अमेरिका में पैठ जमा रही है गरीबी, क्या हैं मायने

पूंजीवादी व्यवस्था में श्रमिकों से ज्यादा हासिल करने और मालिक जितना संभव हो उतना कम देने की कोशिश में हैं

By Richard Mahapatra

On: Wednesday 19 April 2023
 
इलेस्ट्रेशन: योगेंद्र आनंद

दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका में भी गरीबी ने जड़ें जमा ली हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका की जनगणना ब्यूरो के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, यहां की लगभग 12 प्रतिशत आबादी यानी 3.79 करोड़ अमेरिकी 2021 में गरीबी में रह रहे थे।

यह स्थिति 2020 के स्तर से ज्यादा भिन्न नहीं है। 2020 में 3.70 करोड़ लोग गरीबी में रह रहे थे। 1970 में भी यहां गरीबी का आंकड़ा करीब 12 फीसदी था। यह “अमेरिकन ड्रीम” का वह स्याह पक्ष है, जिस पर नीति निर्माताओं का ध्यान नहीं गया है।
 
हालिया दशकों में भले ही अमेरिका में गरीबी कम हुई है, लेकिन आबादी के एक समूह के लिए यह चिरस्थायी बन गई है। अमेरिकी जनगणना ब्यूरो द्वारा इसे “डीप पॉवर्टी” कहा जाता है और आम भाषा में “एक्सट्रीम पॉवर्टी”। इन गरीबों की 48 प्रतिशत आबादी ऐसी है जिनके पास अमेरिका की गरीबी रेखा (13,590 डॉलर प्रति व्यक्ति प्रतिवर्ष) की 50 प्रतिशत भी नकदी नहीं है।

अर्थशास्त्री मानते हैं कि “डीप पॉवटी” की जड़ें गहरी हैं। इसके एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होने की प्रबल आशंका है। इस प्रकार यह गरीबी का एक दुष्चक्र है।
 
लेकिन सवाल यह है कि अमेरिका में लोग गरीब क्यों हैं? सवाल इसलिए कि बहुत से लोग कहते हैं कि अमीर मुल्क गरीबी शब्द को भूल चुके हैं। 2017 में अपनी पुस्तक “इविक्टेड: पॉवर्टी एंड प्रॉफिट इन द अमेरिकन सिटी” के लिए पुलित्जर पुरस्कार से सम्मानित होने वाले समाजशास्त्री मैथ्यू डेसमंड ने इस ज्वलंत प्रश्न का उत्तर अपनी नई पुस्तक “पॉवर्टी, बाय अमेरिका” में खोजने का प्रयास किया है।

उनकी किताब इस सवाल का एक “जवाब” पेश करती है जिसे अमेरिका में कई लोग वामपंथी हमला कहेंगे। उनकी पुस्तक रूसी लेखक लियो टॉल्सटॉय के एक उद्धरण के साथ शुरू होती है, “हम सोचते हैं कि उनकी पीड़ा एक बात है और हमारा जीवन दूसरी।”
 
डेसमंड अमेरिका में पुरानी गरीबी की तुलना अमीरों और विशेषाधिकार प्राप्त धनी अमेरिकियों और कॉरपोरेट घरानों द्वारा छेड़े गए “वर्ग युद्ध” से करते हैं, ताकि गरीबों को वहीं रखा जाए, जहां वे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि गरीब या लगातार गरीबी कॉरपोरेट के लिए लाभकारी हैं। गरीबों का श्रम सस्ता होता है और वे पूरी शिद्दत के साथ काम करते हैं। इससे कॉरपोरेट के लाभ में वृद्धि होती है।

वह अपनी पुस्तक में तर्क देते हैं, “पूंजीवाद स्वाभाविक रूप से श्रमिकों से ज्यादा से ज्यादा हासिल करने की कोशिश कर रहा है और मालिक जितना संभव हो उतना कम देने की कोशिश कर रहे हैं। अमेरिका की गरीबी संसाधनों की कमी से नहीं है। हमारे पास किसी और चीज की कमी है।”
 
वह आगे स्पष्ट करते हैं कि यह ऐसी व्यवस्था का खात्मा है, जो समावेशी है व सभी को साथ लेकर आगे बढ़ने को प्रोत्साहित करती है। वह कहते हैं कि अमेरिका में इसके उलट ऐसी व्यवस्था है, जो हर तरीके से विशेषाधिकार प्राप्त और कॉरपोरेट को फायदा पहुंचाने के लिए काम करती है, वह भी आम लोगों की कीमत पर।
 
अमीरों को कर छूट से लेकर सामाजिक समर्थन तक, ऐसे कई उदाहरण हैं जो गरीबी विरोधी हैं और हमेशा अमीरों को फायदा पहुंचाते हैं। यह व्यवस्था वर्ग संघर्ष की जमीन तैयार करती है।
 
डेसमंड ने अमेरिकियों को “गरीबों के अनजाने दुश्मन” कहा है। टेलीविजन चैनल सीएनबीसी के साथ एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा, “अमेरिका में राष्ट्रीय पात्रता कार्यक्रम है, जिसके दायरे से सिर्फ गरीब ही बाहर हैं। 2020 में देश ने जरूरतमंदों को सार्वजनिक आवास और किराए के बोझ को कम करने के लिए वाउचर जैसी आवास सहायता पर 53 बिलियन डॉलर खर्च किए। उसी वर्ष हमने मकान मालिक की कर सब्सिडी पर 190 बिलियन डॉलर से अधिक खर्च किए। यह सब्सिडी मकान मालिकों को घर गिरवी रखने पर ब्याज कटौती के लिए मिलती है। सब्सिडी की इस लड़ाई में गरीबी से लड़ने के लिए जरूरी राशि नहीं मिल पाती।”
 
न्यूयॉर्क टाइम्स में उन्होंने लिखा, “अमेरिका में गरीबी बनी हुई है, क्योंकि हममें से बहुत से लोग इसका फायदा उठाते हैं। हम सस्ती वस्तुओं और सेवाओं का मजा उठाते हैं और अपने निवेश पर अच्छा मुनाफा पाते हैं।”
 
असमानता ऐसे समय में है जब दुनिया सबसे तेज गति से संपत्ति सृजित करने के चरण में है और यह संकट के स्तर पर पहुंच गया है। डेसमंड द्वारा अमेरिका की चिरकालीन गरीबी का विश्लेषण इस तथ्य का प्रतीक है कि अगर असमानता और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों को ठीक से लागू नहीं किया गया जो सबसे धनी देश भी इसकी जद में आने से नहीं बचेंगे।

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