बिल्डर ने घटाया ओपन स्पेस, एनजीटी ने दिया नुकसान के आकलन का आदेश

गुरुग्राम के एक बिल्डर के खिलाफ एनजीटी में दायर याचिका में कहा गया है कि उसने ओपन स्पेस को कॉमर्शियल बनाकर बेच दिया, जिससे उन्हें हवा रोशनी नहीं मिल पा रही है

By Bishan Papola

On: Tuesday 11 February 2020
 

 गुडगांव नेशनल हाइवे-8 में एंबीऐंस डेवलपर्स एंड इंफ्रास्ट्क्सर प्राइवेट लिमिटेड द्बारा एंबीऐंस लॉगून आपर्टमेंट नामक हाउसिंग सोसाइटी के निर्माण में डीड ऑफ डिक्लरेशन के नियमों का उलंघन किया गया है। इस मामले में याचिकाकर्ता अनिल उप्पल द्बारा एनजीटी में डाली याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस आदर्श कुमार गोयल की पीठ ने एक संयुक्त समिति का गठन कर पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के रूप में मुआवजे का आकलन करने का आदेश दिया है। इसकी रिपोर्ट तत्काल एनजीटी में पेश करने का कहा गया है। संयुक्त समिति में भारतीय वन प्रबंधन संस्थान, केंद्रीय प्रदूषण बोर्ड को भी शामिल करने को कहा गया है। 

 याचिकाकर्ता के अनुसार परियोजना के मालिकों ने आवास बुकिंग के दौरान जो ओपन एरिया का क्षेत्रफल बताया था, उसे घटाकर उस एरिया में व्यवसायिक भवन का निर्माण कर लिया था, जिससे ताजी हवा और बाहरी रोशनी आने में दिक्कत हो रही है। याचिकाकर्ता ने बताया यह खुले तौर पर डीड ऑफ डिक्लरेशन का उलंघन है। उसके अनुसार डीड ऑफ डिक्लरेशन में ओपन एरिया 10.98 एकड़ बताई गई थी, लेकिन इसे घटाकर 7.93 एकड़ कर दिया है, जो उच्चतम न्यायालय के निर्णयों का खुला उलंघन है, इसमें नेशनल बिल्डिंग कोड ऑफ इंडिया 2005 का भी उलंघन है।

याचिकाकर्ता ने 5 मई 2015 में याचिका दायर की थी, जिसके आधार पर एनजीटी ने नोटिस जारी किया था, जिसमें ओपन एरिया के संबंध में डीड ऑफ डिक्लरेशन का पालन करने का कहा गया था, जिसके जवाब में परियोजना से जुड़े प्रतिनिधियों ने बताया था कि ओपन एरिया के परिवर्तन के संबंध में टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट (टीसीपीडी) द्बारा 26 जून 2015 को ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट प्रदान किया गया था, इसीलिए यह किसी रूप में पर्यावरण के दृष्टिकोण से हानिकारक नहीं है। इस मामले में याचिकाकर्ता ने 30 नवंर 2015 को दोबारा इस मामलें याचिका दायर की थी, जिसमें उसने उलंघन किया कि डीड ऑफ डिक्लरेशन हरियाणा अपार्टमेंट ऑनरशिप एक्ट-1983 के सेक्शन-6 का उलंघन है। याचिकाकर्ता के अनुसार अपार्टमेंट मालिक द्बारा नियम का उलंघन किया है, जिससे पर्यावरण पर असर तो पड़ ही रहा है और अपार्टमेंट में रहने वाले लोग अधिक प्रभावित हो रहे हैं।

इस मामले में तैयार की गई एक रिपोर्ट के आधार पर पर्यावरण क्षतिपूर्ति का आकलन 65 लाख 51 हजार 250 रूपए के रूप में किया गया था। इसके बाद भी आवासीय सोसाइटी का निर्माण करने वाले मालिकों ने माना कि उन्होंने परियोजना के संबंध में किए गए परिवर्तन को लेकर सारी शर्तों को पूरा किया है, लिहाजा, याचिकाकर्ता द्बारा डाली शिकायत का महत्व नहीं है, लेकिन याचिकाकर्ता के तथ्यों के मद्देनजर एनजीटी ने फिर से इस मामले में पर्यावरणीय क्षतिपूर्ति के आकलन का आदेश दिया है।

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