तीन दिन चला नींदड़ के किसानों का जमीन समाधि सत्याग्रह, फिलहाल स्थगित

ग्रामीणों का कहना है कि उनकी जमीन का मुआवजा भूमि अधिग्रहण कानून 2014 के हिसाब से दिया जाए

On: Friday 10 January 2020
 
राजस्थान के नींदड़ में जमीन के मुआवजे की मांग को लेकर ग्रामीण तीन दिन तक ऐसे ही जमीन के अंदर रहे। फोटो: माधव शर्मा

माधव शर्मा

जयपुर विकास प्राधिकरण की नींदड़ आवासीय योजना के भूमि अधिग्रहण और दिए जा रहे मुआवजे के विरोध में नींदड़ के किसानों का सत्याग्रह शुक्रवार को स्थगित हो गया है। किसानों की मांग है कि अधिग्रहित जमीन का मुआवजा भूमि अधिग्रहण कानून 2014 के हिसाब से दिया जाए। इसी मांग को लेकर किसान चार दिन से भूमि सत्याग्रह कर रहे थे।

शुक्रवार को किसानों से मिलने गए मुख्य सचेतक और कांग्रेस नेता महेश जोशी ने सरकार की ओर से किसानों को आश्वासन दिया कि इस समस्या के समाधान के लिए एक कमेटी बनाई जाएगी। वहीं, नींदड़ बचाओ संघर्ष समिति के संयोजक और आंदोलन के अगुआ नगेन्द्र सिंह शेखावत ने बताया कि सरकार के प्रतिनिधि महेश जोशी के वादे के बाद फिलहाल भूमि सत्याग्रह स्थगित कर दिया है। जोशी ने किसानों से वादा किया है कि जब तक समस्या का कोई हल नहीं निकलता तब तक नींदड़ में जयपुर विकास प्राधिकरण धरना स्थल और नींदड़ की जमीन पर कोई कब्जा नहीं लेगा। बनने वाली कमेटी में जेडीसी, खुद महेश जोशी और किसान शामिल होंगे। उम्मीद है अब कोई रास्ता निकल आएगा। अगर कमेटी में भी हमारी मांगें नहीं मानी गईं तो हम फिर से आंदोलन करेंगे।’

इससे पहले नींदड़ के पांच किसानों ने मंगलवार सात जनवरी को भूमि सत्याग्रह शुरू किया था। किसानों की मांग थी कि सरकार नींदड़ आवासीय योजना में अधिग्रहित की जा रही जमीन का 2014 के भूमि अधिग्रहण कानून के तहत मुआवजा दे। सत्याग्रह के दौरान गुरूवार को सीताराम शर्मा नाम के किसान की तबीयत भी खराब हो गई, जिसे एंबुलेंस से अस्पताल लाया गया। सीताराम का इलाज जारी है।

बता दें कि जयपुर-चौमूं राजमार्ग पर स्थित नींदड़ गांव में साल 2017 में भी  सैंकड़ों किसानों ने जेडीए की इस आवासीय योजना में जमीन अधिग्रहण का इसी तरह विरोध किया था। इस अनूठे विरोध को देश-विदेश की मीडिया ने कवर किया था।

क्यों है विरोध?

बढ़ते शहर के दवाब को कम करने के लिए साल 2010 में जयपुर विकास प्राधिकरण ने नींदड़ गांव में आवासीय कॉलोनी बसाने के लिए किसानों की जमीन अवाप्ति प्रक्रिया शुरू की। 2013 में यह जमीन अवॉर्ड कर दी गई। ये कॉलोनी 1350 बीघा जमीन पर प्रस्तावित है। किसानों ने अपने स्तर पर इसका विरोध शुरू किया। 2017 में नींदड़ बचाओ समिति ने अवाप्ति को निरस्त करने की मांग के साथ हाईकोर्ट में एक रिट दायर की और आंदोलन शुरू किया। हाईकोर्ट ने जमीन अवाप्ति को सही माना। इसके बाद किसान सुप्रीम कोर्ट गए। वहां भी चार सितंबर 2018 को फैसला जेडीए के पक्ष में आया। अवाप्ति के विरोध में किसानों ने 2 अक्टूबर 2017 को पहली बार भूमि समाधि ली। यह आंदोलन 44 दिन तक चला। तब तत्कालीन वसुंधरा सरकार ने आपसी सहमति की बात करते हुए राजीनामा किया था।

राजस्थान के नींदड़ में जमीन अधिग्रहण के खिलाफ जमीन में समाधि करते हुए। फोटो: माधव शर्मा

जेडीए के जोन-12 में आने वाले इस क्षेत्र के उपायुक्त मनीष फौजदार डाउन-टू-अर्थ को बताते हैं कि ‘शुक्रवार शाम को ही एक कमेटी बना दी जाएगी। किसानों को प्रदर्शन का अधिकार है, लेकिन वे उस जमीन के लिए आंदोलन कर रहे हैं जिसे अवाप्त करने के आदेश सुप्रीम कोर्ट ने भी दिए हैं। अभी तक 350 किसान अपनी जमीन समर्पित कर चुके हैं। करीब 300 किसान समर्पण पत्र दे चुके हैं। पिछले तीन दिन में 80 किसानों ने समर्पण पत्र हमें सौंपा है। जो किसान समर्पण पत्र दे चुके हैं, जेडीए उस जमीन को अधिग्रहित कर रहा है। हालांकि शुक्रवार से यह काम बंद कर दिया है क्योंकि कमेटी के आदेश पर ही अगली कार्रवाई होगी।’

वे कहते हैं, ‘किसानों की मांग है कि 2014 में आए जमीन अधिग्रहण कानून के तहत उन्हें मुआवजा दिया जाए। लेकिन नींदड़ आवासीय योजना की 2010 प्रक्रिया शुरु हुई और 2013 में यह अवार्ड हो गई। हालांकि जो मुआवजा किसानों को दिया जा रहा है वह 2014 के कानून के हिसाब से भी काफी ज्यादा है, लेकिन किसानों में काफी भ्रम फैला है।’

किसानों को क्या मिलेगा?

नींदड़ आवासीय योजना में अपनी जमीन समर्पित करने वाले किसानों को जेडीए विकसित भूमि का 25% हिस्सा दे रहा है। इसमें 20 फीसदी आवासीय और 5 फीसदी व्यावसायिक भूखंड किसानों को दिए जाएंगे। जेडीए इसे 2014 के भूमि अधिग्रहण कानून से भी ज्यादा मुआवजा बता रहा है तो किसान इसे महज प्रलोभन बता रहे हैं।

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