मनरेगा: राजस्थान ने तीन माह में ही साल के लक्ष्य का 63 प्रतिशत हासिल किया

राजस्थान मनरेगा के तहत 18.90 करोड़ मानव दिवस सृजित कर देश में पहले स्थान पर 57.34 लाख परिवारों को लाभान्वित कर उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर है

By Anil Ashwani Sharma

On: Tuesday 04 August 2020
 
राजस्थान के एक गांव में मनरेगा के तहत काम करती एक महिला। फोटो: अनिल अश्वनी शर्मा

  

“राजस्थान में अकाल निरंतर पड़ते ही रहे हैं। मुझे सन 2000 का अकाल ध्यान आ रहा है। जब राज्य में पहली बार न्यूनतम 100 दिनों के रोजगार की मांग की गई थी। उस समय के तात्कालिक ग्रामीण विकास मंत्री ने इसे सुनते ही खारिज कर दिया था।” यह बात देश की सबसे बड़ी सहकारी बुनकर समिति के निदेशक अरविंद ओझा ने डाउन टू अर्थ से तब कही जब उनसे राजस्थान में मनरेगा की भूमिका के बारे में पूछा गया।

राज्य में तब से शुरू हुई यह लड़ाई आखिर महात्मा गांधी राष्ट्रीय न्यूनतम रोजगार गारंटी एक्ट प्राप्त कर के ही जीती गई। इस योजना की सफलता राज्य में सबसे अधिक लॉकडाउन के दौरान दिखी। राज्य के अजमेर जिले के बादरसिंदड़ी तहसील के मीणाओं की ढाणी (गांव) के पूर्व सरपंच अखिलेश कुमार ने कहा कि अक्सर देखा-सुना जाता है कि दुनिया की आधी आबादी अपनी हर छोटी-बड़ी जरूरतों को पूरा करने के लिए किसी ना किसी स्तर पर हम पुरूषों की ओर ताकती हैं। लेकिन इस मामले में हमारे गांव की महिलाओं ने इस बात को झुठला दिया है। क्योंकि उनके हाथों में अब मनरेगा जैसा एक कारगर हथियार जो है। यहां पर कुल 120 मनरेगा मजदूर काम कर रहे हैं। इस गांव में पहली बार मनरेगा के तहत इतने अधिक लोगों ने काम की मांग की। इस संबंध में साइट के मैट कुलदीप बताते हैं कि पिछले साल इसी समय में गांव में केवल 57 लोग मजदूरी करने आते थे।

गांव में बन रहे इस फीडर के माध्यम से जब बारिश का पानी गांव के तालाब में पहुंचेगा तो इस गांव के लगभग 80 हेक्टेयर जमीन सिंचित होने की स्थिति में होगी। गांव के बुजुर्ग हंसराज बताते हैं कि फीडर के माध्यम से पानी के स्त्रोतों तक बारिश की एक-एक बूंद को पहुंचाने का सर्वेश्रेष्ठ प्राकृतिक माध्यम है। चूंकि पिछले सालों में बारिश के पानी के साथ आई मिट्टी के कारण ये फीडर लगभग पूरी तरह से चोक (जाम) हो चुके था, जिसके चलते गांव का तालाब पूरी तरह से जल रहित हो गया था। केचमेंट एरिया का पानी भी फीडर के चोक होने के कारण तालाब तक नहीं पहुंच पा रहा था, जिससे गांव में पेयजल का संकट पिछले तीन साल से बना हुआ है।

पानी की कमी की मार सबसे अधिक गांव की महिलाओं पर ही पड़ी है। यही कारण है कि इस फीडर के निर्माण में गांव की महिलाएं बढ़-चढ़ कर लगी हुई हैं। क्योंकि उन्हें मालूम है कि तालाब भरेगा तो उनके कुंओं में पानी आएगा और उन्हें कई किमी दूर से पानी लाने की मुसीबत से छुटकारा मिलेगा। इस संबंध में मनरेगा के अधिकारी अमित माथुर कहते हैं कि मनरेगा का वक्त सुबह 6 बजे शुरू होता है और खत्म दोपहर एक बजे होता है। सप्ताह में एक दिन गुरूवार को इनकी छुट्टी होती है, लेकिन अक्सर ये महिलाएं उस दिन भी काम पर आ डटती हैं। उन्हें लगता है कि यह काम वे अपने लिए कर रही हैं। तालाब की क्षमता के संबंध में गांव के बुजुर्ग हीरालाल बताते हैं कि यदि यह फीडर पूरी तरह साफ-सूफ हो गया तो तालाब में 16 हजार क्यूबिक मीटर पानी का भराव होगा, जिससे गांव के 24 कुओं व तीन नलकूप का जल स्तर बढ़ बढ़ेगा।

राजस्थान में अजमेर जिला मनरेगा के अंतर्गत काम देने वाले जिलों में चाथे नंबर पर आता है। यहां अब तक दो लाख 80 हजार 12 श्रमिकों को रोजगार दे रहा है। जिले ने अपना 11 साल पुराना रिकॉर्ड तोड़ दिया है जब देश में आर्थिक मंदी का दौर था। 2009 में जिले में मनरेगा के तहत 2 लाख 59 हजार श्रमिकों को काम दिया गया था। उसके बाद लगातार श्रमिकों की संख्या में लगातार गिरावट देखी गई थी। अजमेर को मनरेगा के तहत अच्छे काम के लिए 2018 में केंद्रीय ग्रामीण मंत्रालय द्वारा पुरुस्कृत भी किया जा चुका है (यहां ध्यान रखने वाली बात है यह पुरुष्कार पाने और देने वाली वो सरकारें हैं जो मनरेगा को एक ढहता स्मारक की संज्ञा देते हुए नहीं थक रही हैं)। जिले में लॉकडाउन के बाद श्रामिकों की आवक तेजी से बढ़ी। इस संबंध में अजमेर जिला परिषद के मनरेगा कार्यकारी अधिकारी गजेंद्र सिंह राठौर ने बताया कि अप्रैल, 2020 में जिले में मात्र 1,749 श्रमिक थे जो कि मई में बढ़कर एक लाख 25 हजार 101 हो गए। वह बताते हैं कि 16 अप्रैल, 2020 को जिले की 54 ग्राम पंचायतों में मात्र 750 श्रमिक मनरेगा के अंतर्गत कार्यरत थे। 

यदि पूरे राज्य का खाका खींचा जाए तो राजस्थान मनरेगा के तहत 18.90 करोड़ मानव दिवस सृजित कर देश में प्रथम स्थान पर है तथा 57.34 लाख परिवारों को लाभान्वित कर उत्तर प्रदेश के बाद दूसरे स्थान पर है। राजस्थान में 99.84 प्रतिशत परिवारों को समयसीमा के अंदर काम का भुगतान किया जा रहा है अब तक। राज्य में कोविड-19 महामारी एवं लॉकडाउन से उत्पन्न आजीविका के संकट तथा प्रवासी मजदूरों के आगमन के कारण कार्य की मांग में अत्यधिक वृद्धि हुई है। राज्य सरकार ने लगातार जोर देकर कई विडियों कान्फ्रेंस के माध्मय से जिलों से बात का नतीजा यह रहा कि श्रमिकों की संख्या 24 अप्रेल, 2020 को 8.30 लाख बढ़ना शुरू हुई जो 30 अप्रेल, 2020 को 10.92 लाख, 01 जून, 2020 को 41.58 लाख और 10 जून, 2020 को 52.51 लाख श्रमिकों तक पहुंच गई। ध्यान रहे कि 23 मार्च को कोविड-19 के लॉकडाउन के कारण 2020-2021 में मनरेगा कार्यों पर श्रमिकों का नियोजन 16 अप्रेल, 2020 को मात्र 1,21,854 था।

राज्य में मनरेगा की वस्तुस्थिति के बारे में डाउन टू अर्थ को बताते हुए राज्य के मनरेगा आयुक्त पीसी किशन कहते हैं, इस योजना के तहत अप्रैल, 2020 से 21 जुलाई तक राजस्थान में 57.34 लाख परिवारों के 77.17 लाख लोगों को रोजगार मिला है, जिससे 18.90 करोड़ मानव दिवस सृजित हुए हैं। यह वित्तीय वर्ष 2020-21 के कुल लक्ष्य 30 करोड़ मानव दिवस सृजन का 63 प्रतिशत है। यानी वर्ष की पहली तिमाही में राज्य ने लक्ष्य का 63 फीसदी हासिल कर लिया है।

मनरेगा में ग्रामीण क्षेत्रों में लौट रहे प्रवासी मजदूरों को प्राथमिकता के आधार पर रोजगार उपलब्ध कराया जा गया है। अब तक लगभग 2.33 लाख प्रवासी परिवारों को रोजगार उपलब्ध कराया गया है। योजना के उद्देश्यों के अनुसार, इस वित्तीय वर्ष के दौरान समाज के पिछड़े तबके जैसे 11.90 लाख अनुसूचित जाति, 13.13 लाख अनुसूचित जनजाति, 47.51 लाख अन्य महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराया गया है। किशन ने राज्य में मनरेगा में सुधार की गुजाइंश पर कहते हैं कि यह हमेशा हर चीज में बनी रहती है। मनरेगा में भी है। लेकिन पहले की तुलना में योजना में काफी सुधार हुए हैं और वक्त के साथ आगे भी होंगे। मनरेगा को लेकर आम जनता में धारणा थी कि यह एक गड्ढा खोदो योजना है, इसमें किसी भी प्रकार की परिसम्पत्तियों का सृजन या निर्माण नहीं होता। पहले मनरेगा में 12 प्रकार के कार्य कराए जा सकते थे, लेकिन अब इन्हें बढ़ाकर 260 कर दिया गया है। यही इस योजना की बढ़ती सफलता का प्रमुख राज है।

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