मानवाधिकार हनन के दोहरे मापदंडों ने अस्थिरता को बढ़ाया

एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी रिपोर्ट द स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स ह्यूमन राइट्स में कही है। 

By Anil Ashwani Sharma

On: Tuesday 28 March 2023
 

दुनिया भर में हो रहे मानवाधिकारों के हनन पर दोहरे मापदंडों ने दंडमुक्ति और अस्थिरता को बढ़ावा दिया है, जिसमें अफगानिस्तान में घटते मानवाधिकारों के रिकॉर्ड पर सार्थक कार्रवाई की शर्मनाक कमी, श्रीलंका में बढ़ते आर्थिक संकट के लिए अपर्याप्त प्रतिक्रिया और कई दक्षिण एशियाई देशों में असंतोष और अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न पर विरोध ना करना शामिल है। यह बात एमनेस्टी इंटरनेशनल ने अपनी रिपोर्ट द स्टेट ऑफ  वर्ल्ड्स ह्यूमन राइट्स में कही है। एमनेस्टी इंटरनेशनल ने दुनिया भर में मानवाधिकारों का आकलन पर अपना वार्षिक रिपोर्ट लांच करते हुए कहा कि वैश्विक और क्षेत्रीय संस्थानों की विफलता - वैश्विक संघर्षों, जलवायु परिवर्तन व वैश्विक ऊर्जा और खाद्य संकटों के लिए पर्याप्त रूप से प्रतिक्रिया ना देने वाले अपने सदस्यों के स्वार्थ की वजह से प्रभावित हुई और इसने पहले से ही कमजोर बहुपक्षीय प्रणाली को बाधित कर दिया है।

एमनेस्टी इंटरनेशनल में वरिष्ठ निदेशक डिप्रोज मुचेना ने कहा, “मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा 75 साल पहले बनाई गई थी, जो सभी लोगों के अधिकार और मौलिक स्वतंत्रता को पहचानती है। वैश्विक आर्थिक गतिशीलता और शक्ति संरचनाओं का स्थानांतरण अराजकता फैला रहा है जिसके शोर में मानवाधिकारों को भूलना आसान है। जिस तरह दक्षिण एशिया एक अस्थिर और अप्रत्याशित भविष्य की कगार पर खड़ा है, अब यह पहले से कहीं ज्यादा जरूरी है कि अधिकारों की बात पूरी तरह से सभी समझौतों और बातचीत के केंद्र में रहे।”

पूरे क्षेत्र में लोग अन्याय, अभाव और भेदभाव के विरोध में सड़कों पर उतर आए हैं, लेकिन अफगानिस्तान, बांग्लादेश, भारत, नेपाल, मालदीव, पाकिस्तान और श्रीलंका सहित अधिकांश देशों में, इन लोगों को सामना करना पड़ा कड़ी कार्रवाई और बहुत ज्यादा बल का जो कभी-कभी उनके लिए घातक भी हुआ। श्रीलंका में बड़े पैमाने पर हो रहे विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए आपातकालीन शक्तियों का इस्तेमाल किया गया था। बढ़ते आर्थिक संकट पर विरोध प्रदर्शन कर रही शांतिपूर्ण भीड़ खिलाफ पुलिस ने लाइव विस्फोटक, आंसू गैस और वॉटर कैनन का इस्तेमाल किया, जिसके कारण कई मौतें हुईं और लोगों को चोटें आयीं।

श्रीलंका में प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार किया गया, मनमाने ढंग से हिरासत में लिया और उनपर आतंकवाद से संबंधित और अन्य अपराधों का आरोप लगाया गया। अफगानिस्तान में शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों को मनमानी गिरफ्तारी और यातना का सामना करना पड़ा। कई लोगों जबरन लापता तक कर दिए गए। बांग्लादेश में पुलिस ने विरोध कर रहे छात्रों और कार्यकर्ताओं को तितर-बितर करने के लिए जिंदा कारतूस, रबर की गोलियों, साउंड ग्रेनेड और आंसू गैस का इस्तेमाल किया। पाकिस्तान में अधिकारियों ने कार्यकर्ताओं और जबरन लापता किए गए पीड़ितों के परिवार के सदस्यों के शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन को बलपूर्वक तोड़ दिया। नेपाल में लोन शार्क (जो लोगों को अत्यधिक ब्याज दरों पर कर्ज़ देते हैं) के कर्ज़ से पीड़ित लोगों पर पुलिस ने लाठीचार्ज किया और उन्हें मनमाने ढंग से हिरासत में लिया। भारत में झारखंड राज्य में विरोध प्रदर्शनों के दौरान एक 15 साल के लड़के और एक अन्य प्रदर्शनकारी की पुलिस ने गोली मारकर हत्या कर दी।

भारत सरकार ने भी भारत की मानवाधिकार की स्थिति पर विदेशों में होने वाली चर्चा को रोकने का प्रयास किया।। इसके लिए मानवाधिकार रक्षकों की अंतर्राष्ट्रीय यात्रा पर प्रतिबंध लगाए और उन्हें बिना ट्रायल के हिरासत में रखा। एमनेस्टी इंटरनेशनल में दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय निदेशक यामिनी मिश्रा ने कहा, “ऐसा प्रतीत होता है कि दक्षिण एशियाई देश घोर पाखंड और दोहरे मापदंडों को मानते हुए मानव अधिकार कानून को चुनिंदा आधार पर लागू करते हैं। वे सिर्फ तभी मानवाधिकारों के उल्लंघन की आलोचना करते हैं जब यह उनकी वैश्विक और क्षेत्रीय राजनीति के साथ संरेखित हो। लेकिन अगर इनके अपने हित दांव पर हों तो यह उन्हीं मानवाधिकार उल्लंघनों पर चुप्पी साध लेते हैं। यह व्यवहार शर्मनाक है और सार्वभौमिक मानव अधिकारों के पूरे ताने-बाने को कमजोर करता है।”

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