जल, ऊर्जा और भूमि को वैश्वीकरण ने पहुंचाया नुकसान: अध्ययन

जो देश व्यापार पर अत्यधिक निर्भर हैं, उनके संसाधन उतने ही अधिक खतरे में हैं

By Dayanidhi

On: Tuesday 27 October 2020
 

अध्ययन में पाया गया है कि वैश्वीकरण की वजह से बड़े पैमाने पर जल, ऊर्जा और भूमि संसाधनों पर निर्भर रहने वाले देशों की वैश्विक आपूर्ति सुरक्षा बढ़ने के बजाय घट रही है।

अलग-अलग देश घरेलू उत्पादन और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के द्वारा वस्तुओं और सेवाओं से संबंधित अपनी आवश्यकताओं को पूरा करते हैं। नतीजतन, देश अपनी सीमाओं के भीतर और बाहर प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करते हैं। 

कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने इन दबावों को निर्धारित करने के लिए आर्थिक आंकड़ों का उपयोग किया है। उन्होंने पाया कि अधिकांश देशों और औद्योगिक क्षेत्रों को घरेलू उत्पादन के माध्यम से और अप्रत्यक्ष रूप से आयात के माध्यम से, संसाधनों का अत्यधिक दोहन कर जल, ऊर्जा और भूमि को नुकसान पहुंचा रहे हैं। 

शोधकर्ता हर एक देश और वैश्विक स्तर पर उसके द्वारा उपभोग की गई वस्तुओं और सेवाओं के पैमाने और स्रोत के बारे में जांच कर रहे हैं। क्योंकि कोविड-19 के मद्देनजर सभी देश अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाना चाहते हैं। ग्लोबल एनवायर्नमेंटल चेंज नामक पत्रिका में यह अध्ययन प्रकाशित हुआ है। 

पिछले कई दशकों से दुनिया भर की अर्थव्यवस्था वैश्वीकरण के माध्यम से एक-दूसरे से बहुत अधिक जुड़ी हुई है। किसी विशेष उत्पाद का किसी अलग देश में उत्पन्न होना अब असामान्य बात नहीं रही। वैश्वीकरण कंपनियों को इस बात की इजाजत देता है कि वे लागत को कम रखने के लिए दुनिया में कहीं भी अपने उत्पाद बना सकते हैं।

कई अर्थशास्त्री इस बात का तर्क देते हैं कि यह देशों को प्रतिस्पर्धात्मक लाभ और विकास करने का स्रोत प्रदान करता है। हालांकि, कई देश अपने अधिक खपत को पूरा करने के लिए दूसरे देशों में पहले से ही दबाव वाले संसाधनों की मांग करते हैं।

यह अंतर्संबंध एक वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला के प्रत्येक चरण में जोखिम की मात्रा को बढ़ाता है। उदाहरण के लिए, यूके अपने भोजन का 50 फीसदी आयात करता है। दूसरे देशों में सूखा, बाढ़ या किसी भी गंभीर मौसम की घटना से ये खाद्य आयात खतरे में पड़ सकते हैं।

अब शोधकर्ताओं ने 189 देशों के वैश्विक जल, भूमि और ऊर्जा उपयोग की मात्रा निर्धारित की है और दिखाया है कि जो देश व्यापार पर अत्यधिक निर्भर हैं, उनके संसाधन उतने ही अधिक खतरे में हैं, विशेष रूप से जलवायु परिवर्तन में तेजी और चरम मौसम की घटनाओं जैसे कि सूखा बाढ़ अधिक आम होते जा रहे हैं।

कैम्ब्रिज के भूगोल विभाग के डॉ. ओलिवर ताहेरजादेह ने कहा देशों के जल, ऊर्जा और भूमि के फुटप्रिंट मामलों की तुलना में बहुत सारे शोध हुए हैं, लेकिन उनके खतरों और स्रोत का अध्ययन नहीं किया गया है। व्यापार को व्यापक रूप से संसाधन असुरक्षा के स्रोत के रूप में रेखांकित किया गया है, यह वास्तव में घरेलू उत्पादन की तुलना में जोखिम का एक बड़ा स्रोत है।

आज तक, संसाधनों के उपयोग का अध्ययन कुछ क्षेत्रों तक सीमित हैं, जो संसाधनों पर पड़ने वाले दबावों और उनके स्रोतों का एक व्यवस्थित अवलोकन नहीं किया जाता है। यह अध्ययन विभिन्न भौगोलिक और क्षेत्रीय स्तर पर व्यवस्था में दबाव की जांच करने के लिए एक दृष्टिकोण प्रदान करता है।

ताहेरजादेह ने कहा पहले इस प्रकार का विश्लेषण अधिक देशों के लिए नहीं किया गया है। दुनिया के दूर के कोनों में पानी, ऊर्जा और भूमि संसाधनों पर हमारे उपभोग का अधिक दबाव पड़ता है।

अमेरिका, चीन और जापान जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश अधिक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के कारण पानी की कमी से जल्द ही जूझने वाले हैं। हालांकि, उप-सहारा अफ्रीका के कई देश, जैसे कि केन्या, वास्तव में बहुत कम खतरे का सामना कर रहे हैं क्योंकि वे वैश्विक अर्थव्यवस्था में उनकी भूमिका बड़ी नहीं हैं और खाद्य उत्पादन में अपेक्षाकृत वे आत्मनिर्भर हैं।

देशों से आधारित आंकड़ों के अलावा, शोधकर्ताओं ने विशिष्ट क्षेत्रों से जुड़े खतरों की भी जांच की। हैरानी की बात यह है कि ताहेरजादेह के व्यापक शोध में पहचाने गए क्षेत्रों में से एक, जिसमें पानी और भूमि का उपयोग खतरनाक स्तर तक किया जा रहा था। शोध में लगभग 15,000 क्षेत्रों के शीर्ष 1 फीसदी का विश्लेषण किया गया। इनकी अधिक मांग, खासकर पशु उत्पाद के कारण अमेरिका में कुत्ते और बिल्ली के भोजन का उत्पादक अधिक था।

ताहेरजादेह ने कहा कि कोविड-19 ने दिखाया है कि दुनिया भर में सरकारें इससे निपटने के लिए अच्छी तरह तैयार नहीं थे, लेकिन फिर भी कोविड-19 के प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष परिणाम बहुत खराब रहे हैं। इसके सामने जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता का कम होना और संसाधनों की असुरक्षा को बहुत कम आंका गया है। इनके प्रबंधन, अनुमानित समस्याएं और होने वाले परिणाम कहीं अधिक गंभीर हैं। अगर 'ग्रीन इकोनॉमिक रिकवरी' इन चुनौतियों का जवाब देने के लिए है, तो हमें खपत और स्रोत पर पुनर्विचार करने की जरूरत है।  

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