ब्लॉग : अपराध नियंत्रण और महिलाओं की सुरक्षा एक बड़ी चुनौती

एक रिपोर्ट में यह दावा किया कि दुनियाभर में साल 2020 में 81 हजार महिलाओं एवं लड़कियों की हत्या कर दी गई |

On: Friday 11 March 2022
 

 शिव कुमार खरवार

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हाल ही में ,एनसीआरबी ने देश के मध्य होने वाले अपराधो से सम्बन्धित एक आकड़े जारी किये , साल 2020 के आकड़े बताते है कि पिछली सरकार के मुकाबले इस सरकार में उत्तर प्रदेश में महिला उत्पीड़ना के मामलो में ज्यादा बढ़ोत्तरी दर्ज की गई , जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि महिला उत्पीड़ना को लेकर सरकारी मुहकमे कितने सजग है | उसकी बची कुची कसर साल 2021 में आई , राष्ट्रीय महिला आयोग की रिपोर्ट ने पूरी कर दी , जिसमे महिला सुरक्षा के मुस्तैदी के सरकारी दावे उलट दिये , महिला सुरक्षा को लेकर मुस्तैदी कितनी दुरस्त है ? यह , तो एक गहन विचार का मसला है | क्योकि महिला सुरक्षा को लेकर वैश्विक पटल की छवि भी कोई खास बेहतर नही रही है | 

वैश्विक स्तर पर बड़े स्तर पर महिला हो रही महिला उत्पीड़ना का शिकार  -

सयुक्त राष्ट्र की महिला संगठन के द्वारा वैश्विक स्तर पर महिला उत्पीड़ना को लेकर जारी किये गए , एक रिपोर्ट में यह दावा किया कि दुनियाभर में साल 2020 में 81 हजार महिलाओं एवं लड़कियों की हत्या कर दी गई | इसमें 58 प्रतिशत मामलों में यानी तकरीवन 47 हजारो मामलों में जुड़े हुए शक्स या तो महिला के परिवारवाले पाए गए या फिर उनके सहयोगी रहे | यदि महिला हिंसा की व्यापकता की बात करे , तो दुनियाभर की 73.6 करोड़ महिला में से प्रत्येक तीन में से एक महिला महिला उत्पीड़ना का शिकार बनाई गई | हालाँकि इसमें यौन हिंसा के  मामले शामिल नही है | किन्तु उसके बावजूद महिला उत्पीड़ना की स्थितीय भयावक है | क्योकि यौन हिंसा से जुड़ा मामले कम डराने वाले नही है | दुनियाभर में तकरीबन 6 प्रतिशत महिला यौन हिंसा का शिकार बनाई जाती है | विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक दुनियाभर में प्रत्येक तीन में से एक महिला शारीरिक अथवा यौन हिंसा का शिकार बनाई जाती है | बावजूद इसके  दुनियाभर के 158 देशो में महिला सुरक्षा के मद्देनजर घरेलू हिंसा रोकथाम के लिए घरेलू हिंसा के कानून पारित किया गया है | इसके साथ ही दुनियाभर के 141 देशो में महिला सुरक्षा को दुरस्त करने के लिए रोजगार के क्षेत्र में यौन उत्पीड़ना पर पाबन्दी लगाने के उद्देश्य से भी कानून लागू किये गए है  | वही प्रशासनिक व्यवस्था का हाल भी महिला सुरक्षा को लेकर सजग प्रतिक नही होता | चूँकि तकरीबन 40 प्रतिशत से भी कम मामलों में महिला के द्वारा महिला उत्पीड़त के विरुद्ध कानून के  समक्ष गुहार लगाये जाते है , उनमे भी मात्र 10 प्रतिशत से भी कम उत्पीड़त महिलाओ की शिकायत दर्ज की जाती है |

देश के मध्य महिला सुरक्षा की स्थितीय अत्यधिक सोचनीय  - 

हाल ही में यूनाइटेड नेशन ड्रग एंड क्राइम के द्वारा  Research brief: What crime and helpline data say about the impact of the COVID-19 pandemic on reported violence against women and girls ” नामक शीर्षक से जारी एक रिपोर्ट में बताया गया कि देश के मध्य तालाबंदी के बाद महिला उत्पीड़ना से सम्बन्धित घरेलू हिंसा के मामले में बढोत्तरी दर्ज की गई | वही दूसरी तरफ राष्ट्रीय महिला आयोग की तरफ से , जो आकड़ो जारी किये गए , उनके मुताबिक साल 2020 की तुलना में साल 2021 में महिला उत्पीड़ना के मामलो  में 30 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई , जहाँ साल 2020  में  महिला उत्पीड़ना के 23 हजार से अधिक मामले दर्ज किये गए , वही  साल 2021 में महिला उत्पीड़ना के मामलों की संख्या बढ़कर 30 हजार से अधिक चली गई , इनमे आधा से अधिक मामले अकेले उत्तर प्रदेश राज्य में दर्ज किये गए | साल 2021 में महिला उत्पीड़ना को लेकर जारी किये गए मामलों की संख्या, साल 2014 की महिला उत्पीड़ना संख्या लगभग 34 हजार से मात्र लगभग तीन हजार ही कम पाई गई  |

यदि तथ्यों पर गौर फरमाया जाए , तो मुख्यमंत्री आदित्यनाथ योगी के कार्यकाल के बीते 4 वर्षो में उत्तर प्रदेश राज्य में महिला उत्पीड़ना संख्या में निरंतर न केवल बढ़ोत्तरी होती रही , वरन लगातार 4 वर्षो में तीन वर्ष तक महिला उत्पीड़ना के मामलो में उत्तर प्रदेश राज्य देश के मध्य प्रथम स्थान पर बना रहा | एनसीआरबी के आकड़ो के मुताबिक साल 2017 में महिला उत्पीड़ना के लगभग कुल 56011 मामले दर्ज किये गए जबकि साल 2018 में महिला उत्पीड़ना की मामलो की संख्या बढ़कर 59445 हो गई | वही साल 2019 में महिला उत्पीड़ना के मामलो की संख्या बढ़कर 59853 हो गई | साल 2020 में भी ये सिलसिला जारी रहा , एनसीआरबी 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक प्रत्येक 2 घंटे में महिला के खिलाफ एक रेप के उत्पीड़ना के मामले दर्ज किये गए , वही चाइल्ड के खिलाफ प्रत्येक 90 मिनट में एक रेप उत्पीड़ना के मामले दर्ज किये गए | साल 2017 में आई  जेंडर इनइक्वलिटी इंडेक्स में भी भारत की 123वी स्थितीय रही ,जो  यह बताने के लिए पर्याप्त है कि भारतीय समाज की सोच आज भी कितनी पूर्वाग्रह से ग्रसित है |

सम्भवतः पूर्वाग्रह से ग्रसितता के कारण ही आज भी समाज में महिलाओ की स्थितीय सोचनीय बनी हुई है | आज भी पितृसत्तात्मक की सोच की बेली पर महिला की बलि चढ़ाई जा रही है | अमूमन ऐसा देखने को मिलता है कि हर समाज अपने समाज को बहुत प्रोग्रेसिव बताना एवं दिखाना चाहता है , भले ही वह व्यावहारिकता के धरातल पर प्रकट से कितना ही दूर क्यों न हो , लेकिन लोग बड़ी - बड़ी डिगे हाकते से नही थकते | किन्तु वास्तविकता यह है कि भारतीय परिवेश की महिलाएं आज भी ब्रिटेन जैसे देशो की महिला की तुलना में 150 साल पीछे है |

विडम्बना ऐसी है कि पितृसत्तात्मक मानसिकता का शिकार , जहाँ एक ओर महिलाएँ बन रही है , तो वही दूसरी ओर पुरुष भी इस बेदी से अछूता नही है | पितृसत्तात्मक मानसिकता ने पुरुष को एक कठोर सांचे में ढाल दिया है | पुरुष रो नही सकता , पुरुष विलाप नही कर सकता , पुरुष को दर्द नही होता जैसी भ्रांतियां समाज में चलायमान है | मै इन पुरुषवादी मानसिकता को बतलाना चाहता कि  महिलओं के समान ही पुरुष में भी भावना की प्रधानता पाई जाती है | पितृसत्तात्मक सोच दो धारी तलवार की तरह है , जो स्त्री को अपना शिकार , तो बनती ही है  ,इससे पुरुष भी अछूता नही है |      

देश के मध्य केवल महिला हिंसा की स्थितीय ही सोचनीय नही है | अपितु अपराध की समस्या का सामना महिला एवं पुरुष दोनो ही वर्ग के लोगो को करना पड़ता है | अभी हाल ही में आए, एनसीआरबी के आकड़े यह बताते है कि  देशव्यापी अपराध के मामलो में साल 2019 के मुकाबले साल 2020 में कुल 28 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई | यदि हम केवल दो सालो के बीच के जाति आधारित आकड़ो का विश्लेष्ण करे , तो हम पाते है कि साल 2019 के  मुकाबले साल 2020 में  जाति आधारित अपराध में अनुसूचित जाति के लोगो के विरुद्ध होने वाले अपराध में 9.4 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई | वही इन दो सालो के बीच जाति आधारित अपराध में अनुसूचित जनजाति के लोगो के विरुद्ध होने वाले अपराध में भी कोई खास सुधार नही हुआ | यानी कि साल 2019 के मुकाबले साल 2020 में जाति आधारित अपराध में अनुसूचित जनजाति के लोगो के विरुद्ध होने वाले अपराध में भी 9.3 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की गई और इस साल यानी कि 8 मार्च 2022 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की थीम भी “ ब्रेक बायसेज ” यानी कि पूर्वाग्रह को तोड़े रखा गया है | बिना पूर्वाग्रह को तोड़े स्त्री एवं पुरुषो की बीच खुदी लम्बी खाई को पाटा नही जा सकता है |

हाल ही के दिनो में सिनेमाघर में लगी  “ गंगूबाई काठियावाड़ी ” नामक फिल्म में परम्परागत रुप से चली आ रही है , देहगत व्यापार की प्रथा को तोड़ते दिखाया गया  , जिसमे गंगू का किरेदार निभाते हुए , आलिया भट्ट बोलती है , “ इज्जत से जीना का अरे ! जब शक्ति , सम्पत्ति , सदबुद्धि तीनो ही औरते है , तो इन मर्दों को किस बात का गुरुर |” एक अन्य जगह पर गंगूबाई  का किरदार निभते हुए , आलिया भट्ट बोलती है कि “ हम दिल में आग और होठो पर गुलाब रखते है , मिटाकर तुम्हारे मुर्दों की भूख हम तुम औरतो का रुवाब रखते है | ” इस फिल्म में देहगत व्यापार की प्रथा में प्रचलित पूर्वाग्रह पर बहुत ही सटीकढग से प्रहार किया गया है | एक अन्य स्थान पर इस फिल्म में , महिला की व्यक्तिगत पहचाने का मसला भी उठाया गया है  , जहाँ स्कूल में दाखिले के समय फादर गंगूबाई से बच्चो के पिता का नाम पूछता है !  बाप का नाम  ?  जिस गंगूबाई का तर्क हाबी होता प्रतिक होता है , पिता का नाम जरुरी है क्या ? चलो पिता का नाम देवान्नद लिख दो | ” इस समय में बदलाव की जरुरत है , जरुरत है , समाज में प्रचलित तमाम प्रकार के  पूर्वाग्रह के दरकिनार करने की |    

संक्षिप्त रूप में यह कह सकते है कि ये पितृसत्तात्मक सोच एक दो धारी तलवार की भांति है , जो स्त्री के साथ ही पुरुष को भी अंदर से निगलता जा रहा है | इस सोच ने समाज को अंदर से खोखला बना दिया है | इस खोखलेपन से उबरने के लिए समाज को पितृसत्तात्मक सोच का त्याग करना होगा | तभी जाकर वास्तविक अर्थो में समानता पर आधारित समाज होगा | इस सृष्टि ने केवल महिला और पुरुष बनाया समाज ने महिला और पुरुष के बीच दिवार बनाई |पितृसत्तात्मक सोच की दिवार को गिराने के लिए यह जरुरी है कि महिला न केवल संक्रिय राजनीति में भाग ले | बल्कि आर्थिक रूप से भी सम्पन्न बने , शिक्षा के क्षेत्र में महिला को तेजी में बढ़ाया जाए , हो सके , तो  महिलाओं को पुरुषो के समान लाने के लिए मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में रियायत दी जाए | चूँकि आज भी भारत की बहुत बड़ी संख्या भीषण गरीबी , भूख - मरी का सामना कर रही जैसा कि हाल ही में यानी वर्ष 2020 – 2021 के नीति आयोग की रिपोर्ट  में बताया गया कि आज भी देश का बहुत बड़ा हिस्सा विकट गरीबी का सामना कर रहा है | इसलिए जितना हो सके रियायत दी जाए , हो सके तो मानव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में महिला को पुरुष के समकक्ष लाने के लिए आरक्षण की नीति को तब तक लागू की जाए , जब तक स्त्री पुरुष के समतुल्य न खड़ी  हो जाए |       

(लेखक उत्तर प्रदेश में बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय ( केन्द्रीय विश्वविद्यालय ) के राजनीति विज्ञान विभाग में शोधार्थी हैं। यह उनके अपने निजी विचार हैं।) 

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