बढ़ता कार्बन उत्सर्जन एशियाई मॉनसून में भारी बदलाव के लिए है जिम्मेवार: अध्ययन
शोध से पता चलता है कि एशियाई मॉनसून पर बढ़ते तापमान का भारी असर पड़ रहा है, मॉनसून में लगातार बदलाव के आसार हैं क्योंकि मानवजनित उत्सर्जन में वृद्धि जारी है
On: Tuesday 21 December 2021
एशियाई मॉनसून पृथ्वी पर सबसे बड़ी मॉनसून प्रणाली है। यह एक विशाल क्षेत्र में नमी की आपूर्ति को नियंत्रित करता है। जो निम्न-अक्षांश पश्चिमी प्रशांत और हिंद महासागरों से लेकर मध्य-अक्षांश पूर्वी एशिया तक फैला हुआ है। प्राचीन काल से एशियाई मानसून में किस तरह बदलाव हो रहा है शोधकर्ताओं ने इसके बारे में पता लगाया है।
शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने ओलिगोसीन युग के अंत के दौरान उच्च वायुमंडलीय सीओ 2 की मात्रा और गर्म जलवायु की स्थितियों के तहत, कक्षीय पैमाने पर एशियाई मॉनसून में होने वाले बदलाव के बारे में खुलासा किया है। शोधकर्ताओं की टीम में चीन, यूके, नीदरलैंड और ऑस्ट्रेलिया के शोधकर्ता शामिल थे। यहां बताते चलें कि ओलिगोसीन पैलियोजीन काल का तीसरा और अंतिम युग था और यह वर्तमान से लगभग 3.39 करोड़ वर्ष पहले तक मौजूद हुआ करता था।
इओसीन-ऑलिगोसीन काल के बाद 3.4 करोड़ वर्ष पहले पृथ्वी एक गर्म ग्रीनहाउस अवस्था में थी। जहां स्थायी ध्रुवीय बर्फ की चादरों के रूप में एक एकध्रुवीय आइसहाउस या बर्फ से ढकी अवस्था थी। अंटार्कटिका एक महाद्वीपीय पैमाने पर बर्फ की चादर के विकास के साथ बदल गया। इस बदलाव के दौरान एक निश्चित मात्रा में ठंडा होने के बावजूद भी पृथ्वी आज की तुलना में काफी अधिक गर्म थी।
3.39 और 2.303 करोड़ साल के बीच ओलिगोसीन नया बना एकध्रुवीय आइस हाउस या बर्फ से ढका हुआ था जो दुनिया में पहले युग का प्रतिनिधित्व करता है। उस समय वायुमंडलीय सीओ 2 की सांद्रता 400 और 800 प्रति मिलियन (पीपीएम) के बीच थी औसत वैश्विक समुद्री सतह का तापमान आज की तुलना में 8 डिग्री सेल्सियस अधिक था और एक बिना बर्फ वाला उत्तरी गोलार्ध था।
अध्ययन के प्रमुख प्रोफेसर एओ ने कहा ओलिगोसीन के दौरान अधिक सीओ 2 ने दुनिया भर में मॉनसून के बदलाव और गतिशीलता बढ़ाई। वहीं वर्तमान में मानवजनित सीओ2 में हो रही वृद्धि के कारण मॉनसून प्रभावित हो रहा है। इस तरह के शोध से निरंतर वायुमंडलीय सीओ2 के बढ़ने के बाद भविष्य के हाइड्रोलॉजिकल परिवर्तनों के पूर्वानुमानों में सुधार करने में मदद मिलती है। इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की छठी आकलन रिपोर्ट में भी तापमान में वृद्धि का अनुमान लगाया गया है।
उत्तर पूर्वी तिब्बती पठार के किनारे पर लान्झोउ बेसिन का अच्छी तरह से पता चलता है, नदी तलछट या गाद इओसीन से मिओसीन तक लगभग पूरी अवधि तक फैला हुआ था। गाद या तलछट जो लगातार पिछली गर्म अवस्था से लेकर वर्तमान परिस्थितियों तक मौजूद है। यह पिछली अवधि के दौरान जलवायु के प्रभाव का अध्ययन करने का एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान करता है।
शोधकर्ताओं ने 4 चुंबकीय संवेदनशीलता और रूबिडियम-से-स्ट्रोंटियम अनुपात (माईर) लंबे ग्रीष्मकालीन मॉनसून रिकॉर्ड की स्थापना की। यह लगातार 2.81 से 2.41 करोड़ साल की अवधि में 4 हजार-वर्ष (केवाईआर) रिज़ॉल्यूशन पर अच्छी तरह से विकसित लान्झोउ बेसिन के तलछट तक फैला हुआ है। ये रिकॉर्ड उच्च-सीओ 2 में कक्षीय पैमाने पर एशियाई मॉनसून परिवर्तनशीलता को प्रकट करते हैं, ओलिगोसीन युग के दौरान दुनिया में गर्म जलवायु थी, 2 करोड़ साल पहले उत्तरी गोलार्ध में हिमनद थे।
भूमि से लेकर समुद्र तक के संबंधों और खगोलीय बल सिद्धांत के आधार पर, ओलिगोसीन के अंत के दौरान इस कक्षीय पैमाने पर क्षेत्रीय मानसूनी वर्षा में बदलाव आया। यह बदलाव सूर्य की गर्मी के विलक्षणता मॉडुलन, एक कम अक्षांश बल, और हिमनद-इंटर ग्लेशियल अंटार्कटिक बर्फ शीट के उतार-चढ़ाव के संयोजन द्वारा नियंत्रित किया गया था।
संयुक्त रूप से निम्न और उच्च अक्षांश बल ने क्षेत्रीय तापमान, पश्चिमी प्रशांत और हिंद महासागरों में जल वाष्प लाने और एशियाई मॉनसून की तीव्रता और विस्थापन को नियंत्रित करके वर्षा की परिवर्तनशीलता को बदल दिया।
इस शोध से पता चलता है कि एशियाई मॉनसून निरंतर ग्लोबल वार्मिंग के लिए अतिसंवेदनशील है, इसके लगातार बढ़ने के आसार हैं क्योंकि मानवजनित उत्सर्जन में वृद्धि जारी है। यह अध्ययन साइंस एडवांस में प्रकाशित हुआ है, इसकी अगुवाई चीनी विज्ञान अकादमी के पृथ्वी पर्यावरण संस्थान के प्रोफेसर एओ होंग ने किया है।
शोध से पता चलता है कि एशियाई मॉनसून पर लगातार बढ़ते तापमान का भारी असर पड़ रहा है, मॉनसून में बदलाव के आसार हैं क्योंकि मानवजनित उत्सर्जन में वृद्धि जारी है।