मनरेगा, जरूरी या मजबूरी-1: 85 फीसदी बढ़ गई काम की मांग

कोरोना काल में कितनी कारगर साबित होगी मनरेगा योजना, डाउन टू अर्थ की व्यापक पड़ताल-

By Rajit Sengupta, Raju Sajwan

On: Wednesday 01 July 2020
 
Photo: Neha Sakhujia

14 साल पुरानी महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) योजना एक बार फिर चर्चा में है। लगभग हर राज्य में मनरेगा के प्रति ग्रामीणों के साथ-साथ सरकारों का रूझान बढ़ा है। लेकिन क्या यह साबित करता है कि मनरेगा ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी है या अभी इसमें काफी खामियां हैं। डाउन टू अर्थ ने इसकी व्यापक पड़ताल की है, जिसे एक सीरीज के तौर पर प्रकाशित किया जा रहा है। पढ़ें, पहली कड़ी-

महात्मा गांधी ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत काम की मांग पिछले दो माह से लगातार तेजी से बढ़ रही है, जो यह साबित करता है कि ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए मनरेगा कितना महत्व रखती है।

कोरोनावायरस संक्रमण के प्रसार को रोकने के लिए मार्च के अंतिम सप्ताह से देशव्यापी तालाबंदी (लॉकडाउन) के बाद अप्रैल माह में मनरेगा के तहत सबसे कम काम की मांग की गई। आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल में केवल 1.20 करोड़ परिवारों ने काम की मांग की, जो कि साल 2013-14 के बाद से लेकर अब तक सबसे कम मांग रिकॉर्ड की गई।

लेकिन बड़े शहरों में बेरोजगार हुए प्रवासी मजदूरों का संयम अप्रैल माह के अंत तक टूट गया और वे पैदल ही अपने घर-गांव की ओर चल पड़े। मई में सरकार को भी उनके लौटने का इंतजाम करना पड़ा।

सवाल वही था कि प्रवासी श्रमिक जब गांव लौटेंगे तो करेंगे क्या? इस सवाल का जवाब मनरेगा में ढूंढ़ा गया। आंकड़े बताते हैं कि मई माह में 3.6 करोड़ से अधिक परिवारों ने मनरेगा के तहत काम मांगा और जून में तो काम मांगने के आंकड़े ने पिछले सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए। 30 जून तक के आंकड़े बताते हैं कि 4.36 करोड़ से अधिक परिवारों ने काम की मांग की।

इससे पहले के आंकड़े बताते हैं कि 2012-13 से लेकर 2019-20 के बीच जून महीने में काम औसत मांग 2.36 करोड़ रही। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि जून 2020 में सामान्य से लगभग 85 फीसदी अधिक काम की मांग की गई, जो कि एक रिकॉर्ड है। 

वहीं, मनरेगा के तहत काम की औसत मासिक मांग की बात की जाए तो 2012-13 से 2019-20 के बीच औसतन हर माह 2.15 करोड़ परिवारों ने काम की मांग की।

ये आंकड़े बताते हैं कि भारत में रोजगार की क्या स्थिति है। लोगों ने अकसर बड़े संकट के समय में इस स्कीम पर भरोसा जताया है, क्योंकि यह स्कीम अकुशल श्रमिक को भी निश्चित मजदूरी पर गारंटी युक्त रोजगार प्रदान करती है।

राज्य-स्तरीय विश्लेषण से पता चलता है कि जून में की गई कुल मांग का 57 फीसदी केवल इन राज्यों में रिकॉर्ड किया गया।

उत्तर प्रदेश (74 लाख)

राजस्थान (54 लाख)

आंध्र प्रदेश (44 लाख)

तमिलनाडु (41 लाख)

पश्चिम बंगाल (39 लाख)

 

मई माह में भी उत्तर प्रदेश में ही मनरेगा के तहत अधिकतम काम की मांग की है। यहां 55 लाख परिवारों ने काम की मांग की, जबकि इसके बाद आंध्र में 42 लाख, राजस्थान में 41 लाख, तमिलनाडु में 26 लाख और पश्चिम बंगाल में 26 लाख परिवारों ने काम की मांग की। आंकड़े बताते हैं कि जून 2020 में लगभग 26 राज्यों में पिछले सात वर्षों (2013-14 से 2019-20) के सामान्य औसत से ज्यादा परिवारों ने काम की मांग की।

अगली कड़ी में पढ़ें - योजना में विसंगतियां भी कम नहीं

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