एसटी का दर्जा नहीं मिला तो झारखंड-ओडिशा में अब कुड़मी समाज रोकेगा रेल

कुड़मी समाज की चेतावनी दी है कि यदि लोकसभा के आगामी शीतकालीन सत्र में उन्हें एसटी का दर्जा नहीं दिया गया तो आंदोलन का विस्तार किया जाएगा

By Anil Ashwani Sharma

On: Monday 10 October 2022
 
आंदोलन की तैयारी के सिलसिले में बैठक करते कुड़मी समाज के लोग

कुड़मी महतो समाज ने चेतावनी दी है कि यदि संसद के आगामी शीतकालीन सत्र के दौरान उन्हें अनुसूचित जनजाति यानी एसटी का दर्जा नहीं दिया गया तो पश्चिम बंगाल के साथ-साथ झारखंड और ओडिशा में भी रेल रोको आंदोलन शुरू किया जाएगा।

यह आंदोलन नवंबर में होगा। समाज ने यह भी मांग की है कि न केवल एसटी का दर्जा बल्कि हमारी भाषा को आठवीं अनुसूची में भी स्थान दिया जाए।

आदिवासी अधिकारों के लिए लगातार आंदोलन करने वाले रांची के वरिष्ठ कार्यकर्ता प्रवीर पीटर का कहना है कि राज्य सरकारों को इस मामले में सोच-विचार कर फैसला करना होगा। क्योंकि राज्य सरकारें अपने चुनावी वायदे में तात्कालिक लाभ के लिए अपनी घोषणा पत्रों में इस प्रकार की मांगों को शामिल कर लेती हैं।

कुड़मी महतो समाज ने चेतावनी दी है कि इस बार अकेले पश्चिम बंगाल में ट्रेनें नहीं रोकी जाएंगी बल्कि झारंखड और ओडिशा में भी रोकी जाएंगी। उनका कहना है कि हमने अपना आंदोलन पूजा और दीवाली जैसे त्यौहारों के कारण जनहित में स्थगित कर दिया है और साथ ही पश्चिम बंगाल राज्य सरकार ने भी हमें आश्वासन दिया था कि वे हमारी मांगों पर विचार करेगी।

ध्यान रहे कि कुड़मी महतो जाति को अनुसूचित जनजाति (एसटी) में शामिल करने संबंधी मांग को लेकर कुड़मी मोर्चा के बैनर तले 20 से 24 अक्तूबर तक रेल रोको आंदोलन होना था, लेकिन कुड़मी समाज ने जनहित में आंदोलन वापस ले लिया है।

समाज की बैठक में कहा गया कि इसका मतलब यह नहीं है कि हमारी लड़ाई खत्म हो गई है। केंद्र सरकार ने इन मांगों को पूरा नहीं किया तो फिर आंदोलन का और विस्तार होगा।

समाज का कहना है कि 1950 में एक साजिश के तहत कुड़मी को एसटी की सूची से निकाला गया। इसका खामियाजा आज समाज के लोग भुगत रहे हैं। बैठक में यहां तक कहा गया कि जब हमारा रहन-सहन सब कुछ आदिवासी जैसा है, तो फिर सरकार हमें एसटी में क्यों नहीं सूचीबद्ध कराना चाहती है। एसटी सूची से बाहर रहने के कारण समाज के लोगों को पिछले 70 सालों से उनका हक नहीं मिला है।

समाज की तरफ से प्रधानमंत्री को भी कुड़मी महतो जाति को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने के लिए पत्र लिखा गया है और उनसे कुड़मी महतो समाज को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 342 के तहत अनुसूचित जनजाति में शामिल करने का आग्रह किया गया है।

पत्र में लिखा है कि 23 नवंबर 2004 में झारखंड मंत्रिपरिषद की बैठक में तय किया गया है कि 1913 एवं 1938 में अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल कुड़मी महतो जाति को बिना किसी कारण के 1950 एवं 1952 की सूची में शामिल नहीं किया गया।

उन लोगों का कहना है कि ब्रिटिश राज में 1931 की अनुसूचित जनजाति की सूची में कुड़मी समुदाय शामिल था। 1950 तक कुर्मी एसटी के तौर पर ही जाने जाते थे। लेकिन 1950 में आई सूची में इन्हें एसटी से निकालकर ओबीसी में रखा गया।

आंदोलनकारी कुर्माली भाषा को संविधान के 8वें शेड्यूल में शामिल करने की भी मांग कर रहे हैं। झारखंड में अपनी आबादी को लेकर कुड़मी समाज के लोग मानते हैं कि आबादी 22 प्रतिशत के करीब है। वहीं ओडिशा में लगभग 25 लाख है। पश्चिम बंगाल में इस जाति की आबादी 30 लाख से ज्यादा बताई जाती है।

समाज की बैठक में यह भी कहा गया है कि यदि एथ्नोग्राफी ( नृवंशविज्ञान एक अनुसंधान विधि है। इसके अंतर्गत अक्सर मानव समाज या संस्कृतियों पर अनुभवी आंकड़े जुटाने का कार्य किया जाता है) सर्वे की आवश्यकता पड़े तो झारखंड की संवैधानिक संस्था झारखंड राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग से सर्वे कराना सही होगा।

इंडियन सेक्शन एक्ट 1865 एवं 1925 में भी कुड़मी को जनजाति माना गया है। यह वर्ष 1913 में भारत सरकार की अधिसूचना संख्या 550 और 25 मई 2013 को जारी गजट ऑफ इंडिया के पेज नंबर 471 में प्रकाशित हुआ है, जिसमें 13 जातियों के साथ कुड़मी को एटी माना गया है।

पीटर कहते हैं कि कुर्मी जाति के लोग पिछड़ा वर्ग के तहत आते हैं। ये उत्तर प्रदेश और बिहार के कुर्मी समुदाय से अलग हैं। इन्हें कुड़मी महतो कहा जाता है। कुड़म़ी खुद को झारखंड का बताते हैं। ध्यान रहे कि कुड़मी महतो जाति के लोग देश के चार राज्यों झारखंड, असम, ओडिशा के कुछ हिस्से और पश्चिम बंगाल में रहते हैं।

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