधिक हो जाए तो देशों को कार्बन उत्सर्जन कम करना शुरू कर देना चाहिए, जिससे 0.3 डिग्री सेल्सियस अतिरिक्त तापमान कम होगा।

By Dayanidhi

On: Thursday 17 December 2020
 
How there should be synergy between climate change and development goals in developing countries

 अध्ययनों में पाया गया है कि आर्थिक विकास कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ 2) उत्सर्जन में वृद्धि करता है। विशेष रूप से उभरते हुए देशों जैसे चीन, भारत और ब्राजील के कुछ अध्ययनों से पता चला है कि आर्थिक गतिविधि के दौरान कार्बन उत्सर्जन की तीव्रता बाद के चरणों की तुलना में विकास के शुरुआती चरणों में अधिक होती है।

अमेरिका के कार्नेगी इंस्टीट्यूशन फॉर साइंस और कनाडा के वाटरलू विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने जलवायु परिवर्तन और विकास लक्ष्यों के बीच सामंजस्य को लेकर एक अध्ययन किया है। अध्ययन में कहा गया है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव तभी कम होगा, जब विकास की प्रक्रिया में विकासशील देशों को अपने कार्बन उत्सर्जन को कम करने के प्रयासों की गति को, तब तक धीमा करना होगा जब तक कि वे आर्थिक विकास के एक निश्चित स्तर तक नहीं पहुंच जाते हैं।

अध्ययन में जलवायु परिणामों की जांच की गई है, जिसमें कहा गया है कि विकासशील देशों को कार्बन उत्सर्जन कम करने के अपने प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करने से पहले प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के एक विशेष स्तर तक पहुंचना चाहिए। विश्व बैंक से सकल घरेलू उत्पाद और जनसंख्या के आंकड़ों को मिलाकर सीओ 2 उत्सर्जन के ऐतिहासिक रिकॉर्ड का उपयोग करते हुए, वाटरलू विश्वविद्यालय से जुआन मोरेनो-क्रूज के साथ कार्नेगी इंस्टीट्यूशन फॉर साइंस के वैज्ञानिकों लेई डुआन और केन कैलेडेरा ने एक विस्तृत श्रृंखला बनाई है। जो भविष्य के परिदृश्यों जिसमें सीओ 2 उत्सर्जन ऐतिहासिक रुझानों के अनुसार बढ़ता है और फिर इसमें केवल तभी गिरावट शुरू होती है जब देश एक विशेष आय स्तर तक पहुंच जाते हैं।

लेई डुआन ने कहा कि कम विकसित देशों के लिए कार्बन उत्सर्जन कम (डीकार्बोनाइजेशन) करना अक्सर प्राथमिकता तब तक नहीं होती है, जब तक कि वे आर्थिक विकास और ऊर्जा सेवाओं के प्रावधान को सुनिश्चित नहीं करते। जैसा कि ये देश विकास और समृद्धि की दिशा में काम करते हैं, उन्हें जलवायु और विकास लक्ष्यों के बीच संतुलन बनाने की जरूरत है। लेकिन अगर विकासशील देश अपने सीओ2 उत्सर्जन को कम करने के उपायों को अपनाने में देरी करते हैं, तो हमें यह जानना होगा कि इसका जलवायु पर क्या प्रभाव होगा।  

अध्ययन में पाया गया कि यदि प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 10 हजार डॉलर से अधिक हो जाए तो देशों को कार्बन उत्सर्जन कम (डीकार्बोनाइजेशन) करना शुरू कर देना चाहिए, जिससे 0.3 डिग्री सेल्सियस अतिरिक्त तापमान कम होगा। जिन देशों का जीडीपी स्तर ऊपर है यदि वे देश प्रति वर्ष 2 फीसदी की दर से उत्सर्जन को कम करते हैं, तो विकासशील देशों को कार्बन उत्सर्जन कम करने के लिए और समय मिलेगा जोकि 2020 और 2100 के बीच कुल सीओ 2 उत्सर्जन का केवल लगभग 6 फीसदी होगा।  

वाटरलू विश्वविद्यालय से जुआन मोरेनो-क्रूज ने कहा कि वर्तमान में दुनिया की आधी से अधिक आबादी 10 हजार डॉलर की आय सीमा से नीचे वाले देशों में रहती है, फिर भी हमारे अध्ययन से पता चलता है कि इन देशों में कार्बन उत्सर्जन कम (डीकार्बोनाइजेशन) करने में भागीदारी की कमी का वैश्विक स्तर पर अपेक्षाकृत तापमान में बदलाव पर कम प्रभाव पड़ेगा। यह अध्ययन एनवायर्नमेंटल रिसर्च लेटर्स पत्रिका में प्रकाशित हुआ है।

हालांकि अध्ययन में चेतावनी दी गई है कि लंबी अवधि के उत्सर्जन वाली तकनीक (एमिशन एमिटिंग टेक्नोलॉजी)  को लागू करने से बचा जाना चाहिए। चुनौती यह सुनिश्चित करने के की है आज जीवाश्म ईंधन में किए गए निवेश एक बुनियादी ढांचा नहीं बनाते हैं, जिससे कम कार्बन वाला भविष्य बनाना संभव नहीं है। कार्नेगी इंस्टीट्यूशन फॉर साइंस के केन कैल्डिरा बताते हैं कि खतरा इस बात का है कि कम-विकसित देश जीवाश्म-ईंधन के उपयोग के आदी हो जाते हैं और उनके लिए इस आदत को छोड़ना मुश्किल हो जाता है क्योंकि इससे उनका विकास होता है। आधुनिक और कम कार्बन उत्सर्जन अर्थव्यवस्था के दीर्घकालिक विकास को जगह मिलनी चाहिए।

लेई डुआन कहते हैं कि हम मानते हैं कि सभी देशों को तापमान बढ़ने की पेरिस समझौते के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए एक साथ काम करने की आवश्यकता है जो 2 डिग्री सेल्सियस से अधिक न हो, जो कि पूर्व औद्योगिक स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा में रहे। लेकिन इस अध्ययन से पता चलता है कि परिदृश्यों और मान्यताओं की एक विस्तृत श्रृंखला में, अधिक से अधिक प्रभाव मध्यम और उच्च आय वाले देशों के डीकार्बोनाइजेशन से आएगा।

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