चार धाम मार्ग परियोजना: कितने वाजिब हैं केंद्र सरकार के नए तर्क?

सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार ने तर्क दिया है कि चार धाम मार्ग परियोजना देश की रक्षा के लिए बेहद जरूरी है

On: Friday 03 December 2021
 
सितंबर-अक्टूबर में हुई भारी बारिश के कारण चार धाम मार्ग पर मलबा जमा हो गया। नवंबर में इस मलबे को हटाने का काम चल रहा है। फोटो: राजू सजवान

अतुल सती

नवम्बर के प्रथम सप्ताह में चारधाम सड़क चौड़ीकरण मामले में सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने सीमा पर गतिरोध का जिक्र करते हुए आश्चर्य जताया कि क्या कोई संवैधानिक अदालत देश की रक्षा के लिए सेना की आवश्यकता को दरकिनार कर कह सकती है कि पर्यावरण की सुरक्षा रक्षा जरूरतों पर भारी है।

उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वह इस तथ्य की अनदेखी नहीं कर सकता कि एक शत्रु है जिसने सीमा तक बुनियादी ढांचा विकसित कर लिया है और सेना को सीमा तक बेहतर सड़कों की जरूरत है। जहां 1962 के युद्ध के बाद से कोई व्यापक परिवर्तन नहीं हुआ है।

पीठ ने कहा, ‘हम इस तथ्य से इनकार नहीं कर सकते कि इतनी ऊंचाई पर देश की सुरक्षा दांव पर है। क्या भारत के उच्चतम न्यायालय जैसा सर्वोच्च संवैधानिक न्यायालय हाल की कुछ घटनाओं को देखते हुए सेना की जरूरतों को दरकिनार कर सकता है? क्या हम कह सकते हैं कि पर्यावरण संरक्षण देश की रक्षा जरूरतों से ऊपर होगा? या हमें यह कहना चाहिए कि रक्षा चिंताओं का ध्यान इस तरह रखा जाना चाहिए ताकि आगे कोई पर्यावरणीय क्षति न हो।’

इस साल 20 सितम्बर से जोशीमठ में सेना की हलचल दिखाई देने लगी। जोशीमठ उत्तराखण्ड में चीन सीमा पर अंतिम नगर है। यहां से 100 किलोमीटर पर नीति दर्रे की सीमा व यहां से 50 किलोमीटर पर माना दर्रे की सीमा शुरू होती है।

20-21 सितम्बर से लगातार जोशीमठ से सेना के ट्रक सैनिकों से लदे सीमा की तरफ बढ़ते दिखाई दिए । सैन्य साजो सामान भी सीमा की तरफ जाता दिखा। लगा कुछ गम्भीर हुआ है। 25 सितम्बर को मीडिया में खबर छपी कि चीन के 100 से अधिक सैनिक भारतीय सीमा में घुस आए थे। चीनी सैनिकों ने भारतीय सीमा के भीतर के एक पुल को भी तोड़ दिया था व अपनी उपस्थिति के व दखल के निशान भी छोड़े थे।

इसके लगभग एक माह बाद अक्टूबर माह में दो तीन दिन (17 -19 ) की बारिश के बाद नीति की ओर जाने वाला मार्ग, जो चीन सीमा को जाता है। हफ्ते भर के लिए बन्द हो गया। इससे पूर्व अगस्त माह में भी यह मार्ग 15 दिन तक बन्द रहा। 7 फरवरी की आपदा के बाद यह मार्ग लगभग एक माह से आधिक तक बन्द रहा।

यही हाल माणा दर्रे की सीमा को जाने वाले मार्ग का भी रहता है। इस मार्ग पर लामबगड़ भूस्खलन क्षेत्र है जो अक्सर बन्द हो जाता है। ध्यान रहे, यह दोनों मार्ग देश की सीमा से जोड़ने वाले अति संवेदनशील रणनीतिक महत्व के मार्ग हैं।

ये वही मार्ग हैं, जिनके सन्दर्भ में बीते हफ्ते (15 नवम्बर) सर्वोच्च न्यायालय में बहस के दरमियान न्यायाधीश महोदय ने पूछा कि देश की सुरक्षा महत्वपूर्ण है अथवा पर्यावरण । साथ ही, उनके हवाले से यह भी शाया हुआ कि निश्चित ही देश की सुरक्षा को पर्यावरण पर तरजीह दी जानी चाहिए।

यह सुरक्षा कितनी महत्वपूर्ण है कि महीनों यह मार्ग आवाजाही के लिए बन्द रहते हैं और राष्ट्रीय मीडिया में खबर तक नहीं बनती। नीति मार्ग जब अगस्त माह में हफ्ते भर से ज्यादा बन्द रहा तो जोशीमठ में इस मार्ग को शीघ्र खोले जाने के लिए आंदोलन हुआ। आमरण अनशन किया गया।

तब जा कर 15 दिन बाद मार्ग खुल पाया । यह महज इस साल का मसला नहीं है। लगभग हर साल कुछ न कुछ समय के लिए ये मार्ग बंद होते हैं। सन 2004 में तो नीति मार्ग तीन माह के लिए बन्द हो गया । वहां रहने वाली आबादी के लिए तमाम तरह के संकट पैदा हो गए।

नवम्बर माह में वहां की शिफ्टिंग (जनजाति की) वाले गांव को नीचे आना होता है। वह अपने मवेशियों समेत नीचे कैसे आएं, यह संकट होने पर जोशीमठ में धरना दिया गया। तब जा कर प्रशासन सक्रिय हुआ और फिर हफ्तेभर मे मार्ग खुल गया। चीनी सेना सीमा के इस हिस्से में हमेशा ही आवाजाही करती रही है । 1962 से लगातार ही कुछ न कुछ यहां होता रहा है । कभी चारवाहों के टेंट उखाड़े गए (2014 ) कभी चीनी सैनिकों से झड़प हुई ।

सर्वोच्च न्यायालय में रक्षा मंत्रालय इन्ही सीमा को जोड़ने वाले मार्ग के संदर्भ में यह अपील लेकर गया है कि इस मार्ग की चौड़ाई कम से कम 10 मीटर होनी चाहिए। क्योंकि यह रणनीतिक महत्व के मार्ग हैं व इनसे ब्रह्मोस जैसी मिसाइल सीमा पर पहुंचाई जानी है। रक्षा मंत्रालय वही मंत्रालय है, जहां के अधिकारी वर्षों तक सीमा की सड़क को आगे बढाने में इस तर्क के साथ अड़ंगा लगाए रहे कि यदि चीन सीमा तक सड़क बनाई गई तो चीनी सैनिक आसानी से भारत में घुस आएंगे।

इस क्षेत्र से 1962 से पूर्व भारत तिब्बत व्यापार को पुनः शुरू करवाने हेतु जब केन्द्र सरकार से जोशीमठ ब्लॉक के स्थानीय लोगों ने वर्षों पूर्व गुहार लगाई तो वरिष्ठ पत्रकार हरीश चन्दोला को यही तर्क तब के रक्षा मंत्रालय के अधिकारियों ने दिया।

सन 2018 में केंद्र सरकार अपनी महत्वाकांक्षी योजना आलवेदर सड़क के नाम पर यह कर लाई कि उत्तराखण्ड के चारों धामों को सलभर हर मौसम में खुला रखने हेतु 12 हजार करोड़ रुपयों में 899 किलोमीटर सड़क का निर्माण किया जाएगा। शुरू में तो यह लगा और लगवाया गया मानों कोई नई सड़क बनने वाली हो । ज

बकि यह योजना पुरानी अस्तित्वमान सड़क को ही थोड़ा और चौड़ा भर करने की ही योजना थी । जब इस योजना के तहत पर्यावरण के सभी मानकों की धज्जियां उड़ाई जाने लगी । तब कुछ लोग इस परियोजना में पर्यावरण मानकों के पालन करवाने हेतु ग्रीन ट्रिब्यूनल में गए व बाद में सर्वोच्च न्यायालय में अपील की ।

जिसपर सर्वोच्च न्यायालय ने एक उच्चाधिकारप्राप्त कमेटी का गठन रवि चोपड़ा की अध्यक्षता में किया। जिसने विस्तृत अध्ययन कर वैज्ञानिक साक्ष्यों के आधार पर सिफारिश की कि सड़क की चौड़ाई 7 मीटर से अधिक नही होनी चाहिए। क्यों कि हिमालय का यह क्षेत्र फ्रैजाईल - कमजोर है।

यह क्षेत्र भूकंप संवेदी क्षेत्र है। यहां अधिक कटान से भूसखलन का खतरा है। इस रिपोर्ट को सरकार ने पहले तो कमेटी में अपने अधिकारियों के माध्यम से कमजोर करने की कोशिश की। परन्तु जब कमेटी के अध्यक्ष के कडे़ रुख के चलते व केंद्रीय सड़क मंत्रालय के अपने पूर्व के 2012 व 2018 के सर्कुलर के तहत ही सड़क की चौड़ाई 7 मीटर रखे जाने पर सर्वोच्च न्यायलय ने सहमति जताई तो इसके खिलाफ केंद्र सरकार के रक्षा मंत्रालय को आगे कर दिया गया।

उनके माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय में अपील कर दलील दी गयी कि रक्षा जरूरतों के लिए सड़क की चौड़ाई 10 मीटर होनी जरूरी है । जहां दोनो पक्षों रक्षा मंत्रालय व पर्यावरण की रक्षा के लिए अपील कर्ताओं के वकील कॉलिन गौनजलवीस की दलील सुनने के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया है।

दिलचस्प बात यह है कि कुछ समय पहले पूर्व सेनाध्यक्ष व वर्तमान चीफ ऑफ स्टाफ जनरल विपिन रावत ने पत्रकारों द्वारा पूछे गए एक सवाल में जवाब में कहा था कि सेना की जरूरत के लिए वर्तमान चौड़ाई की सड़क पर्याप्त है। सैन्य साजो सामान जो कि सड़क मार्ग से नहीं जा सकता, उसके लिए हवाई मार्ग का विकल्प है ही। हवाई मार्ग से भारी से भारी साजो सामान सीमा तक पहुंचाया जा सकता है। इसका वीडियो साक्ष्य उपलब्ध है।

2013 की केदारनाथ आपदा में हजारों लोगों ने जान गंवाई । इस आपदा के बाद गठित हाईपावर कमेटी ने साफ कहा कि आपदा के लिए विकास का पर्यावरण विरोधी ढांचा मुख्यरूप से जिम्मेदार है। जिसमें जलविद्युत परियोजनाएं व सड़क निर्माण का अवैज्ञानिक तरीका मुख्य हैं। आलवेदर नाम से बनने वाली सड़क पर्यावरण के मानकों के उल्लंघन की शिकायतों से घिरने पर कब आलवेदर से चारधाम यात्रा परियोजना में बदल गयी, पता ही नहीं चला।

और अब जब उच्चाधिकारप्राप्त कमेटी की सिफारिश कि सड़क की चौड़ाई 7 मीटर से अधिक नहीं होनी चाहिए आई, तब चार धाम को जोड़ने वाली सड़क अचानक रक्षा जरूरतों के लिए बनने वाली सड़क में तब्दील हो गयी है। जबकि असलियत यह है कि केंद्रीय सड़क मंत्रालय के मानकों के तहत 10 मीटर से कम चौड़ाई के डबल लेन मार्ग पर टोल टैक्स नहीं लिया जा सकता है। इसलिए यह सारी कवायद है। टोल टैक्स वसूलने को लेकर केंद्रीय सड़क मंत्री नितिन गडकरी जी का प्रसिद्ध बयान आया ही है कि फ्री में कुछ नहीं.. अगर सुविधा चाहिए तो भुगतान करो।

इस साल बरसात के दो महीनों में आलवेदर सड़क 145 से अधिक स्थानों पर बाधित रही। जो आज तक कभी नहीं हुआ था। यह सरकारी रिपोर्ट है। आलवेदर सड़क निर्माण से पूर्व जहां गिनती के कुछ 7-8 भूस्खलन क्षेत्र थे वहीं अब इस सड़क के निर्माण के दौरान व बाद 45 से अधिक अत्यंत गम्भीर भूस्खलन क्षेत्र विकसित हो गए हैं।

जहां पहले के भूस्खलनों को हम विकास के साइड इफेक्ट्स कहते थे अब जो नए भूस्खलन क्षेत्र हैं ये साइड इफेक्ट्स का विकास कहे जांय तो अतिश्योक्ति नहीं है । 1960 कि दशक में जब शुरू शुरू पहाड़ में सड़क पहुंची तो सड़क आने की खुशी में लोक गीत रचे गए।

"सिमली मोटर एगेंन पल बाजार बीच" बड़ा प्रसिद्ध लोकगीत है। अब जब सड़क अनाप-शनाप काटकर बन रही है और जगह-जगह भूस्खलन खतरनाक हो लोगों की जान ले रहा है तब इसी सड़क के शोक गीत रचे जा रहे हैं। किसी समय 1974 के चिपको आंदोलन की नेत्री गौरा देवी का स्मारक नीति मार्ग पर गांव रिणी में सड़क के नजदीक, यह सोच कर बनाया गया कि, आते जाते लोग उसके दर्शन कर उनसे प्रेरणा लेंगे।

अगस्त माह में वही सड़क उस स्मारक की कब्रगाह बन गयी। वही सड़क उस स्मारक को लील गयी। पर्यावरण की अनदेखी कर बन रही जलविद्युत परियोजना के चलते चिपको का गांव रिणी इसी साल 7 फरवरी को भयानक आपदा का गवाह बना। जिसमें 200 से अधिक लोगों की जान गई ।

दिलचस्प तथ्य यह भी है कि सेना के लिए सीमा तक सड़क बनाने की जिम्मेदारी जिस सीमा सड़क संगठन की है जो सेना की ही सड़क निर्माण इकाई है, वह वर्षों से सक्रीय भूस्खलन क्षेत्रों यथा लामबगड़ , सिरोबगड़ का ट्रीटमेन्ट नहीं कर पाया ।

उसके भूस्खलनों के ट्रीटमेंट का दिलचस्प तरीका यह है कि जन किसी क्षेत्र विशेष में कुछ भी करके भूस्खलन नहीं रुकता तो सीमा सड़क संगठन वहां दैवीय प्रकोप मान कर मंदिर बना कर्तव्य की इतिश्री कर देता है ।

ऐसे में सर्वोच्च न्यायालय में सवाल उठा है कि पर्यावरण जरूरी है कि देश की रक्षा । जब ग्लॉसगो में देश के प्रधानमंत्री पर्यावरण रक्षा पर लम्बा भाषण देकर संरक्षण व कार्बन उत्सर्जन कम करने का संकल्प व्यक्त कर आए हैं।

अब यह सवाल (रक्षा सुरक्षा का ) उठा है उस हिमालय के संदर्भ में जिसके लिए गाया गया .. पर्वत वो सबसे ऊँचा हमसाया आसमां का वो सन्तरी हमारा वो पासबाँ हमारा ..

लेखक पयार्वरण व जन अधिकार कार्यकर्ता हैं। प्रकाशित लेख में लेखक के अपने विचार हैं, यह जरूरी नहीं है कि ये डाउन टू अर्थ के विचारों और नीतियों को प्रतिबिंबित करें।

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