मनरेगा का हाल: इस जिले में केवल एक परिवार को मिला 100 दिनों का रोजगार
हरियाणा में साल दर साल इस योजना के तहत 100 दिनों का रोजगार पाने के लिए रजिस्टर्ड लोगों की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन काम मिलने में मामले में इनकी संख्या घटी है
On: Wednesday 19 February 2020
बेरोजगारों को रोजगार देने के मकसद से शुरू की गई महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) हरियाणा में दम तोड़ रही है। वित्तीय वर्ष 2019-20 अब खत्म होने वाला है, लेकिन हरियाणा के चरखी-दादरी जिले में अब तक महज एक परिवार को इस योजना के तहत 100 दिनों का रोजगार मिला है। जबकि जिले में योजना का लाभ लेने के लिए 22,753 परिवार रजिस्टर्ड है। इस जिले के 106 पंचायतों में से 57 पंचायतें ऐसी है, जिन्होंने इस योजना के तहत कोई खर्च ही नहीं किया। काम नहीं हुआ तो मजदूरों को रोजगार नहीं मिला। नियमानुसार हर रजिर्स्ड परिवार से एक व्यक्ति को रोजगार देने का प्रावधान है।
यह हालत है, उस प्रदेश की जहां सबसे अधिक बेरोजगारी दर होने की बात सामने आई है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनोमी के सितंबर 2019 के डाटा के मुताबिक, हरियाणा में 20.3 फीसदी बेरोजगारी थी, लेकिन इसके बावजूद हर हाथ को काम देने का दावा करने वाली मनरेगा की स्थिति बेहद खराब है। मौजूदा वित्तीय वर्ष में 15 फरवरी तक हरियाणा राज्य में 2865 परिवार को 100 दिनों का रोजगार मिला है। जबकि इस दौरान 9,69,483 परिवार रजिस्टर्ड थे। यह आंकड़ा मनरेगा की सरकारी वेबसाइट पर दर्ज है। बता दें कि मनरेगा के तहत प्रदेश में ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कें, भारत निर्माण राजीव गांधी सेवा केंद्र, सूक्ष्म सिंचाई योजना, जलाशयों का निर्माण, जल संरक्षण के लिए पिटों का निर्माण समेत अन्य काम होते है। इन कामों के लिए इस योजना के तहत मजदूरों को काम में लगाने का प्रावधान है।
हर साल घट रही है संख्या
हरियाणा में साल दर साल इस योजना के तहत 100 दिनों का रोजगार पाने के लिए रजिस्टर्ड लोगों की संख्या तो बढ़ी है, लेकिन काम मिलने में मामले में इनकी संख्या घटी है। साल 2013-14 में रजिस्टर्ड परिवार 780025 थी। इसमें 14103 परिवारों को 100 दिनों का रोजगार मिला था। जबकि 2017-18 में रजिस्टर्ड परिवार की संख्या बढ़कर 886781 हो गई, जबकि 100 दिनों का रोजगार केवल 3942 परिवार को मिला। साल 2018-19 में प्रदेश में केवल 3783 परिवारों को 100 दिनों का रोजगार मिला है, जबकि इस दौरान पूरे प्रदेश में 9,30,111 परिवार रजिर्स्टड थे। इस वित्तीय वर्ष में सिरसा जिले में 1,08,275 परिवारों ने रजिस्टर्ड कराया था, जबकि महज 71 परिवारों को 100 दिनों का रोजगार मिला।
सेंटर फॉर इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) के प्रदेश अध्यक्ष सतबीर सिंह मनरेगा की दयनीय स्थिति के लिए राज्य सरकार की नीति को दोष ठहराते है। सतबीर का कहना है, हरियाणा सरकार का मनरेगा मजदूरों को लेकर दोहरा रवैया है। अब भी मनरेगा की मजदूरी 284 रुपये प्रति दिन है, जबकि हरियाणा में न्यूनतम मजदूरी 347 रुपये है। जबकि बाजार मूल्य 500-700 रुपये है। सरकार ने प्रदेश की भौगोलिक स्थिति और बाजार मूल्य को देखते हुए मजदूरी तय नहीं की है।
1579 पंचायतों में नहीं हुए काम
एक तरफ मनरेगा के तहत 100 दिनों का रोजगार पाने के लिए रजिस्टर्ड लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है। वहीं, दूसरी ओर इस वित्त्ीय वर्ष में 1579 पंचायतें ऐसी है, जो मनरेगा के तहत जारी रकम अपने यहां खर्च ही नहीं कर सकी। मनरेगा की अधिकारिक वेबसाइट पर जारी आंकड़ों के मुताबिक 22 जिलों में 6234 ग्राम पंचायतें है। इसमें प्रदेश के सात जिलों की स्थिति सबसे खराब है। रेवाड़ी जिले में 369 ग्राम पंचायतें मौजूद है, जिसके 304 पंचायतों में कोई काम ही नहीं हुआ। सोनीपत में 132, पलवल में 107, गुरुग्राम में 164, फरीदाबाद में 151, झज्जर में 97, जींद में 40, करनाल में 59, पंचकूला में 29 ग्राम पंचायतों में काम नहीं हुआ। पानीपत और रोहतक को छोड़कर अन्य जिलों के ग्राम पंचायतों ने काम नहीं किया। जबकि नियमानुसार, मनरेगा के तहत सभी ग्राम पंचायत को इस स्कीम के तहत रजिस्टर्ड लोगों को रोजगार मुहैया कराना होता है।