आधुनिक दासता के शिकार हैं 5 करोड़ लोग, पांच वर्षों में 25 फीसदी बढ़ा आंकड़ा

आंकड़े दर्शाते हैं कि इनमें से 2.8 करोड़ लोगों से जबरन काम करवाया गया था। वहीं 2.2 करोड़ लोगों को जबरदस्ती विवाह करने के लिए मजबूर किया गया था

By Lalit Maurya

On: Tuesday 13 September 2022
 

इससे बड़ी विडम्बना क्या होगी कि दुनिया में आज भी करीब पांच करोड़ लोग किसी न किसी रूप में गुलामी की जिंदगी जी रहे हैं। इस बारे में अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन ( द्वारा जारी नई रिपोर्ट “ग्लोबल एस्टीमेट ऑफ मॉडर्न स्लेवरी” से पता चला है कि 2021 में दुनिया भर में करीब पांच करोड़ लोग किसी न किसी रूप में आधुनिक दासता का शिकार थे। आंकड़े दर्शाते हैं कि इनमें से 2.8 करोड़ लोगों से जबरन काम करवाया गया था। वहीं 2.2 करोड़ लोगों को जबरदस्ती विवाह करने के लिए मजबूर किया गया था।

सिर्फ इतना ही नहीं मौजूदा आंकड़े दर्शाते हैं कि पिछले पांच वर्षों में गुलामी का जीवन जीने वाले इन लोगों की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। जहां 2016 में करीब चार करोड़ लोग आधुनिक दासता के शिकार थे, वहीं 2021 में 25 फीसदी की वृद्धि के साथ यह आंकड़ा बढ़कर पांच करोड़ के करीब पहुंच गया है। इस बारे में आईएलओ का कहना है कि सच यह है कि चीजें पहले से बदतर हो रही हैं, जोकि चौंकाने वाला है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि यहां आधुनिक दासता का मतलब शोषण की उन परिस्थितियों से है जहां कोई व्यक्ति धमकी, हिंसा, दबाव, धोखे या शक्ति के दुरुपयोग के कारण ना तो काम से मना कर सकता है और ना ही उस काम को छोड़ सकता है। उसे मजबूरी में वो काम करते रहना पड़ता है।

रिपोर्ट में जारी आंकड़ों के अनुसार जबरन मजदूरी करवाने के जो मामले सामने आए हैं उनमें से 86 फीसदी निजी क्षेत्र से जुड़े थे। वहीं पैसे के लेनदेन से जुड़े यौन शोषण से इतर अन्य क्षेत्रों में करवाया गया जबरन श्रम ऐसे कुल मामलों का करीब 63 फीसदी था। वहीं पैसे के लेनदेन से जुड़े यौन शोषण के लिए मजबूर किये जाने वाले मामले, कुल जबरन श्रम सम्बन्धी मामलों के 23 फीसदी थे। जिनमें हर पांच में से चार पीड़ित या तो महिलाएं या लड़कियां थी।

सरकार द्वारा थोपी जाने वाली जबरन मजदूरी का शिकार थे 14 फीसदी श्रमिक

हालात का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि जबरन श्रम के लिए मजबूर किए जाने वाले लोगों की कुल संख्या में से करीब 14 फीसदी, सरकारों द्वारा थोपी जाने वाली जबरन मजदूरी का शिकार थे। वहीं जबरन मजदूरी के हर आठ में से एक मामले का शिकार बच्चा था। जिनकी कुल संख्या करीब 33 लाख है। वहीं इनमें से आधे से ज्यादा मामले पैसे के लेनदेन वाले यौन शोषण से जुड़े थे।

रिपोर्ट से पता चला है कि प्रवासी मजदूरों के जबरन मजदूरी का शिकार होने का जोखिम सबसे ज्यादा होता है। अनुमान है कि उनपर यह जोखिम अन्य श्रमिकों की तुलना में तीन गुना ज्यादा है। यह सही है कि मजदूरों के प्रवास से उनके घर-परिवार और समुदायों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है, लेकिन साथ ही इन प्रवासियों के लिए जबरन मजदूरी और तस्करी का शिकार होने का जोखिम भी सबसे ज्यादा होता है।

वहीं यदि जबरन विवाह की बात करें तो रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 में यह आंकड़ा करीब 2.2 करोड़ था। जोकि 2016 की तुलना में 66 लाख ज्यादा है। हालांकि विशेषज्ञों का मानना है कि जबरन विवाह के मामले इस आंकड़े से कहीं ज्यादा हो सकते हैं। उनके अनुसार विशेष रूप से 16 वर्ष या उससे कम उम्र के बच्चों के लिए स्थिति कहीं ज्यादा खराब है।        

गौरतलब है कि बाल विवाह को जबरन कराई गई शादी के तौर पर देखा जाता है, क्योंकि कोई भी बच्चा कानूनी रूप से अपनी शादी के लिए सहमति नहीं दे सकता है। देखा जाए तो इसके लिए लम्बे समय से चले आ रहे रीतिरिवाज और प्रथाएं जिम्मेवार हैं। इस तरह के अधिकांश मामले पारिवारिक दबाव के कारण होते हैं। यदि क्षेत्रीय आधार पर देखें तो जबरन विवाह के करीब दो तिहाई यानी 65 फीसदी मामले एशिया प्रशांत क्षेत्र में दर्ज किए गए थी। अरब देश इससे सर्वाधिक प्रभावित हैं। इस क्षेत्र में हर एक हजार में से 4.8 लोगों का विवाह जबरन करवाया जाता है।

रिपोर्ट के अनुसार ऐसा नहीं है कि आधुनिक दासता के मामले सिर्फ कुछ गिने चुने पिछड़े देशों में ही सामने आते हैं। इसके मामले दुनिया के करीब-करीब हर देश में सामने आए हैं जहां ये जातीय, सांस्कृतिक व धार्मिक सीमाओं से परे हैं।

साधन संपन्न देशों में दर्ज किए गए हैं जबरन विवाह के 25 फीसदी मामले

रिपोर्ट के मुताबिक जबरन श्रम के कुल मामलों में से करीब 52 फीसदी मामले मध्यम-उच्च या उच्च आय वाले देशों में सामने आए हैं। इसी तरह जबरन विवाह के करीब  25 फीसदी मामले संपन्न देशों में दर्ज किए गए हैं जो स्पष्ट तौर पर दर्शाता है कि यह समस्या केवल पिछड़े और साधनों की कमी का सामना कर रहे देशों तक ही सीमित नहीं हैं।

इस बारे में अन्तरराष्ट्रीय श्रम संगठन के महानिदेशक गाय राइडर ने रिपोर्ट के निष्कर्षों पर क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा है कि “यह हैरान कर देने वाला है कि आधुनिक दासता के हालात में सुधार नहीं हो रहा है।“ उनका कहना है कि “बुनियादी मानवाधिकारों के साथ इस दुर्व्यवहार के जारी रहने को किसी भी प्रकार से न्यायसंगत नहीं ठहराया जा सकता है।“

संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी इस रिपोर्ट की मानें तो इसके लिए बढ़ता संघर्ष, जलवायु परिवर्तन और कोविड-19 महामारी का प्रकोप जिम्मेवार है, जो इस चुनौती को कहीं ज्यादा मुश्किल बना रहा है। अनुमान है कि 2020 में करीब 45.2 करोड़ बच्चे ऐसे क्षेत्रों में रह रहे थे, जहां संघर्ष जारी था। ऐसे में उनका भविष्य का क्या होगा इसका अंदाजा आप स्वयं लगा सकते हैं।

इससे बचने के लिए रिपोर्ट में कुछ सिफारिशें भी प्रस्तुत की गई हैं, जिनसे इस कुप्रथा का अंत किया जा सकता है। इनमें श्रम कानूनों में सुधार, निरीक्षण और उनकों बेहतर तरीके से लागू करना शामिल है। साथ ही सरकार द्वारा थोपी गई जबरन मजदूरी एक अंत करना, व्यवसाय और आपूर्ति श्रृंखला में जबरन श्रम और तस्करी से निपटने के ठोस कदम उठाना, सामाजिक सुरक्षा के दायरे में विस्तार और कानूनी संरक्षण को मजबूती देना, साथ कानूनी तौर पर विवाह के लिए न्यूनतम आयु को 18 वर्ष तक करना शामिल है।

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