शामली जिले में यमुना बाढ़ क्षेत्र के पास चलता अवैध खनन का खेल

यहां पढ़िए पर्यावरण सम्बन्धी मामलों के विषय में अदालती आदेशों का सार

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Tuesday 28 February 2023
 

भविष्य में यमुना जैसी नदियों के बाढ़ क्षेत्र क्षेत्र के पास अवैध खनन की घटनाओं को रोकने की आवश्यकता की ओर इशारा करते हुए, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने एक संयुक्त समिति को एक महीने के भीतर कार्य योजना तैयार करने का निर्देश दिया है। इस योजना को अगले तीन महीनों के भीतर क्रियान्वित किया जाना है।

इस बारे में एनजीटी ने 24 फरवरी, 2023 को कहा है कि रिपोर्टों से यह स्पष्ट है कि शामली जिले में यमुना के बाढ़ क्षेत्र (नदी से 1 किमी के भीतर) के भीतर खनन किया जा रहा है। गौरतलब है कि कृषि भूमि पर जमा खनिज को हटाने के लिए शामली के जिलाधिकारी ने चार जनवरी 2023 को लाइसेंस जारी किया  था।

जानकारी मिली है कि वहां 19,124 घन मीटर तक रेत खनन किया जा चुका है। ऐसे में ट्रिब्यूनल का कहना है कि स्पष्ट है कि वहां जिला मजिस्ट्रेट द्वारा दिए लाइसेंस की आड़ में अवैध खनन हुआ है।

शामली के जिलाधिकारी द्वारा 21 जनवरी, 2023 को लिखे पत्र से पता चलता है कि इस खनन के लिए मशीनों के साथ-साथ पांच डंपरों का भी इस्तेमाल किया गया था।

गंगा नदी (कायाकल्प, संरक्षण और प्रबंधन) प्राधिकरण द्वारा 2016 को दिए आदेश के अनुसार नदी के बाढ़ क्षेत्र में खनन पूरी तरह प्रतिबंधित है, और यह यमुना पर भी लागू होता है। एनजीटी का कहना है कि, "इस प्रकार, यह किसी व्यक्ति द्वारा क्षेत्र से रेत हटाने का मामला नहीं है, बल्कि इसकी आड़ में व्यवस्थित तौर पर किए जा रहे वाणिज्यिक खनन का मामला है, जैसा कि मीडिया रिपोर्ट में बताया गया है।"

जम्मू-कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण समिति को सशक्त करें: एनजीटी

एनजीटी ने जम्मू-कश्मीर के मुख्य सचिव को जम्मू-कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण समिति को मजबूत करने के लिए जरूरी कदम उठाने का निर्देश दिया है।

कोर्ट ने इसके लिए मुख्य सचिव को दो माह के भीतर आवश्यक कार्रवाई करने को कहा है। अदालत को जानकारी मिली थी कि जम्मू-कश्मीर प्रदूषण नियंत्रण समिति में केवल सात लोग कार्यरत हैं जो "पर्यावरण नियामक तंत्र को लागू करने के लिए पर्याप्त नहीं है।"

राजस्थान में भारत-पाक सीमा के पास होता जिप्सम का अवैध खनन

एनजीटी ने राजस्थान में खान और भूविज्ञान विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव को जिप्सम के अवैध खनन के मामले की जांच के निर्देश दिए हैं क्योंकि इससे न केवल पर्यावरण पर बुरा असर पड़ रहा है साथ ही राज्य को राजस्व की भी हानि हो रही है।

गौरतलब है कि कोर्ट ने भारत-पाक सीमा पर होते जिप्सम के अवैध खनन के बारे में मीडिया रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए कार्यवाही शुरू की थी। मामला राजस्थान के बीकानेर जिले का है। राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने खनन विभाग के प्रतिवेदनों के साथ इस मामले में अपना जवाब दायर कर दिया है। इसमें कहा गया है कि सीमा के एक किलोमीटर के दायरे में खनन की अनुमति नहीं है।

पता चला है कि सीमा के 250 मीटर के भीतर 172.5 टन जिप्सम का अवैध खनन किया गया था। इसके लिए लिए 296,000 रुपये का जुर्माना लगाया गया है।

पर्यावरण में माइक्रोप्लास्टिक्स की मौजूदगी की जांच के लिए नहीं कोई मानक तरीका: सीपीसीबी

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) ने एनजीटी को सौंपी अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है कि कि पर्यावरण में माइक्रोप्लास्टिक्स की मौजूदगी के नमूने और विश्लेषण के लिए वर्तमान में कोई मानक तरीका नहीं है। वर्तमान में इस विषय में मानकीकरण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संगठन काम कर रहा है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि माइक्रोप्लास्टिक विश्लेषण में शामिल संगठनों (सीआईपीईटी, एनसीएससीएम, एमओईएसएनसीसीआर) द्वारा नमूनों को एकत्र करने और विश्लेषण के लिए एक समान प्रक्रिया विकसित की जानी चाहिए। आईएसओ स्टैण्डर्ड को अंतिम रूप दिए जाने तक इस प्रक्रिया को पूरे देश में समान रूप से अपनाया जा सकता है।

रिपोर्ट के अनुसार भारत में उद्योगों, अपशिष्ट प्रबंधन, अपशिष्ट जल उपचार, समुद्री गतिविधियों सहित माइक्रोप्लास्टिक्स के उत्पादन के स्रोतों की पहचान की गई है। हालांकि, पहचाने गए स्रोत से कितना माइक्रोप्लास्टिक्स पैदा हो रहा है इसकी सटीक मात्रा निर्धारित नहीं की गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक मिट्टी/ समुद्र तट तलछट, सतही जल निकायों, बायोटा और समुद्र के पानी में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक की मात्रा के बारे में जानकारी उपलब्ध है।सीपीसीबी ने 10 फरवरी को अपनी रिपोर्ट में कहा है कि हवा, पीने के पानी और भूजल सहित अंतिम उपयोग वाले क्षेत्रों में माइक्रोप्लास्टिक की कितना मात्रा है उस बारे में जानकारी है।

गौरतलब है कि सीपीसीबी द्वारा यह रिपोर्ट नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) द्वारा 5 अप्रैल, 2022 को दिए आदेश पर सबमिट की गई है। इस मामल में 29 मार्च, 2022 को समाचार पत्र द हिंदू में प्रकाशित एक रिपोर्ट 'डिटेक्टिंग माइक्रोप्लास्टिक्स इन ह्यूमन ब्लड' पर कोर्ट ने जानकारी मांगी थी।

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