बैठे ठाले: सिकंदर की वापसी

सड़कों पर दो-तीन फीट गहरे और दस-बारह फीट चौड़े गड्ढों पर चलने से सिकंदर की सेना के रथ के पहिए टूट गए। हजारों सैनिक और घोड़े उन गड्ढों में गिरकर बुरी तरह घायल हो गए”

By Sorit Gupto

On: Thursday 10 November 2022
 

सोरित / सीएसईमहाप्रतापी राजा पोरस का दरबार लगा हुआ था। पोरस सहित सारे दरबारी अपने स्मार्टफोन पर नजर गड़ाए स्टेटस चेक करने में मशगूल थे।

दूसरे शब्दों में कहें तो पूरा “माहौल सेट” था। इसी बीच दरबार में लगे छप्पन इंच के टीवी स्क्रीन पर एक न्यूज एंकर नमूदार हुआ और उसने “युद्ध में हार के फायदे” गिनाने शुरू कर दिए।

पोरस ने अपने गृहमंत्री से पूछा, “यह बकलोल अब क्या नया रायता फैला रहा है मान्यवर?”

इस प्रश्न को गृहमंत्री ने वित्तमंत्री और वित्तमंत्री ने रक्षा मंत्री को फारवर्ड कर दिया, जिसने इस खबर की पुष्टि की कि सिकंदर की सेना ने लाइन ऑफ कंट्रोल को पार कर लिया है और सिकंदर की सेना ने कुछ गांव भी बसा लिए हैं।

बात संजीदा थी पर किया क्या जाए? इस पर अलग-अलग लोगों के अलग-अलग विचार थे, जैसे आईटी सेल के मुखिया की राय थी कि सभी यूनानी ऐप बंद कर दिए जाएं। वहीं रक्षामंत्री पूरी सरहद में नीबू और मिर्ची झुलाने पर अमादा थे।

पर पोरस को कोई भी आइडिया पसंद नहीं आया। उन्होंने अपनी नजरें घुमाईं। थोड़ी दूरी पर सड़क मंत्री चुपचाप बैठे थे। पोरस ने उनकी ओर देखते हुए कहा, “आप हमारे सीनियर दरबारी हैं महोदय। आप इस समस्या पर कुछ मार्गदर्शन कीजिए।”

मार्गदर्शन का नाम सुनकर सड़क मंत्री कुछ देर के लिए सकपका गए, पर उन्होंने खुद को संभालते हुए कहा, “मेरे पास एक आइडिया है, पर उसके लिए मुझे कुछ लाख करोड़ रुपए की जरूरत होगी और भगेलू की मदद लेनी होगी।”

सारा दरबार चौंक कर सड़क मंत्री की ओर देखने लगा।

पोरस ने पूछा, “इतने रुपए का आप क्या करोगे? और यह भगेलू कौन है?”

सड़क मंत्री ने कहा, “राष्ट्रीय सुरक्षा को देखते हुए मैं इस पर कुछ भी नहीं कहूंगा महोदय, बाकी आप ‘समझदार’ हैं।”

पोरस ने राष्ट्रहित में देश के प्रधान बैंक के रिजर्व से पैसा निकालकर सड़क मंत्री को दे दिया, जिसे लेकर सड़क मंत्री चले गए।

दिन बीते, हफ्ते बीते, महीने बीत गए पर सड़क मंत्री का कोई पता नहीं था। अचानक एक दिन सड़क मंत्री दरबार में आए और पोरस को बताया, “मान्यवर, सिकंदर की सेना बुरी तरह से घायल होकर मकदूनिया लौट रही है!”

सारे दरबारी खुशी से नाचने लगे।

पोरस ने पूछा, “आपने यह सब किया कैसे?”

सड़क मंत्री ने कहा, “सड़कों की मदद से मान्यवर!”

गृह मंत्री ने चौंक कर पूछा, “सड़कें बनवाकर! भला वह कैसे?”

सड़क मंत्री ने कहा, “हमने सरहद से राजधानी तक सड़कें बनवा दीं। सड़कों का ठेका हमने अपने भगेलू ठेकेदार को दिया। बनने के तीसरे दिन सड़कों पर दो-तीन फीट गहरे और दस-बारह फीट चौड़े गड्ढे बन गए, जिस पर चलने से सिकंदर की सेना के रथ के पहिए टूट गए। केवल यही नहीं, हजारों सैनिक और घोड़े उन गड्ढों में गिरकर बुरी तरह घायल हो गए। सुना है सिकंदर अपने रथ से गिरकर टांग तुड़वा कर बैठा है। इन गड्ढों से वह इतना डर गया कि उसने हमारे देश में आगे न बढ़कर, वापस मकदूनिया लौटने का फैसला कर लिया।”


चारों ओर सड़क मंत्री की जय-जयकार होने लगी।

पोरस ने सड़क मंत्री को पास बुलाकर फुसफुसा कर पूछा, “बाकी तो ठीक है, पर इतने सारे पैसे कहां गए?” सड़क मंत्री ने भोली सूरत बनाकर कहा, “वह पैसे तो रेल-मंत्रालय को रिश्वत में दे दिए मान्यवर।”

(बाद में अंग्रेजों ने अपने हिसाब से इतिहास को तोड़ मरोड़कर लिखा और हम आज भी अंग्रेजों के लिखे इतिहास को पढ़ रहे हैं)

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