जारी है प्रवासी श्रमिकों का घर लौटना, अहमदाबाद में रेलवे स्टेशन पर जुटी है भीड़

 गुजरात के सबसे बड़े औद्योगिक नबर अहमदाबाद में प्रवासी मजदूर हर हाल में अपने वतन वापस जाना चाहते हैं क्योंकि उन्हें गतवर्ष की तरह खाने के इंतजार में दिन और रात नहीं काटनी है।  

By Kaleem Siddiqui

On: Wednesday 21 April 2021
 
Photo : अहमदाबाद में रेलवे स्टेशन पर गाड़ी के इंतजार में प्रवासी

प्रधानमंत्री ने 20 अप्रैल को रात टीवी पर आकर राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रवासी मजदूरों के पलायन को रोकने की अपील अवश्य की लेकिन उनके ही अपने गृह राज्य गुजरात में हालात बेकाबू हैं। बड़ी संख्या में प्रवासी मजदूर अपने-अपने वतन को लौट रहे हैं। राज्य के मुख्यमंत्री से लेकर उनके सहयोगी या राज्य का प्रशासनिक अमला इस पलायन को रोकने में पूरी तरह से असफल साबित हो रहे हैं। और मीडिया के प्रवासी संबंधी सवालों से अपने बचा रहे हैं। कोई मीटिंग का बहाना कर बात करने से इंकार कर रहा है तो कोई सीधे ही कह दे रहा है इस मुद्दे पर मैं कुछ भी नहीं कह सकता हूं। कल आपने उत्तर प्रदेश के प्रवासी मजदूरों की हालात पर रिपोर्ट पढ़ी थी। आज पढ़िए अहमदाबाद में प्रवासी मजदूरों की हालात पर रिपोर्ट।

 

कोरोना भय और लॉकडाउन के असमंजस के बीच जब 20 अप्रैल, 2021 को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए राज्यों से अपील किया कि कोरोना के खिलाफ लड़ाई में लॉकडाउन को अंतिम विकल्प के रूप में देखें। लॉकडाउन से देश को बचाना है। प्रधानमंत्री ने मजदूरों से कहा कि जहां हो वहीं रहो, पलायन मत करो। प्रधानमंत्री ने राज्य सरकारों से कहा मजदूरों को विश्वास दिलाओ कि काम नहीं बंद होगा। उन्हें कोरोना का टीका दिया जाएगा।

इसके बावजूद प्रवासी श्रमिकों के बीच कोई भरोसा नहीं पैदा हुआ है। दिल्ली समेत कई राज्यों ने अपने-अपने तरीके से लॉकडाउन की घोषणा की है। इस भय से गुजरात के प्रवासी मजदूरों के पलायन में तेजी आई है। सरकार राष्ट्रीय स्तर पर भले ही लोक डाउन की न सोच रही हो लेकिन कोरोना के बढ़ते मामलों से श्रमिकों के बीच लॉकडाउन का भय बढ़ता जा रहा है। विशेष कर प्रवासी मजदूरों में। गुजरात सरकार में उप मुख्मंत्री नितिन पटेल ने कहा है कि लॉकडाउन से कोरोना की चैन टूट जाएगी ऐसा कोई वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है। हालांकि पटेल ने राज्य में लॉकडाउन की संभावना को नकारा है फिर भी गुजरात के अहमदाबाद, सूरत जैसे बड़े शहरों से प्रवासी मजदूरों का पलायन तेजी से हो रहा है।

अहमदाबाद शहर में रात 8 बजे से सुबह 6 का कर्फ़्यू है। उत्तर प्रदेश और बिहार को जाने वाली साबरमती एक्सप्रेस, अहमदाबाद से हावड़ा, भावनगर से आसनसोल जैसी ट्रेनों का समय रात्रि के 10 बजे के बाद का  है जिसके कारण यात्री ट्रेन के समय से 3-4 घंटे पहले ही रेलवे स्टेशनों पहुंच रहे हैं। 40 वर्षीय बहादुर महतो अहमदाबाद के मोटेरा में रहते हैं। अहमदाबाद से हावड़ा जाने वाली हावड़ा एक्सप्रेस पकड़ने के लिए महतो 7 बजे ही रेलवे स्टेशन पहुंच गए।

महतो को लगता है लॉकडाउन लग सकता है। इसलिए अपने गांव को लौट रहे हैं। यहां कुक का काम करते हैं। महतो कहते हैं कि लॉकडाउन लगा तो मैं फंस जाऊंगा। इससे अच्छा है बंगाल ही चला जाऊं, वहां भी मेहनत-मजूरी करने पर कुछ न कुछ कमा ही लेंगे। लॉकडाउन हुआ भी कम से कम परिवार के साथ रहूंगा। यहां रहा तो लॉकडाउन में पिछले वर्ष की तरह भूख से तड़फना होगा। 

इसी प्रकार से अजय राजभर, अनिल पाठक और अजय कोरी अहमदाबाद रेलवे स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस की प्रतीक्षा कर रहे थे। अजय राजभर ने डाउन टू अर्थ को बताया कि हम लोग अहमदाबाद के वटवा इलाके में रहते हैं। फर्नीचर का काम करते हैं। पिछले वर्ष लॉकडाउन हुआ तो हमलोग बड़ी मुश्किल से ट्रक में बैठ कर गांव गए थे। यहां कोरोना तेजी से फैल रहा है और सरकार ने लॉकडाउन किया तो हम लोग फिर से मुश्किल में फंस जाएंगे। टिकट मिल गया है। गांव पहुंच कर वहां काम भर की मजूरी तो मनरेगा में भी थोड़ा बहुत मिल ही जाएगा। जब उनसे बताया गया अभी तो सरकार भी मनरेगा की मजूरी का भुगतान समय से नहीं कर पा रही है। तो अजय कहते हैं कि यहां भी तो कभी-कभी काम के पैसे फंस जाते हैं। अब जब तक कोरोना महामारी का अंत नहीं होता हम लोग गांव में ही रहेंगे।

अजय कहते हैं कि कल रात प्रधान मंत्री ने राष्ट्र को संबोधित करते हुए कहा है कि  राज्य सरकार लॉकडाउन को अंतिम विकल्प के रूप में देखे और लोक डाउन की संभावना कम है। लेकिन इनका क्या भरोसा, उन्हें तो बस रेडियो, टीवी में आकर केवल बोल कर चले जाना है। यदि वे कल पिछले साल की तरह से टीवी पर आकर रात बारह बजे से लॉकडाउन की घोषणा कर देते तो कोई क्या कर लेता।

रेलवे स्टेशन पर कई ऐसे लोग भी मिले जो निजी कारणों से अपने गांव जा रहे हैं। भावनगर-आसनसोल एक्सप्रेस की प्रतीक्षा कर रहे मोईन हैदर ने बताया कि  हम लोग निजी कारणों से गांव जा रहे हैं। परिवार में शादी है, टिकट भी दो महीने पहले बना था। लॉकडाउन लगे या न लगे हमारा जाना तो तय था। प्रकाश जो अहमदाबाद के बापूनगर में लॉन्ड्री का काम करते हैं। 22 अप्रैल को साबरमती एक्सप्रेस से अपने गांव जाने के लिए टिकट बुक करवा लिया है।

वे कहते हैं कि इस समय हर साल काम में तेजी रहती है लेकिन लॉकडाउन के भय से प्रवासी वर्ग गांव जा चुका है, ऐसे में यहां इस समय काम में भारी मंदी छायी हुई है। इसके कारण काम भी बहुत कम है, इसलिए गांव जा रहे हैं। प्रकाश को लगता है कि यदि लॉकडाउन लगना हुआ तो इस महीने के अंत में लग जाएगा, इसीलिए 4 मई को वापसी का टिकट करवाया है। लॉकडाउन हुआ तो गांव में ही रुक जाएंगे नहीं तो 4 मई को वापस साबरमती पकड़ अहमदाबाद आ जाएंगे।

अहमदाबाद के बापू नगर के इमरान शेख 53 लोगों को विशेष लग्जरी बस से प्रधानी के चुनाव में वोट करवाने उत्तर प्रदेश के जिले जौनपुर ले गए थे। इमरान बताते हैं कि जौनपुर से अहमदाबाद केवल 22 लोग ही लौटे। 31 लोग चुनावी प्रक्रिया पूरी होने के बाद अपने गांव में ही रुक गए। जबकि आनेजाने की मुफ्त व्यवस्था की गई थी। रुकने वालों को लगता है कि अहमदाबाद में लॉकडाउन लगेगा।

प्रवासी मजदूरों के पलायन और प्रधानमंत्री की राज्यों से की गई अपील पर हमने राज्य सरकार श्रम विभाग के अपर मुख्य सचिव विपुल मित्रा से प्रतिक्रिया जाननी चाही तो उन्होंने इस मुद्दे पर प्रतिक्रिया देने से मना कर दिया। राज्य से प्रवासी मजदूर बड़ी तेजी से पलायन कर रहे हैं। सरकार उन्हें रोक पाने में असफल है। जब डाउन टू अर्थ ने अहमदाबाद पश्चिम के सांसद डॉ. किरीट सोलंकी से पूछा कि सरकार प्रवासी मजदूरों को रोकने में क्यूं असफल है जबकि प्रधानमंत्री ने राज्य सरकारों से अपील की है कि सरकारें प्रवासी मजदूरों को भरोसे में लें तो सोलंकी ने भी प्रतिक्रिया देने के बजाय कहा अभी मैं बात नहीं कर पाऊंगा, मुझे एक ज़रूरी मीटिंग में जाना है।

राज्य में भले ही लॉकडाउन घोषणा न हुई हो लेकिन बहुत सी जगह लोग स्वयं कारखाने और कारोबार बंद कर रहे हैं क्योंकि मजदूरों और कारीगरों की कमी है।

लाला भाई गुज्जर ऑटोमोबाइल वर्कशॉप के मालिक हैं। उन्होंने अहमदाबाद वटवा जीआईडीसी स्थित वर्कशॉप को कुछ समय के लिए बंद कर दिया है और खुद अपने वतन राजस्थान जा रहे हैं। 

वह कहते हैं कि कोरोना की विकट परिस्थिति के कारण मजदूर वर्ग डरा हुआ है। अस्पतालों से आ रही खबरों और लोगों को मरता देख मजदूर वर्ग घबराकर अपने वतन लौट रहे हैं। कारखाने चलाने के लिए कारीगर तो चाहिए न, ये लोग अपने गांव चले जाएंगे तो बंदी करना मजबूरी भी है।

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