जानिए चमोली त्रासदी के बाद क्यों जरूरी है हिमालय की चेतावनी का पाठ पढ़ना

नाजुक हिमालय में 33 हजार वर्ग किलोमीटर हिस्सा हिमनद (ग्लेशियर) है। ध्रुव क्षेत्रों के बाहर ग्लेशियर के रूप में पानी का बड़ी मात्रा में भंडारण यही हैं जो समय-समय पर चेतावनी देता रहता है। 

By Vivek Mishra, Akshit Sangomla

On: Thursday 04 March 2021
 

हिमालय पर फूंक-फूंक कर कदम रखने की चेतावनी पुरखे और वैज्ञानिक दोनों देते रहे हैं लेकिन चमोली त्रासदी के बारे में ऐसा क्या है जो हिमालय के पुराने पाठ को फिर से पढ़ने को कह रहा है।  

दुनिया में सबसे युवा वलित पर्वत हिमालय के लिए भूस्खलन कोई नई बात नहीं है। हिमालय के पर्वत खुद भी ऐसी पारिस्थितिकी व्यवस्था तैयार करते हैं जो प्राकृतिक तौर पर आपदा को जन्म देते हैं और उसे अस्थिर बनाते हैं। उनकी गहरी द्रोणियां (गॉज) जिनमें नदियां बहती हैं वो ऐसा आभास कराती हैं कि हिमालय की घाटियों ने कभी बाढ़ का सामना नहीं किया होगा। लेकिन यह द्रोणियां यानी नदियों के संकरे और गहरे रास्ते अक्सर तबाही वाली बाढ़ को संभालने में विफल ही रहते हैं। यहां की मूसलाधार वर्षा या बादलों का फटना पर्वतों को जोरदार चोट पहुंचाती हैं, जिससे खासतौर से गढ़वाल हिमालय की अलकनंदा और भागीरथी घाटी में भूस्खलन और बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।

यह दोनों केंद्रीय हिमालय की प्रमुख नदियां हैं जो गंगा से जुड़ी हैं और प्रमुख बाढ़  झेलती हैं। यह नदियां बर्फ से ढ़के हुए चौखंबा रेंज से निकलती हैं जो कि ग्लेशियर्स और बर्फ के मैदान हैं। भागीरथी नदी गंगोत्री से चौखंबा के उत्तरी-पश्चिमी मुंह की ओर निकलती है, वहीं अलकनंदा बद्रीनाथ मंदिर से कुछ किलोमीटर की दूरी पर चौखंबा रेंज में अल्कापुर के सतोपंथ ग्लेशियर से दक्षिणी-पूर्वी हिस्से में निकलती हैं। जब यह दोनों नदियां लघु हिमालय की तरफ जाती है तो गहरी द्रोणियों (गॉज) से गुजरती हैं जिनमें  तीव्र ढ़लाव और तीखे झुकाव होते हैं। इस दौरान कई सहायक नदियां भी इनसे जुड़ती हैं। पश्चिम की ओर बहने वाली सहायक नदियां अलकनंदा के बाएं किनारे से मिलती हैं। मसलन, तीव्र ढ़लान वाली धौलीगंगा है, जिसका अधिकतम औसत ढ़लाव चैनल 75 मीटर प्रति किलोमीटर है।

वहीं, जलागम क्षेत्र में ऊंचे स्थानों पर पेड़-पौधों के न होने से जगहें काफी नाजुक बन जाती हैं जो कि तीव्र वर्षा के दौरान भूस्खलन का कारण बनती हैं। हिमालय घाटी में बाढ़ अक्सर इस अवधारणा के साथ ही जुड़ती है। भूस्खलन के कारण मलबे से अक्सर सहायक नदियों और मुख्य धारा का प्रवाह बाधित हो जाता है, जिससे पानी ठहरता है औऱ बाढ़ की विभीषिका बढ़ जाती है। लेकिन यह भी ध्यान देने लायक है कि 1960 और 1970 के दशक में जबरदस्त तरीके से सड़क निर्माण और पेड़ों व वनों की कटाई की गई, जिसने हिमालय के क्षेत्र को आपदाओं के लिए और अधिक जोखिम वाला बना दिया। वनों की कटाई के साथ अब एक के बाद एक बांधों का निर्माण भी हिमालय को अस्थिर बना रहा है।

हिमालय में 33 हजार वर्ग किलोमीटर हिस्सा हिमनद (ग्लेशियर) है। ध्रुव क्षेत्रों के बाहर ग्लेशियर के रूप में पानी का बड़ी मात्रा में भंडारण यही हैं। इन हिमनदों से जो पानी निकलता है वह गर्मी के दिनों में उत्तर भारत की बहने वाली नदियों के लिए बड़ा स्रोत है। इस वक्त हिमालय के इन ग्लेशियर्स का पिघलना तेज हुआ है, जिससे नदियों में पानी भी बढ़ गया है। नदियों में इस वक्त 3-4 फीसदी सरप्लस पानी है जो कि ग्लेशियर्स के पिघलने की गति बढ़ने का परिणाम हैं। पश्चिमी हिमालय के ग्लेशियर्स 10 फीसदी और पूर्वी हिमालय के ग्लेशियर्स पिघलने की प्रक्रिया में 30 फीसदी की बढोत्तरी हुई है।

अत्यधिक वर्षा और भूकंप के कारण अक्सर भूस्खलन होता है। लेकिन पड़ताल बताती है कि यह दोनों वजहें चमोली में भूस्खलन का कारण नहीं बनी हैं। भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक चमोली जिले में 1 जनवरी से 7 फरवरी, 2021 के बीच सामान्य से 26 फीसदी कम वर्षा हुई है। वहीं, केंद्रीय पृथ्वी मंत्रालय के अधीन नेशनल सेंटर फॉर सिस्मोलॉजी ने भी संबंधित इलाके में किसी तरह के भूकंप की बात भी नहीं कही है। 

भूस्खलन होने की तीसरी वजह यह संभव है कि वहां के भूगोल में कोई बदलाव अचानक हुआ हो या फिर धीरे-धीरे हुआ हो, जिसकी पुष्टि अभी नहीं की जा सकती। हालांकि इस तीसरे कारण की पड़ताल करने पर पता चलता है कि संबंधित क्षेत्र में ग्लेशियर्स के बर्फ के गलने और दोबारा जमने की प्रक्रिया चट्टानों और मिट्टी के गुणों में बदलाव कर सकती है।

इंस्टीट्यूट ऑफ ज्योग्राफिक साइंसेज और नैचुरल रिसोर्सेज रिसर्च, चाइनीज एकेडमी ऑफ साइंसेज के वैज्ञानिकों ने हिमालय के 6 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में 1998-2000 की अवधि के हिमनद (ग्लेशिर्यस) भूस्खलन को लेकर अध्ययन किया है। इस अध्ययन को नेचर जर्नल में 15 जनवरी, 2021 को प्रकाशित किया गया। नेचर में प्रकाशित इस जर्नल के मुताबिक बीते एक दशक में एशिया के ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में ग्लेशियर से संबंधित भूस्खलन में काफी बढ़ोत्तरी हुई है। हालांकि, इस जर्नल के डाटासेट में वैज्ञानिकों ने भूकंप के कारण हो सकने वाले लैंडस्लाइड से हटा दिया गया है। जर्नल के मुताबिक हाई एल्टीट्यूड पर जलवायु परिवर्तन भी अप्रत्यक्ष कारण हो सकता है।

क्या परियोजनाओं के हस्तक्षेप ने पैदा की चमोली त्रासदी, अगली किस्त में पढ़िए - नाजुक चमोली सिर्फ ऊंचे पहाड़ों से नहीं बड़ी-बड़ी परियोजनाओं से भी घिरा है

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