पानी पर डीएमएफ फंड खर्च करने से आया सकारात्मक बदलाव : सीएसई

सोनभद्र और रामगढ़ में लोगों को दूषित पानी से मिला छुटकारा

By DTE Staff

On: Monday 13 April 2020
 
सोनभद्र जिले में डीएमएफ का पैसा पानी पर खर्च किया जा रहा है। फाइल फोटो: मीता अहलावत

खनन प्रभावित क्षेत्रों में रहने वालों के हितों की रक्षा के लिए जिला खनिज फाउंडेशन (डीएमएफ) ट्रस्ट स्थापित किए गए। डीएमएफ में अब तक लगभग 36,000 करोड़ रुपए एकत्र किए गए हैं। डीएमएफ ट्रस्ट देश भर के 21 राज्यों के 571 जिलों में स्थापित किए गए हैं।  क्या डीएमएफ का पैसा सही से खर्च किया जा रहा है। सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने इसकी पड़ताल की, इस पड़ताल के आधार पर डाउन टू अर्थ ने रिपोर्ट्स की एक सीरीज शुरू की। इसकी पहली कड़ी में आपने पढ़ा कि डीएमएफ से दूर होगी खनन प्रभाावितों की गरीबी । दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा, क्या डीएमएफ की राशि का इस्तेमाल सही दिशा में हो रहा है? । तीसरी कड़ी पढ़ें-

सोनभद्र जिले की अनपरा पंचायत में रहने वाली मनोरमा देवी साफ पानी को नायाब मानती हैं। “जल ही जीवन है” की विडंबना से वह भली भांति परिचित हैं। दरअसल, गांव और उसके आसपास को लोगों को हैंडपंप से जो पानी मिलता है वह पीले रंग का होता है। कई बार उस पानी से बदबू भी आती है। इस पानी को केवल उबालकर ही पिया जा सकता है। इस पानी से कई बार बीमारियां हो जाती हैं। फ्लोरिसिस, जोड़ों में दर्द, हड्डियों में कमजोरी की शिकायत बड़ों से लेकर युवाओं में देखी जाती है। 

अनपरा म्योरपुर में स्थित है जो सोनभ्रद का खनन क्षेत्र है। यह मध्य प्रदेश के सिंगरौली जिले से लगा हुआ है। सोनभ्रद और सिंगरौली में लंबे समय से रहे खनन यहां के पानी को बेहद प्रदूषित कर दिया है। यहां पानी की कमी की समस्या भी लोगों के सामने है। यह क्षेत्र जल विद्युत संयंत्रों का भी केंद्र है।

सतह और भूजल प्रदूषण ने साफ पानी को यहां एक सपना बना दिया है। नेशनल ग्रीन ट्राइब्यूनल (एनजीटी) में जमा की गई केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की 2015 की रिपोर्ट बताती है कि यहां राख का उचित प्रबंधन नहीं किया जिसने रिहंद जलाशय को प्रदूषण कर दिया है। यह जलाशय इस क्षेत्र में जलापूर्ति का प्रमुख स्रोत है। 

केंद्रीय भूजल बोर्ड के अनुसार, म्योरपुर में भूजल प्रदूषण सेमी क्रिटिकल माना गया है। यहां के पानी में फ्लोराइड का बेहद उच्च स्तर पाया गया है, खासकर 35 गांवों में। यहां पानी का स्तर 8 पीपीएम (पार्ट्स पर मिलियन) पाया गया है। यह स्तर स्वीकार सीमा 1-1.5 पीपीएम से बहुत अधिक है।

अब अनपरा, औरी और कुलडोमरी पंचायत के लोग पहली बार अपने घरों में स्वच्छ जलापूर्ति की उम्मीद लगा रहे हैं। डिस्ट्रिक्ट मिनिरल फाउंडेशन (डीएमएफ) से इस उम्मीद को बल मिल रहा है।

सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट की “द रिपोर्ट इंप्लीमेंटेशन स्टेटस एंड इमर्जिंग बेस्ट प्रैक्टिसेस ऑफ डीएमएफ” पीने के पानी पर किए गए निवेश की सकारात्मक तस्वीर पेश करती है। झारखंड के रामगढ़ जिले, मांडू और पतरारू पंचायत के कुछ क्षेत्रों में उपचारित पानी की पाइपलाइन से सप्लाई शुरू हो गई है। ये इलाके कोयला खनन के केंद्र हैं। कुछ जगह यह सेवा ट्रीटमेंट प्लांट में लगे सौर हैंडपंप की सहायता से मिल रही है।

स्वच्छ पानी के लिए डीएमएफ फंड
खनन प्रभावित क्षेत्रों में स्वच्छ पेयजल की उपलब्धता सबसे बड़ी चुनौतियों में एक है। खनन गतिविधियों के कारण भूजल और सतह का पानी अक्सर प्रदूषित हो जाता है। खनन से भूजल का स्तर पर भी गिरता है। इससे कई बार गर्मियों में पानी का संकट पैदा हो जाता है। इस कारण जल सुरक्षा खनन प्रभावित क्षेत्रों में लोगों के कल्याण से जुड़ जाता है। यही वजह है कि उच्च प्राथमिकता वाले क्षेत्रों में डीएमएफ का पैसा जल सुरक्षा में लगाना चाहिए।

सभी खनन प्रभावित जिलों के अधिकांश राज्यों में डीएमएफ का पैसा पेयजल परियोजनाओं में लगाया गया है। कुछ छोटी अवधि के उपायों में हैंडपंप और ट्यूबवेल पर जोर दिया जा रहा है लेकिन इनमें पानी के फिलट्रेशन पर विचार नहीं किया जा रहा है। अन्य उपाय लंबी अवधि के हैं, जिनमें पाइपलाइन से जलापूर्ति पर जोर है।
सीएसई की रिपोर्ट में रामगढ़ और सोनभद्र जिलों का विशेष रूप से उल्लेख है जहां डीएमएफ से पेयजल की आपूर्ति लोगों तक पहुंची है अथवा पहुंचने वाली है।

रामगढ़ में अल्पकालीन और दीर्घकालीन उपाय
रामगढ़ के अधिकांश परिवार हैंडपंप या खुले कुओं पर निर्भर हैं। जिले ने 2016 में 892 करोड़ के डीएमएफ फंड का 77 प्रतिशत पानी के लिए निर्धारित किया। जिले ने सबसे पहले छोटे गांवों, माध्यमिक और हाई स्कूलों में सौर ऊर्जा आधारित छोटे कार्य शुरू किए जिसमें भंडारण के लिए पानी का टैंक का निर्माण, बोरवेल और फिल्ट्रेशन के उपकरण शामिल थे। इस छोटी सौर परियोजना से 25-30 परिवारों को सेवा मिली। 27 करोड़ के बजट से ऐसी 496 कार्य किए गए।

रामगढ़ प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट (पीएमयू) में डीएमएफ का काम देख रहे जाहिद बताते हैं, “इन्हें शुरू करने के पीछे विचार यह था कि जल्द लोगों को फायदा पहुंचे। सौर आधारित परियोजनाओं, लघु फिल्ट्रेशन और भंडारण से स्वच्छ पानी की उपलब्धता लंबे समय के लिए हो सकती है।”

दीर्घकालीन उपायों के लिए रामगढ़ ने 649 करोड़ रुपए पाइपलाइन से जलापूर्ति की 26 परियोजनाओं के लिए स्वीकृत किए। इनमें से एक परियोजना है म्रार-सेवता पाइपलाइन जो अब शुरू हो चुकी है। इस परियोजना की लागत 20 करोड़ रुपए है और खनन से प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित मांडू की 3 पंचायतों, रामगढ़ ब्लॉक के 2500 परिवारों को मदद पहुंचा रही है। इस परियोजना का लक्ष्य 1900 और परिवारों तक मदद पहुंचाना है।

जिले के अधिकारियों के अनुसार, पानी दामोदर नदी का पानी ट्रीट करके घरों तक पहुंचाया जाता है। पांच साल के लिए इसकी संचालन और मरम्मत लागत 3.2 करोड़ रुपए है जो परियोजना लागत में शामिल है।

समुदाय के लोगों को इन परियोजनाओं से केवल स्वच्छ पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित नहीं हुई है बल्कि दूर से पानी लाने पर लगने वाले समय और श्रम की भी बचत हुई है। सेवता की मीना देवी का कहना है कि हैंडपंप के पानी से बच्चों में पेट की बीमारियों हो जाती थीं लेकिन अब हालात बदल गए हैं। मीना देवी रामगढ़ के मांडू क्षेत्र के पुंडी पंचायत की मुखिया हैं।

सोनभद्र में पाइपलाइन से जलापूर्ति
सोनभद्र ने 189 करोड़ के डीएमएफ फंड में 50 प्रतिशत दो पाइपलाइन से जलापूर्ति की परियोजनाओं के लिए स्वीकृत किए हैं। दोनों परियोजनाओं का आधे से अधिक काम हो चुका है। जिले ने म्योरपुर क्षेत्र की खनन से सर्वाधित प्रभावित तीन बड़ी पंचायतों को लक्षित किया है। प्रशासन अनपरा थर्मल पावर प्लांट से निकलने वाले पानी को ट्रीट कर घरों तक पहुंचाएगा।

यह सप्लाई कम से कम 30 साल तक जारी रहेगी। शुरुआत में कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा। कुछ सालों बाद प्रशासन यह तय करेगा कि परियोजना को मरम्मत के लिए पंचायतों के हवाले किया जाए या डीएमएफ से इसकी मरम्मत की जाए। मनोरमा देवी कहती हैं, “अगर जलापूर्ति शुरू हो जाती है तो यह हमारे समुदाय के लिए किसी वरदान से कम नहीं होगा। उम्मीद है कि इससे हम लोग स्वस्थ रहेंगे।”

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