पिछले एक दशक में भारत में एसओ 2 के स्तर में आई गिरावट: आईआईटी खड़गपुर

पिछले तीन दशकों की तुलना में पिछले एक दशक में भारत में सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ 2) के स्तर में उल्लेखनीय गिरावट आई है

By Dayanidhi

On: Wednesday 21 September 2022
 
फोटो : विकिमीडिया कॉमन्स

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), खड़गपुर द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि पिछले तीन दशकों की तुलना में, पिछले एक दशक में भारत में सल्फर डाइऑक्साइड (एसओ 2) के स्तर में उल्लेखनीय गिरावट आई है।

अध्ययन के अनुसार एसओ 2 के उत्सर्जन और मात्रा में कमी पर्यावरणीय विनियमन और प्रभावी नियंत्रण तकनीकों जैसे 'स्क्रबर' और 'फ्लू गैस डिसल्फराइजेशन' को अपनाने के कारण हुई है। यह अध्ययन सेंटर फॉर ओशन, रिवर, एटमॉस्फियर एंड लैंड साइंसेज (कोरल) इंस्टीट्यूट के शोधकर्ताओं की एक टीम द्वारा किया गया है।

अध्ययन पिछले चार दशकों (1980 से 2020) में पूरे भारत में एसओ 2 सांद्रता में अस्थायी बदलावों को उजागर करता है।

अध्ययन में कहा गया है कि जहां ताप विद्युत संयंत्रों ने एसओ 2 सांद्रता में 51 प्रतिशत का योगदान दिया, वहीं निर्माण क्षेत्र की हिस्सेदारी 29 प्रतिशत थी, जैसा कि उस अवधि के दौरान अनुमान लगाया गया था।

अस्थायी विश्लेषणों से पता चलता है कि भारत में एसओ 2  सांद्रता 1980 से 2010 के बीच कोयले के जलने और उस अवधि के दौरान उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए नई तकनीक की कमी के कारण बढ़ी।

अध्ययन में कहा गया है कि एसओ 2 और ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी ) उत्सर्जन को कम करने के लिए नई तकनीकों को अपनाकर आर्थिक विकास और वायु प्रदूषण नियंत्रण साथ-साथ चल सकता है।

एसओ 2 एक वायुमंडलीय प्रदूषक है और नम परिस्थितियों में इसे सल्फेट एरोसोल में परिवर्तित किया जा सकता है। ये एरोसोल बादलों को प्रतिबिंबित, वर्षा और क्षेत्रीय जलवायु को प्रभावित कर सकते हैं

अध्ययन का नेतृत्व करने वाले प्रोफेसर जयनारायणन कुट्टीपुरथ ने कहा कि अधिक मात्रा में, एसओ 2 मानव स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है।

उन्होंने कहा कि इसलिए, इसकी निरंतर निगरानी अत्यधिक आवश्यक है, क्योंकि इस प्रकार के विश्लेषण से उत्सर्जन से संबंधित निर्णय लेने में मदद मिलेगी।

हमारा विश्लेषण भारत में गंगा के मैदानों और मध्य और पूर्वी भारतीय क्षेत्रों में  एसओ 2 हॉट-स्पॉट के रूप में पहचानता है। हालांकि पिछले दशक में  एसओ 2 के स्तर में सापेक्ष कमी आई है, लेकिन इन क्षेत्रों में इसकी मात्रा अभी भी बहुत अधिक है।

स्रोत :आईआईटी खड़गपुर

अध्ययनकर्ता विकास कुमार पटेल ने कहा हमें भारत में एसओ 2 उत्सर्जन को कम करने के अपने प्रयासों को जारी रखने की आवश्यकता है, चाहे वह नवीन तकनीकों से हो या पर्यावरण नियमों के माध्यम से हो।

संस्थान के निदेशक और प्रोफेसर वी के तिवारी ने कहा कि चूंकि भारत अपनी ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिए कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों पर बहुत अधिक निर्भर है, इसलिए देश में बढ़ते वायु प्रदूषण को रोकने हेतु रणनीति तैयार करने के लिए सटीक और निरंतर आकलनों का उपयोग करके एसओ 2 में स्थानिक और अस्थायी परिवर्तनों का विश्लेषण आवश्यक है।

2010 के बाद से, भारत के अक्षय ऊर्जा उत्पादन में भी काफी वृद्धि हुई है जब देश ने एक सतत विकास नीति अपनाई। ऊर्जा उत्पादन में पारंपरिक कोयले से नवीकरणीय स्रोतों में बदलाव, ठोस पर्यावरण विनियमन, बेहतर फेहरिस्त और प्रभावी तकनीक से देश में एसओ 2 प्रदूषण को रोकने में मदद मिलेगी।

पेरिस समझौते के तहत भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान में 2030 तक अक्षय ऊर्जा आधारित ऊर्जा संसाधनों से लगभग 40 प्रतिशत विद्युत शक्ति स्थापित क्षमता हासिल करना शामिल है।

इस प्रतिबद्धता से कोयला आधारित ऊर्जा पर निर्भरता को कम करने में मदद मिलेगी और भविष्य में एसओ 2 प्रदूषण को रोकने में भी यह मदद करेगी।

अध्ययन में कहा गया है कि 2001 से 2010 की अवधि के दौरान तेजी से आर्थिक विकास एसओ 2 के अधिक वायुमंडलीय सांद्रता का कारण बना।

अध्ययनकर्ता ने कहा हालांकि पिछले दशक के दौरान तकनीकी प्रगति और पर्यावरण नीतियों ने वायुमंडलीय एसओ 2 सांद्रता को कम किया है।

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