बलासों नदी से बालू ले जाने के लिए भारी वाहनों के उपयोग पर एनजीटी ने लगाई रोक

एनजीटी ने अपने 28 जुलाई को दिए आदेश में स्पष्ट कह दिया है कि बलासों नदी से बालू ले जाने के लिए भारी वाहनों का उपयोग नहीं किया जाएगा

By Susan Chacko, Lalit Maurya

On: Friday 29 July 2022
 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने अपने 28 जुलाई को दिए आदेश में स्पष्ट कह दिया है कि बलासों नदी से बालू ले जाने के लिए भारी वाहनों का उपयोग नहीं किया जाएगा। मामला पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग जिले का है।

अपने आदेश में एनजीटी ने दार्जिलिंग के जिला मजिस्ट्रेट से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा है कि शिवमंदिर बाजार और आसपास के क्षेत्रों में बलासों नदी से डंपर या जेसीबी जैसे भारी वाहनों मदद से रेत खनन की अनुमति नहीं दी जाएगी। 

इसके साथ एनजीटी ने पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को नियमित रूप से इसके कारण होने वाले वायु गुणवत्ता और ध्वनि प्रदूषण के स्तर की निगरानी का भी निर्देश दिया है। गौरतलब है कि एनजीटी ने 2 मार्च, 2022 को शिवमंदिर नागोरिक मंच द्वारा दायर एक शिकायत के आधार पर इस मामले को स्वतः संज्ञान में लिया है।

शिकायतकर्ताओं ने शिकायत की थी कि दार्जिलिंग के माटीगाड़ा ब्लॉक के अथाराखाई ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले हलेरमाथा, चैतन्यपुर, खड़ग सिंह रोड, शांतिपुर, शरत नगर, लेनिनपुर में छह पहियों वाले भारी डंपर और ट्रकों की आवाजाही से वायु और ध्वनि प्रदूषण हो रहा है। साथ ही इसकी वजह से सड़क व नालियां भी क्षतिग्रस्त हो रही हैं। जानकारी मिली है कि यह डंपर बलासों नदी तल से बालू और पत्थर ले जा रहे थे।

इस मामले में पश्चिम बंगाल प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का कहना है कि 21 जुलाई, 2022 को विचाराधीन क्षेत्र का निरीक्षण किया गया था और एक निरीक्षण रिपोर्ट तैयार की गई थी। रिपोर्ट में कहा गया है कि यह घनी आबादी वाला क्षेत्र है और इसकी सड़कों का उपयोग ट्रकों और डंपरों की आवाजाही के लिए किया जाता है। इस क्षेत्र में दो स्कूल हैं।

जानकारी दी गई है कि वर्तमान में 1 जुलाई 2022 से इस क्षेत्र में रेत उठाना बंद कर दिया गया है। यह कदम पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के सतत रेत खनन प्रबंधन दिशा-निर्देश, 2016 के अनुपालन में उठाया गया है। इस सन्दर्भ में 27 जून, 2022 को दार्जिलिंग के जिला मजिस्ट्रेट ने आदेश जारी किया था। गौरतलब है कि रेत खनन प्रबंधन दिशा-निर्देश, 2016 के अनुसार मानसून के दौरान नदी के तल से रेत खनन, उसे लोड करने और परिवहन जैसी गतिविधियां नहीं चलाई जा सकती। ऐसे में ट्रकों और डंपरों की आवाजाही के कारण होने वाले वायु, धूल और ध्वनि प्रदूषण के स्तर को मापना संभव नहीं है।

रिपोर्ट में माना है कि सड़कों की स्थिति खराब पाई गई है। उन सड़कों पर बड़े-बड़े गड्ढे पाए गए हैं और किनारे की नालियां क्षतिग्रस्त है। साथ ही बलासों नदी साइट पर किए दौरे से पता चला है कि कुछ स्थानों पर ट्रैक्टरों और छोटे ट्रकों की मदद से रेत खनन किया गया था, हालांकि वहां कोई डंपर लोडिंग नहीं देखी गई थी। रिपोर्ट में निष्कर्ष निकाला गया है कि चूंकि यह घनी आबादी वाला क्षेत्र है, ऐसे में रेत से लदे डंपर और ट्रकों की आवाजाही से वायु और ध्वनि प्रदूषण हो सकता है। 

नियमों का पालन नहीं कर रहा अगरतला में वेस्ट प्रोसेसिंग सेंटर, संयुक्त समिति करेगी मामले की जांच

अगरतला में वेस्ट प्रोसेसिंग सेंटर नियमों का पालन नहीं कर रहा ऐसे में अब संयुक्त समिति उसकी जांच करेगी। मामला त्रिपुरा से जुड़ा है, जहां वेस्ट प्रोसेसिंग सेंटर, नगरपालिका ठोस अपशिष्ट प्रबंधन और हैंडलिंग नियम 2000, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन नियम 2016 के साथ अन्य पर्यावरण से जुड़े नियमों का पालन नहीं कर रहा था। इस मामले की जांच के लिए एनजीटी के आदेश पर एक एक संयुक्त समिति का गठन किया गया है।

यह समिति  पर्यावरण उल्लंघन सम्बंधित सभी मुद्दों की जांच करेगी। वो देखेगी की क्या साइट सम्बन्धी मानकों को पूरा किया गया है और क्या कचरे को अलग किया जा रहा है और क्या बायो माइनिंग प्रक्रिया को अपनाया गया है या नहीं।

समिति यह भी रिपोर्ट देगी कि डंप साइट पर जमा कचरा कितना पुराना है और इसमें से कितने कचरे को प्रोसेस किया गया है। साथ ही अगरतला नगर निगम द्वारा प्लास्टिक सहित ठोस, इलेक्ट्रॉनिक और तरल कचरे के निपटान के लिए क्या कदम उठाए गए हैं।

इस मामले में न्यायमूर्ति बी अमित स्टालेकर की पीठ का कहना है कि समिति को पर्यावरण को हुए नुकसान के कारण के साथ-साथ पर्यावरण मुआवजे का भी आकलन करना चाहिए और स्थिति में सुधार के लिए क्या कदम उठाने चाहिए इसका भी सुझाव देगी।

एनजीटी के सामने आया सुवर्णरेखा नदी में अवैध बालू खनन का मामला

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पूर्वी बेंच के सामने सुवर्णरेखा नदी तल में होती अवैध ड्रेजिंग का मामला सामने आया है। जानकारी मिली है कि वहां अनुबंध का दुरूपयोग कर इसका उपयोग वाणिज्यिक रेत खनन के लिए किया गया था।

गौरतलब है कि सुवर्णरेखा नदी में ड्रेजिंग/डिसिल्टिंग के लिए पश्चिम बंगाल खनिज विकास और व्यापार निगम लिमिटेड (डब्ल्यूबीएमडीटीसीएल) ने निविदा मंगाई थी। ट्रिब्यूनल का कहना है कि इस मामले पर विचार करने की जरुरत है। साथ ही कोर्ट ने इसपर रिपोर्ट भी मांगी है। इस मामले की अगली सुनवाई 12 सितंबर 2022 को होगी। 

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