भारत क्यों है गरीब-3: समृद्ध प्राकृतिक संसाधनों के बीच रहने वाले ही गरीब

यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि गरीबी उन्हीं इलाकों में ज्यादा है, जहां प्राकृतिक संपदा प्रचुर मात्रा में है। इन लोगों की क्षमता इतनी भी नहीं है कि प्राकृतिक आपदा या बीमारी झेल सकें

By Richard Mahapatra, Raju Sajwan

On: Tuesday 14 January 2020
 
Photo: Agnimirh Basu

नए साल की शुरुआती सप्ताह में नीति आयोग ने सतत विकास लक्ष्य की प्रगति रिपोर्ट जारी की है। इससे पता चलता है कि भारत अभी गरीबी को दूर करने का लक्ष्य हासिल करने में काफी दूर है। भारत आखिर गरीब क्यों है, डाउन टू अर्थ ने इसकी व्यापक पड़ताल की है। इसकी पहली कड़ी में आपने पढ़ा, गरीबी दूर करने के अपने लक्ष्य से पिछड़ रहे हैं 22 राज्य । पढ़ें, दूसरी कड़ी में आपने पढ़ा, नई पीढ़ी को धर्म-जाति के साथ उत्तराधिकार में मिल रही है गरीबी । पढ़ें, तीसरी कड़ी - 

 

यह सवाल प्रासंगिक है कि गरीबी-विरोधी कार्यक्रमों के लिए भारी धनराशि खर्च करने के बावजूद हम लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर क्यों नहीं उठा पा रहे हैं? तीन स्थितियां हो सकती हैं। सबसे पहले, गरीबी के स्तर को देखते हुए गरीबी कम करने के प्रयास काफी नहीं हैं। पिछली गरीबी गणना के अनुसार भारत में 22 करोड़ गरीब हैं। दूसरा, मौजूदा सूची में गरीबों की सूची और जुड़ गई है। तीसरा, हम अस्थायी तौर पर लोगों को गरीबी के स्तर से ऊपर उठा रहे हैं, लेकिन उन्हें हमेशा के लिए गरीबी के स्तर से ऊपर नहीं रख सकते।

हालांकि तीनों ही स्थितियां एक दूसरे से जुड़ी हुई है। देश में गरीबों की संख्या अच्छी खासी है, इसमें ऐसे भी गरीब बड़ी संख्या में शामिल हैं, जो बहुत ज्यादा गरीब हैं और उनकी कई पीढ़ियों ने गरीबी का दंश झेला है। यह तथ्य सीपीआरसी (क्रॉनिक पॉवर्टी रिसर्च सेंटर) ने जारी की है। सीपीआरसी ने भारत के ग्रामीण क्षेत्र में गरीब परिवारों को तीन दशक तक ट्रेक किया। इसके बाद यह अध्ययन जारी किया, जिसमें दावा किया गया है कि जो पिछली कई पीढ़ियों से गरीब हैं, उनकी अगली पीढ़ी को भी गरीबी में गुजर करना पड़ सकता है।

क्रॉनिक पॉवर्टी एडवाइजरी नेटवर्क (सीपीआरसी) में 15 देशों के अर्थशास्त्रियों और शोधकर्ताओं का समूह शामिल है। सीपीआरसी द्वारा जारी क्रॉनिक पॉवर्टी रिपोर्ट: 2014-15 (जैसा कि नाम से ही पता चल जाता है क्रॉनिक पॉवर्टी, मतलब पुरानी गरीबी) में तर्क दिया गया है कि पुरानी गरीबी और उसके कारणों का इलाज किए बिना गरीबी का उन्मूलन नहीं होगा।

इस रिपोर्ट के अनुसार, दक्षिण एशिया और उप-सहारा अफ्रीका में लगभग 50 करोड़ लोग सबसे गरीब हैं। उन सभी में से एक तिहाई जो बेहद गरीब हैं, जो 1.25 डॉलर ( वर्तमान कीमत लगभग 85 रुपए) रोजाना से भी कम पैसों में कई वर्षों से जीवनयापन कर रहे हैं। इन्हें क्रॉनिक पुअर कहा जा सकता है।

पुरानी गरीबी के कई कारण हैं, लेकिन सबसे महत्वपूर्ण यह है कि गरीबी रेखा से ऊपर जाने वाले लोग फिर से गरीबी की खाई में गिर जाते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि गरीबी दूर करने के प्रयास अस्थायी रूप से आर्थिक स्थिति को बढ़ाने में सफल तो हो जाते हैं, लेकिन यह प्रयास दीर्घकालिक या पर्याप्त नहीं होते, जिससे वे गरीबी के स्तर से हमेशा के लिए ऊपर उठ जाएं।

क्रॉनिक पॉवर्टी रिपोर्ट में कहा गया है, “लाखों लोग पहली बार तब अत्यधिक गरीब हो जाते हैं, जब उनके साथ कोई बड़ी घटना हो जाती है। जैसे कि सूखा, महंगा इलाज या समुदायों के बीच हिंसक झड़पों के कारण वे अपना सब कुछ गंवा देते हैं। उदाहरण के लिए, ग्रामीण केन्या और दक्षिण अफ्रीका में ऐसे हालात देखे जा चुके हैं। रिपोर्ट में पाया गया है कि 30 से 40 प्रतिशत लोग एक बार गरीबी से बाहर निकलने के बाद फिर से गरीबी में फंस जाते हैं। भारत में यह लगभग 20 प्रतिशत है।

तो, हमें क्या करने की जरूरत है? इससे पहले हमें यह जानना होगा कि लोग कहां और क्यों गरीब हैं। अधिकांश गरीब लोग प्राकृतिक संसाधनों जैसे घने क्षेत्रों में, वन क्षेत्रों के बीच रहते हैं। दूसरे, प्राकृतिक संसाधनों पर उनकी निर्भरता अधिक है। तीसरा, उनके पास गरीब होने का लंबा इतिहास है, इसलिए उन्हें आपदाओं या स्वास्थ्य संबंधी आपातकालीन परिस्थितियों से निपटने की क्षमता नहीं होती। प्रत्येक आपदा या बीमारी या सरकार के किसी ऐसे आदेश, जो उन्हें प्रभावित करता है के बाद गरीब परिवार और ज्यादा गरीब हो जाता है।

 

जारी...

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