स्वर्णिम पहल: विश्व मौसम विज्ञान कांग्रेस ने उत्सर्जन पर निगरानी के लिए ग्लोबल ग्रीनहाउस ट्रैकर को दी मंजूरी

यह पहल कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2), मीथेन (सीएच4) और नाइट्रस ऑक्साइड (एन2ओ) जैसी गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए तत्काल कार्रवाई का समर्थन करती है

By Lalit Maurya

On: Thursday 25 May 2023
 
फोटो: आईस्टॉक

ऐतिहासिक निर्णय लेते हुए विश्व मौसम विज्ञान कांग्रेस ने ग्लोबल ग्रीनहाउस ट्रैकर को मंजूरी दे दी है। यह जानकारी विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति में सामने आई है। इस नई पहल का उद्देश्य वातावरण में लगातार बढ़ते ग्रीनहाउस गैसों के स्तर पर निगरानी रखना है।

गौरतलब है कि यह पहल कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2), मीथेन (सीएच4) और नाइट्रस ऑक्साइड (एन2ओ) जैसी गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए तत्काल कार्रवाई का समर्थन करती है। आपकी जानकारी के लिए बता दें यह गैसें दुनिया भर में बढ़ते तापमान और जलवायु में आते बदलावों के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेवार हैं।

डब्ल्यूएमओ के मुताबिक यह पहल सूचनाओं के आदान प्रदान में जो महत्वपूर्ण अंतराल है, उसको भरने में मददगार होगी। इसके लिए यह एक इंटीग्रेटेड, आपरेशनल फ्रेमवर्क प्रदान करेगी, जिसमें एक ही जगह पर सभी अंतरिक्ष और सतह-आधारित अवलोकन प्रणालियों के साथ मॉडलिंग और आंकड़ों को आत्मसात करने की क्षमता को साथ लाया जा सकेगा।

ग्लोबल ग्रीनहाउस गैस वॉच की स्थापना का प्रस्ताव विश्व मौसम विज्ञान कांग्रेस ने किया था, जिसका समर्थन एकमत से डब्ल्यूएमओ के 193 सदस्यों ने किया है। यह महत्वपूर्ण उपलब्धि ग्रीनहाउस गैसों की निगरानी के बढ़ते सामाजिक महत्व को स्वीकार करती है। इसका उद्देश्य पृथ्वी की प्रणाली के बारे में हमारी वैज्ञानिक समझ में इजाफा करना है।

साथ ही यह जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी) और पेरिस समझौते के पक्षकारों द्वारा जलवायु शमन की वैज्ञानिक नीव को मजबूत करने की आवश्यकता पर जोर देती है, जिससे जलवायु परिवर्तन से प्रभावी तरीके से निपटने की तात्कालिकता पर प्रकाश डाला जा सके।

देखा जाए तो ग्रीनहाउस गैसों से निपटने वाले कई मौजूदा राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय प्रयास शोधकर्ताओं पर निर्भर हैं। हालांकि वर्तमान में सतह और अंतरिक्ष-आधारित ग्रीनहाउस गैस अवलोकनों या मॉडलिंग सम्बन्धी उत्पादों को आपसे में समय पर व्यापक रूप से साझा करने के लिए कोई प्रणाली नहीं है।

इस बारे में डब्ल्यूएमओ के महासचिव प्रोफेसर पेटेरी तालस का कहना है कि "वैश्विक तौर पर ग्रीनहाउस गैसों का स्तर पहले ही रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। वास्तव में वो पिछले आठ लाख वर्षों के अपने उच्चतम स्तर पर है।" उनके अनुसार 2020 से 2021 के बीच कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में जो वृद्धि दर्ज की गई है वो पिछले एक दशक में उसकी औसत वृद्धि दर से भी ज्यादा है। इसी तरह मीथेन में भी माप शुरू होने के बाद से साल-दर-साल सबसे बड़ी वृद्धि देखी गई है।

दुनिया में तेजी से बढ़ रहा है ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन 

2020 में कार्बन डाइऑक्साइड का वैश्विक औसत स्तर 413.2 भाग प्रति मिलियन (पीपीएम) दर्ज किया गया था, जोकि औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 149 फीसदी ज्यादा था। वहीं नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक मई 2021 में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर 419.13 पीपीएम पर पहुंच गया था, जोकि एक रिकॉर्ड है। इससे पहले मार्च 2021 में यह 417.64 पार्टस प्रति मिलियन (पीपीएम) रिकॉर्ड किया गया था।

यदि मीथेन से जुड़े नवीनतम आंकड़ों को देखें तो जनवरी 2023 में इसका औसत मासिक स्तर 1921.74 पीपीबी पर पहुंच गया, जोकि चिंता का विषय है। मीथेन को लेकर संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी एक रिपोर्ट के हवाले से पता चला है कि इसके उत्सर्जन में 45 फीसदी की कटौती हर साल 260,000 लोगों की जान बचा सकती है।

इतना ही नहीं इस कटौती की मदद से हर साल मानव श्रम के 7,300 करोड़ घंटों को बचाया जा सकता है। साथ ही यह हर साल फसलों को होने वाले 2.5 करोड़ टन के नुकसान को टाला जा सकता है।

प्रोफेसर तलास का कहना है कि, "इसके बावजूद महासागर, जीवमंडल और पर्माफ्रॉस्ट से सम्बंधित कार्बन चक्र के भीतर उनकी भूमिका को लेकर अभी भी अनिश्चितताएं बनी हुई हैं।" उनके मुताबिक इसका समाधान करने के लिए जरूरी है कि हम व्यापक पृथ्वी प्रणाली के ढांचे में मौजूद ग्रीनहाउस गैसों की निगरानी शुरू करें।

यह दृष्टिकोण हमें इन गैसों के प्राकृतिक स्रोतों और सिंकों को प्रभावी ढंग से ट्रैक करने की अनुमति देता है। उनके मुताबिक ग्रीनहाउस गैसों की मौजूदा गतिशीलता और बदलती जलवायु को देखते हुए इनकी निगरानी पेरिस समझौते के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करेगी।

गौरतलब है कि यह पहले 30 जनवरी से 02 फरवरी 2023 में हुई अंतराष्ट्रीय संगोष्ठी में इसपर चर्चा हुई थी। जिसमें विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने बताया था कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र के नेतृत्व में सरकारें और अन्तरराष्ट्रीय वैज्ञानिक समुदाय गम्भीरतापूर्वक विचार कर रहे हैं। इस योजना से, वातावरण को दूषित करने वाली ग्रीनहाउस गैसों का आकलन करने और उनसे निपटने में मदद मिलने की आशा है।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन के मुताबिक इस पहल के जरिए जमीन-आधारित आकलन केन्द्रों का एक नेटवर्क स्थापित किया जाएगा। इस नेटवर्क की मदद से अगले पांच वर्षों में वायु गुणवत्ता सम्बंधित आंकड़ों की पुष्टि कर पाना संभव होगा, जोकि विमानों और उपग्रहों से प्राप्त होते हैं।

इसके मद्देनजर डब्ल्यूएमओ ने 2015 में हुए पेरिस समझौते को मजबूत करने के इरादे से, अन्तरराष्ट्रीय सहयोग में बेहतरी लाने और आंकड़ों के आदान-प्रदान पर जोर दिया है। बता दें कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों में पेरिस समझौता बेहद अहम स्थान रखता है। इस समझौते के तहत कार्बन उत्सर्जन में कटौती करने के साथ-साथ जलवायु अनुकूलन को बेहतर बनाने के लिए एक रोडमैप प्रस्तुत किया गया था।

जलवायु वैज्ञानिकों का भी मानना है कि जिस हवा में हम सांस लेते हैं, उसका सटीक आकलन बहुत अहम है। ताकि इसकी मदद से प्रदूषण के स्तर और वायुमंडलीय परिस्थितियों का बेहतर आकलन किया जा सके। इन ग्रीनहाउस गैसों व अन्य प्रदूषकों से वायु गुणवत्ता प्रभावित हो रही है। जिसकी वजह से इंसान, कृषि और पारिस्थितिकी तंत्र प्रभावित होते हैं। ऐसे में इनकी निगरानी काफी अहम है।

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