बुंदेलखंड राहत पैकेज घोटाला -1 : जांच की आंच से डरे कागजी विकास करने वाले नेता-अधिकारी

आरटीआई से मिली जानकारी में यह खुलासा हुआ कि वन विभाग को जारी 180 करोड़ के कुल फंड की 80 फीसदी राशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई।  

On: Friday 21 February 2020
 
राहत पैकेज का सच : हरपुरा टीकमगढ़ नहर परियोजना की बदहाल तस्वीर। फोटो : संतोष पाठक

संतोष पाठक

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मध्य प्रदेश में बुन्देलखण्ड क्षेत्र की बदहाली दूर करने के लिए जारी किये गए 7,400 करोड़ के राहत पैकेज घोटाले का जिन्न एक बार फिर बोतल से बाहर आने को बेताब है। मध्यप्रदेश की कमलनाथ सरकार ने इसकी जांच आर्थिक अपराध प्रकोष्ठ (ईओडब्ल्यू) से कराने का आदेश जारी किया तो पूर्व सीएम शिवराज सिंह चौहान की चिंताएं बढ़ गईं। ऐसा इसलिए क्योंकि बुन्देलखण्ड पैकेज निगरानी समिति भी पैकेज में हुई गड़बड़ी को लेकर सीधे जांच के निशाने पर आ रही है। इस समिति के अध्यक्ष शिवराज सिंह चौहान ही थे और मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश पर हुई जांच के बाद भी वह इसमें फंसने वाले प्रशासनिक अधिकारियों को बचाने के लिए फाइल दबाए रखने के आरोपों से भी घिरे रहे हैं। यह पैकेज राहुल गांधी की पहल पर यूपीए सरकार ने बुन्देलखण्ड के विकास के लिए जारी किया था, लेकिन अनियमितताओं का शिकार हो गया। विधानसभा चुनाव में इस घोटाले को कांग्रेस ने मुख्य चुनावी मुद्दा बनाया और सरकार बनाने के बाद अब कमलनाथ ने इसकी जांच ईओडब्ल्यू को सौंप दी है।  

वर्ष 2009 में तत्कालीन यूपीए सरकार ने मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड क्षेत्र के 13 जिलों में विकास कार्यों के लिए 7,266 करोड़ रुपये का विशेष पैकेज जारी किया था। बाद में यह बढक़र 7,400 करोड़ से अधिक का पैकेज हो गया। इनमें 3,800 करोड़ रुपये मध्य प्रदेश और 3,500 करोड़ रुपए उत्तर प्रदेश के लिए दिए गए थे। साल 2012 में ही बुन्देलखण्ड पैकेज की अनियमितताएं सामने आने लगीं थीं। इस मामले की पहली जांच चीफ टेक्निकल एक्जामनर विजिलेंस (सीटीईवी) द्वारा की गई। नेशनल रेनफेड एरिया अथॉर्टी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) जेएस सामरा ने उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के जिलों में दौरा कर निर्माण कार्यों में अनियमितताएं होने की रिपोर्ट दोनों राज्यों को भेजी थी, लेकिन राज्यों ने इस जांच पर कोई ठोस एक्शन नहीं लिया। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के जिलों में पैकेज के तहत खोदे गए तालाब, कुएं, बकरी पालन से लेकर हर एक मद में घोटाले के आरोप सामने आने के बाद भी राज्य सरकारें इस मामले को लेकर गंभीर नहीं दिखीं।

2014 में टीकमगढ़ के समाजसेवी पवन घुवारा ने इस मामले में आरटीआई से मिली जानकारियों के आधार पर हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी। इस याचिका पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बुन्देलखण्ड पैकेज में हुए घोटालों की जांच के लिए निर्देश जारी कर दिए। हाईकोर्ट के निर्देश पर गठित जांच टीम ने 2017 में जो रिपोर्ट जारी की उसमें पैकेज की धनराशि में बड़े पैमाने पर घोटाला होने की पुष्टि हो गई। जांच टीम ने साफ तौर पर 350 स्टाप डैम के निर्माण में भारी अनियमितता होने का खुलासा किया। मध्य प्रदेश के छह जिलों में 1250 नलजल योजनाओं में से एक हजार नलजल योजनाएं पूरी तरह से बंद पाई गईं, जबकि पैकेज का पैसा खर्च कर इनको चालू बताया गया था।

बुंदेलखंड पैकेज के तहत मध्य प्रदेश के सागर में 840 करोड़, छतरपुर में 918 करोड़, दमोह में 619 करोड़, टीकमगढ़ में 503 करोड़, पन्ना में 414 करोड़ और दतिया में 331 करोड़ का काम होना था। इस मामले में आरटीआई लगाकर हाईकोर्ट से जांच कराने वाले पवन घुवारा कहते हैं "जल संसाधन विभाग को 1340 करोड़, पीएचई विभाग के 300 करोड़, ग्रामीण विकास विभाग के 209 करोड़ खर्च, कृषि विभाग के तहत 614 करोड़, वन विभाग को जारी 180 करोड़ के कुल फंड की 80 फीसदी राशि भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ गई।"

अनियमितताएं सामने आने के बाद प्रदेश के 200 से अधिक जिम्मेदार अधिकारियो को घोटाले का दोषी माना गया, लेकिन इस रिपोर्ट पर शासन स्तर से सिर्फ अधिकारियों को नोटिस जारी कर कार्रवाई को पूरी तरह से दबा दिया गया। पवन घुवारा की मानें तो सभी दोषी बताए गए अधिकारियों पर एफआईआर उसी समय हो जानी चाहिए थी, लेकिन इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान पर भी इसके छींटे पडऩा लाजमी थे। मध्य प्रदेश की शिवराज कैबिनेट ने 12 सितम्बर 2017 को लिये गये फैसले में बुन्देलखण्ड पैकेज मे भ्रष्टाचार करने वालों पर (नियम) सेवानिवृत्त के चार साल बाद भी कार्यवाही होने की बात कही, लेकिन इसे लागू नहीं किया गया।

डाउन टू अर्थ ने दो वर्ष पूर्व बुंदेलखंड राहत पैकेज की जमीनी पड़ताल की थी। तब यह सच सामने आया था कि राहत पैकेज का जमीन पर सही से इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। 7 मार्च, 2018 को प्रकाशित  "राहत की रस्म अदायगी" नाम से इस रिपोर्ट को क्लिक कर आप इसे पढ़ सकते हैं।

भ्रष्टचार जांच की अगली कड़ी में पढ़िए विकास कार्य के लिए कैसे पांच टन पत्थर स्कूटर से ढ़ोए गए? 

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