क्या ‘मनरेगा’ में है कोरोनावायरस से पैदा हुए ग्रामीण संकट का जवाब
गांवों में आजीविका की गारंटी देने वाली इस स्कीम से न केवल लोगों को पैसे की मदद पहुंचती है, बल्कि जल संरक्षण का काम भी होता है
On: Tuesday 14 April 2020


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का मानना है कि भारत के लोगों को इस खतरनाक कोरोनावायरस से न सिर्फ अपनी जान बचाने की जरूरत है, बल्कि उन्हें अपनी जीविका भी बचानी है। कोई शक नहीं कि कोरोनावायरस बीमारी (कोविड-19) के फैलाव का सबसे अधिक असर गरीबों पर हुआ है, खासकर ग्रामीण भारत में रहने वाले गरीबों पर।
एक तरफ, गरीबों के समक्ष जहां बुनियादी चिकित्सा सुविधाओं के अभाव के कारण स्वास्थ्य संबंधी संकट है, वहीं दूसरी तरफ जीविका के अभाव में वे गरीबी का दंश झेलने के लिए भी मजबूर हैं।
ऐसी परिस्थिति में हमें सोचना चाहिए कि क्या महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी एक्ट (मनरेगा) से गांवों में रहने वाले ऐसे लोगों को राहत मिल सकती है या नहीं?
यहां यह देखना भी महत्वपूर्ण है कि क्या मनरेगा ऐसे समय जल संरक्षण के जरिए पानी संकट से देश को उबारने में भी मददगार साबित हो सकता है, जब कोविड-19 के कारण लोग बार-बार हाथ धो रहे हैं?
इस क्रम में एक बार उन चीजों पर नजर दौड़ाते हैं, जिनकी घोषणा सरकार ने गरीब मजदूरों की मदद के लिए की है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत सरकार की योजना 10 अप्रैल, 2020 तक ग्रामीण रोजगार योजना मनरेगा के तहत बकाया (पेंडिंग) सभी मजदूरी या पैसे जारी करने की है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ये पैसे सीधे लाभार्थियों के खाते में जाने हैं। एमआईएस के अनुसार, 10 करोड़ अकुशल श्रमिकों की बकाया मजदूरी पेंडिंग है। जबकि, 13 अप्रैल, 2020 तक अकुशल श्रमिकों की मजदूरी पर 694 करोड़ रुपए की राशि खर्च की जा चुकी है। एमआईएस यह भी बताता है कि वर्तमान वित्त वर्ष के दौरान जो रकम सीधे कुशल और अकुशल मजदूरों के खाते में डाली गई है, वह 627 करोड़ रुपए है।
ग्रामीण रोजगार योजना के तहत कुशल/ अर्धकुशल और अकुशल श्रमिक आते हैं।
वित्त वर्ष 2020-2021 के दौरान मनरेगा के तहत मुख्य कार्य क्षेत्र क्या हैं?
मनरेगा के तहत मुख्य कार्य क्षेत्र ये तीन हैं, जिनसे मनरेगा के अधिकांश कार्य जुड़े हुए हैं- व्यक्ति विशेष की जमीन, जल संरक्षण और वर्षाजल संग्रह और सूखे की समस्या से निजात के उपाय। 2020 की 13 तारीख तक काम से जुड़ी जो मांगें हैं, वे वित्त वर्ष 2019-20 के अप्रैल महीने तक आने वाली मांगों की महज 15 फीसदी हैं।
इससे साफ है कि ग्रुप लेबर वर्क (समूह में श्रम), जो इस ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम का मुख्य फोकस है, उसे कोरोनावायरस के फैलाव को रोकने के लिए हतोत्साहित किया गया है। इसलिए, इस वित्त वर्ष में व्यक्तिगत जमीन पर काम करने को पहली प्राथमिकता दी गई है।
नई जल शक्ति मंत्रालय के तहत जल संरक्षण अभियान का मुख्य काम भी मनरेगा के जरिए ही हो रहा है। लेकिन कोरोनावायरस के खौफ ने ऐसे काम को कम कर दिया है और इस वित्त वर्ष में जल से जुड़े हुए कार्यों पर खर्च किए गए पैसे सभी कार्यों का महज 21.6 फीसदी हैं।
वित्त वर्ष 2020-2021 के दौरान मनरेगा के तहत जल से जुड़े कार्यों पर कम खर्च हुआ है।
स्त्रोत: मनरेगा |
वर्तमान हालात को देखते हुए भारत में काम की मांग (वर्क डिमांड) बढ़ाने के साथ ही जल से जुड़ी योजनाओं पर फोकस करने की भी जरूरत है, क्योंकि यही वक्त की मांग है। पिछले दिनों भारत उस समय चर्चा में आया, जब कोरोनावायरस के फैलाव के रोकने के लिए शहरों में लॉकडाउन किया गया और हजारों की संख्या में मजदूरों ने अपने गांवों की तरफ रुख किया।
ऐसे में ग्रामीण रोजगार योजना के तहत इन श्रमिकों को काम का बड़ा अवसर मिल सकता है। सरकार को अब यह देखने की भी जरूरत है कि कैसे इस अवसर का उपयोग जल संरक्षण अभियान में तेजी लाने के लिए भी किया जा सकता है।